भारत में पान काफी मशहूर है और जब कभी भी पान का जिक्र होता है लोगों को सिर्फ बनारस के पान की ही याद आती है. लेकिन पान की एक और वैरायटी भी है जो बनारस से कई हजार किलोमीटर दूर मिलती है. पान की इस वैरायटी को तारिकेरे वीलीयादेले के तौर पर जानते हैं जो कर्नाटक राज्य के तारिकेरे क्षेत्र में मिलती है. अफसोस की बात यह है कि अब यह वैरायटी गायब होने की कगार पर है क्योंकि किसान इसकी खेती की जगह अब बाकी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं.
अखबार डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार देसी पान के पत्तों की हर जगह अच्छी मांग है. और इसलिए इन्हें बेंगलुरु, हासन, चन्नारायपट्टना, बेलुरु, चिकमगलुरु, बनवारा, कदुर,अस्रीकेरे, गनासी और शिवमोग्गा तक ले जाया जाता है. देशी पान के पत्ते, तारिकेरे वीलीयादेले को उसके औषधीय गुणों, कम कसैलेपन और मुलायम बनावट के लिए जाना जाता है. 80 पत्तों वाले एक गुच्छे की कीमत 30 से 40 रुपये है. एक 'पेंडी' में 12 से 13 हजार पत्ते होते हैं और इसकी कीमत औसतन 4000 से 5000 रुपये होती है. उत्पादन और आपूर्ति के अनुसार कीमत में उतार-चढ़ाव होता रहता है.
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तारिकेरे में हजारों परिवार पीढ़ियों से पान की खेती कर रहे हैं. परिवार प्रतिदिन 200 से 300 पेंडी पान के पत्ते बाजार में पहुंचाते हैं. हालांकि, फसल पर बीमारियों का असर पड़ रहा है जिससे उत्पादन में गिरावट आ रही है. बढ़ती मजदूरी और अपर्याप्त मजदूरों की वजह से समस्या और भी गंभीर हो गई है. आज बाजार में रोजाना 30 से 40 पेंडियां ही आ रही हैं. निराश किसान पान की खेती छोड़कर दूसरी फसलें उगा रहे हैं.
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शहद और पान उत्पादक एवं विक्रेता संघ, तारिकेरे के सचिव देवराज ने बताया कि पान की बेलें अक्सर बीमारियों की चपेट में आ रही हैं. इस बीच उन्होंने बागवानी विभाग से मिट्टी की जांच कराने और दवाइयां सुझाने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा है कि सही बाजार सुविधाओं के अभाव में किसान स्थानीय निजी बस अड्डे पर पान बेच रहे हैं. विधायकों और नगर निगम को पान की बिक्री के लिए उपयुक्त स्थान की पहचान करनी चाहिए.