कद्दू (cucurbita moschata) बेहद लोकप्रिय सब्जी है जिसे देश के अधिकांश हिस्सों में खाया जाता है. इसे कोंहड़ा, कुम्हड़ा, सीता फल और काशी फल जैसे नामों से भी जाना जाता है. पोटैसियम और विटामिन ए प्रचुर मात्रा में पाए जाने के कारण सब्जियों में इसकी मांग सबसे अधिक है. कद्दू का पीला रंग उसमें एंटीऑक्सीडेंट की मौजूदगी के बारे में बताता है. इससे पता चलता है कि कद्दू जितना पीला होगा, उसमें एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा उतनी ही अधिक होगी. इसके अलावा बीटा कैरोटिन भी अधिक मात्रा में पाया जाता है. बीटा कैरोटिन से ही शरीर में विटामिन ए बनता है जिससे कई तरह के फायदे होते हैं. एंटीऑक्सीडेंट शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता देता है जिसकी वजह से सब्जियों में कद्दू का महत्व और भी बढ़ जाता है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि कद्दू की कौन सी किस्में हैं जो बंपर पैदावार देती हैं.
किस्मों के बारे में जानें, उससे पहले National Seeds Corp. (NSC) के एक ट्वीट को पढ़ लेते हैं. एनएससी किसानों की सुविधा के लिए ऑनलाइन कद्दू के बीज बेच रहा है. इसमें सबसे अधिक मांग अंबली वेरायटी की है जिसे ओएनडीसी के ऑनलाइन स्टोर से खरीदा जा सकता है. एनएससी के मुताबिक, किसान अंबली कद्दू के बीज का 100 ग्राम का पैकेट ऑनलाइन आसानी से पा सकते हैं. विशेष जानकारी के लिए नीचे दिए ट्वीट को पढ़ लें.
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अब कद्दू की उन पांच किस्मों के बारे में जान लेते हैं जो किसानों की कमाई की मुराद पूरी करती हैं. ये ऐसी किस्में हैं जिनकी बाजारों में बेहद मांग है. मांग अधिक होने से किसानों की कमाई बढ़ने की भी भरपूर गुंजाइश होती है.
1-अर्क सूर्यमुखी- बंपर उपज देने वाली इस वेरायटी को बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चरल रिसर्च ने विकसित किया है. यह वेरायटी साइज में छोटी होती है और आकार पूरी तरह से गोल होता है. यह कद्दू देखने में संतरे के रंग का होता है. खास बात ये है कि इस पर फ्रूट फ्लाई कीड़े का कोई असर नहीं होता. इसकी खेती सितंबर से जनवरी के बीच होती है.
2-अर्क चंदन- इस वेरायटी को भी बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चरल रिसर्च ने तैयार किया है. इसका फल गोल होता है, लेकिन निचला हिस्सा थोड़ा पतला होता है. फल कच्चा रहने पर उस पर सफेद रंग के धब्बे होते हैं. पकने पर रंग हल्का भूरा हो जाता है. फल का गूदा संतरे के रंग का होता है जिसमें कैरोटिन की प्रचुर मात्रा पाई जाती है. फल का सामान्य वजन दो से तीन किलो होता है. प्रति हेक्टेयर 33 टन तक उपज मिलती है और इसकी फसल 115 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है.
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3-अंबली- जब उपज की बात हो तो कद्दू की अंबली वेरायटी का नाम सबसे प्रमुखता से लिया जाता है. इस वेरायटी को केरला एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी ने तैयार किया है. सामान्य तौर पर इसका फल चार से छह किलो तक होता है. यही वजह है कि किसानों के लिए यह वेरायटी अच्छी कमाई देने वाली होती है. इसका आकार गोल होता है.
4-सरस- इस कद्दू का आकार मध्यम होता है और गूदे का रंग बेहद आकर्षक होता है. रंग संतरे की तरह होता है और गूदा की मात्रा बहुत अधिक होती है. इस वेरायटी को भी केरला एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी ने तैयार किया है. सरस कद्दू की खेती करें तो किसान को 39 टन प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलेगी. केरला में इस वेरायटी की प्रमुखता से खेती की जाती है.
5-सुवर्णा- सुवर्णा वेरायटी को भी केरला एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी ने विकसित किया है. आकार छोटा और गोल होता है, गूदा मोटा और गहरे संतरे रंग का होता है. फल का सामान्य वजन तीन से पांच किलो तक होता है.