भारत ने गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर रोक लगा दी है. इससे दुनिया के कई देशों में अफरा-तफरी का माहौल है. अमेरिका जैसे देश में लोग सुपरमार्केट के बाहर चावल के लिए लाइन लगा रहे हैं. भारत के चावल की स्थिति ऐसी है कि दुनिया में थाइलैंड और पाकिस्तान के चावल को कोई पूछ नहीं रहा है. इन दोनों देशों में भी बड़े पैमाने पर चावल की पैदावार होती है, लेकिन भारत के चावल की मांग अधिक बनी हुई है. यही वजह है कि भारत ने जैसे ही सफेद चावल के निर्यात पर बैन का ऐलान किया, पूरी दुनिया में अफरा-तफरी का आलम हो गया. ऐसी रिपोर्ट है कि चावल की जो खेप रास्ते में थी, व्यापारी उसका भी रेट बढ़ा रहे हैं. बैन के बीच दुनिया के कई देश भारत से निर्यात के फैसले पर विचार करने की बात कर रहे हैं. इसमें दो चावल ऐसे हैं जिनकी मांग सबसे अधिक है. सोना मसूरी और पोन्नी चावल.
आइए हम इन दोनों चावल के बारे में जानते हैं. सबसे पहले बात सोना मसूरी चावल की. दो दिन पहले अमेरिका से एक रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा गया था कि वहां सबसे अधिक मारामारी इसी चावल के लिए है. लोग सबसे अधिक सोना मसूरी की मांग कर रहे हैं. इसका फायदा वहां के सुपरमार्केट वाले खूब उठा रहे हैं. ग्राहकों के लिए एक शर्त लगा दी गई कि सोना मसूरी चावल उसे ही मिलेगा जो 30 डॉलर का कोई और सामान खरीदेगा.
सोना मसूरी को कई जगह सोना मशूरी भी कहते हैं. यह छोटे दाने वाला और सुगंधित चावल है. इस चावल को दो वैरायटी को मिलाकर बनाया गया है-सोना और मसूरी. इसीलिए इसका नाम सोना मसूरी है. वैसे तो उत्तर भारत में भी इसकी पैदावार होती है, लेकिन मुख्य रूप से दक्षिण के राज्यों में इसकी रोपाई होती है. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में इसकी सबसे अधिक खेती होती है. दक्षिण भारत के व्यंजनों में इस चावल का सबसे अधिक इस्तेमाल होता है.
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तेलुगु में सोना मसूरी चावल को बंगारू थेगालु (गोल्डन आइवी) कहा जाता है. सोना मसूरी चावल ऐसी प्रीमियम वैरायटी है जिसे मुख्य रूप से अमेरिका, कनाडा, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, मलेशिया और मध्य पूर्वी देशों जैसे सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कतर में निर्यात किया जाता है.
आंध्र प्रदेश में सोना मसूरी धान की खेती मुख्य रूप से कृष्णा, गुंटूर, कुरनूल, नेल्लोर, प्रकाशम और गोदावरी जिलों में की जाती है. तेलंगाना में इसकी खेती मुख्य रूप से महबूबनगर, मिर्यालगुडा, करीमनगर, निज़ामाबाद और वारंगल में की जाती है. कर्नाटक में इसकी खेती मुख्य रूप से रायचूर, कोप्पल और बेल्लारी, बेलगावी जिलों में की जाती है.
पोन्नी चावल को 1986 में तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने तैयार किया था. इसकी खेती तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर की जाती है. पोन्नी चावल को ताइचुंग 65 और म्यांग इबोस 6080/2 चावल को मिलाकर बनाया गया है. चूंकि कावेरी नदी को तमिल साहित्य में 'पोन्नी' भी कहा जाता है, इसलिए चावल का नाम इसी नदी के नाम पर रखा गया है. इस चावल की खेती ज्यादातर कावेरी के किनारे अरियालुर, त्रिची, मदुरै और उसके डेल्टाई इलाकों में की जाती है.
सेहत के लिहाज से इस चावल की मांग दुनिया के कई देशों में देखी जाती है. ऐसा माना जाता है कि पोन्नी चावल दिल की सेहत को सुधारता है और ब्लड सर्केुलेशन को भी दुरुस्त रखता है. इस चावल में ग्लाइसेमिक की मात्रा कम होती है जिससे डायबिटीज के रोगी भी इसे खाने में इस्तेमाल करते हैं. यह उबला हुआ चावल है जिसकी कीमत 300 रुपये प्रति किलो से अधिक है.
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भारत से चावल के निर्यात पर बैन के बाद कई देशों में चावल की महंगाई हो गई है. सिंगापुर जैसे देशों में अगर पहले से स्टॉक बचा है, तो वहां से खेप की मांग आ रही है. निर्यात पर बैन के चलते सिंगापुर से निकलने वाला चावल महंगा हो गया है. यूं कहें कि भारत ने चावल पर जब से निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है, तब से कई देशों के किचन का बजट गड़बड़ हो गया है.