जलवायु परिवर्तन के इस दौर में खेती करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. मौसम के बदलते मिजाज के कारण कहीं अधिक गर्मी तो कहीं अत्यधिक वर्षा हो रही है, जिससे कृषि क्षेत्र में विभिन्न रोगों और कीटों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. उत्तर बिहार के अधिकांश जिलों में इस मौसम में आम के फलों पर ‘रेड बेंडेड मैंगो कैटरपिलर’ नामक कीट का खतरा अधिक बन जाता है. यह कीट मटर के आकार के फलों पर प्रकोप डालता है और फलों के पकने के पहले तक सक्रिय रहता है. यह फल के निचले हिस्से को खाता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह कीट केवल आम पर ही हमला करता है, किसी अन्य फल पर नहीं. पूर्ब मे कई स्थानों पर इस कीट द्वारा फलों में लगभग 42% तक छेद देखे गए हैं.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केंद्रीय उपोष्ण बागवानी अनुसंधान संस्थान, रहमानखेड़ा, लखनऊ में कार्यरत प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एच. एस. सिंह के अनुसार, इस कीट को पुरी मे पहली बार 1952 में रिपोर्ट किया गया था. 1992 में यह आंध्र प्रदेश में विस्तार होना शुरू किया. कोस्टल एरिया होते हुए यह ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड सहित बिहार और उत्तर प्रदेश के कुशीनगर तक फैल गया. वर्ष 2016–17 में यह उत्तर बिहार के मोतिहारी, बेतिया, वैशाली, मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर जैसे जिलों में पाया गया. दक्षिण बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसका असर कम है.
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डॉ. सिंह बताते हैं कि जब आम पर फूल आ जाते हैं, उसके बाद यह कीट नींद से वयस्क अवस्था में बदलकर अंडे देता है. शुरुआत में इनकी संख्या कम होती है, लेकिन यदि समय रहते नियंत्रण न किया जाए, तो इनकी संख्या तेजी से बढ़ जाती है. यह कीट मसूर के आकार के फलों से लेकर पकने की पहली अवस्था तक फलों को प्रभावित करता है.
इस कीट के हमले की पहचान इस प्रकार की जा सकती है: जब मटर आकार के फलों के निचले हिस्से में एक छोटा सा छेद दिखाई दे, उस स्थान पर हल्की पानी की बूंदें निकलती हैं, जो बाद में गोंद की तरह जम जाती हैं. लाल धारीदार कीट का लार्वा फल के निचले वाले हिस्से से अंदर घुसता है ,फल को थोड़ा छति पहुंचा करके फिर एक फल से निकलकर दूसरे फल में छेद करता है. छोटी अवस्था के ये फल छेद सहित लटकते रहते हैं और बाद मे गिर जाते है. फल पकने के समय यह कीट पेड़ की छाल, पत्ते या डाल में छिपकर सुसुप्त अवस्था में चला जाता है और अगले वर्ष फूल आने पर फिर सक्रिय होता है.
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डॉ. एच. एस. सिंह के अनुसार, जिन बागों में पिछले वर्ष इस कीट का प्रकोप देखा गया हो, उन किसानों को विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए.आम के फल की मसूर अवस्था में पहला छिड़काव वहीं, नीचे गिरे फलों के साथ पिल्लू भी रहता है अतः गिरे फलों को समय समय पर नष्ट कर दें. डेल्टामथ्रीन 2.8 ईसी 0.5 मिलीलीटर या फिर लैम्डा साइहलोथ्रिन 5 ईसी 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से अदल बदलकर छिड़काव कर सकते हैं. चूंकि यह कीट रात में अधिक सक्रिय होता है, इसलिए दवा का छिड़काव शाम के समय करना चाहिए। स्थानीय किसानों से बातचीत करके यह भी पता चला कि वह स्वेक्क्षा से या फिर दवा विक्रेता की अनुशंसा पर इमामेक्टिन बेंजोएट 0.5 gram तथा क्लोरोपीरीफोस 2 मिली / लीटर या फिर प्रोफेनोफास 1.5 मिली का भी स्प्रे करके इस कीड़े की रोकथाम करते हैं. इधर सितंबर 2024 से आम के ऊपर मोनोकोर्टोफास तथा मैलाथियान का स्प्रे मना कर दिया गया है.