महाराष्ट्र में एक तरफ प्याज के दाम का रोज रिकॉर्ड बन रहा है तो वहीं सोयाबीन के दाम में भारी गिरावट देखने को मिल रही है. पूरे राज्य में सोयाबीन उत्पादक किसान सरकार के खिलाफ गुस्से में हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि सरकार की नीतियों की वजह से दाम गिर गए हैं. महाराष्ट्र देश का दूसरा सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक है. यहां के लाखों किसान इसकी खेती से जुड़े हुए हैं और उन्हें इस साल सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी नहीं मिल पा रहा है. जबकि एमएसपी वह दाम होता है, जिससे कम पर बेचने का मतलब किसानों को घाटा होना है. राज्य में इस समय किसानों को सोयाबीन का दाम 3000 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच मिल रहा है, जबकि एमएसपी 4600 रुपये है.
महाराष्ट्र एग्रीकल्चरल मार्केटिंग बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि 18 जून को राज्य की 55 मंडियों में सोयाबीन की नीलामी हुई, जिसमें से सिर्फ 3 में ही सोयाबीन का अधिकतम दाम एमएसपी या उससे अधिक रहा. मतलब राज्य की अधिकांश मंडियों में किसानों ने बहुत दुखी होकर सरकारी रेट से भी कम दाम पर सोयाबीन बेचा. इस साल पूरे सीजन महाराष्ट्र के किसानों को सोयाबीन का सही दाम नहीं मिला. इसके लिए राज्य के किसान केंद्र सरकार को जिम्मेदार बता रहे हैं.
सोयाबीन एक प्रमुख तिलहन और दलहन फसल है. सोयाबीन रिसर्च सेंटर, इंदौर के वैज्ञानिकों के अनुसार सोयाबीन देश में कुल तिलहन फसलों का 42 प्रतिशत और कुल खाद्य तेल उत्पादन में 22 प्रतिशत का बड़ा योगदान दे रहा है. सोयाबीन में भारत को खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की पूरी क्षमता है. लेकिन अगर इतना कम दाम मिलेगा तो किसान खेती छोड़ देंगे या कम कर देंगे.
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