Farmers News: बंजर जमीन में इस फसल की खेती से मालामाल बन सकते हैं किसान, यहां पढ़िए पूरी डिटेल

Farmers News: बंजर जमीन में इस फसल की खेती से मालामाल बन सकते हैं किसान, यहां पढ़िए पूरी डिटेल

डॉ. संजय कुमार ने बताया कि इस फसल में किसी प्रकार के उर्वरक के प्रयोग की जरूरत और अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है. यह प्राकृतिक रूप से उगता और तैयार होता है.

यह मडुआ की फसल रागी से भिन्न होती है.यह मडुआ की फसल रागी से भिन्न होती है.
नवीन लाल सूरी
  • Lucknow,
  • Feb 08, 2024,
  • Updated Feb 08, 2024, 5:09 PM IST

Madua ki Kheti: खेती में अब किसान नई-नई नकनीक का इस्तेमाल करके ज्यादा मुनाफा कमा रहा है. जिससे कम लागत में मोटी इनकम हो सके. जी हां, हम बात कर रहे हैं मडुआ की जो बाजार में काफी महंगा मिलता है और इसकी खेती उससे कहीं ज्यादा सस्ती और आसान होती है. यह न सिर्फ स्वादिष्ट होता है, बल्कि बहुत पौष्टिक भी होता है. यह प्रोटीन का अच्छा स्रोत है. मडुआ (Madua) खेती में किसानों को कम लागत और अच्छी कीमत मिलती है. ऐसे में मडुआ (Ragi) की खेती किसानों के लिए फायदेमंद है. 

लखनऊ स्थित सीएसआईआर के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. संजय कुमार ने किसान तक से बातचीत में बताया कि यह मडुआ की फसल रागी से भिन्न होती है. इसको फिंगर मिलेट्स के नाम से भी जाना जाता है. इसकी खेती बंजर भूमि और बहुत कम खर्चे में होती है. इसकी खेती कर किसान मालामाल बन सकते हैं. उन्होंने बताया कि रागी की तरह मडुआ एक फसल है जो बहुत कम दिनों में तैयार होती है. एक तरह से इसको हम लोग बोल सकते हैं कि यह प्राकृतिक रूप से उपजा हुआ रियल नगदी फसल है. वरिष्ठ वैज्ञानिक ने आगे बताया कि सोनभद्र और मिर्जापुर जिले में इसकी खेती बड़े पैमाने की जा रही है.

वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि ऊंची, नीची या बंजर भूमि पर इसकी खेती की जा सकती है. लगभग 3 महीने में यह फसल तैयार हो जाती है. मडुआ की 4.5-8 पीएच वाली मृदा में सबसे अच्छी उपज दर्ज की गई है. इसे शुष्क मौसम में भी उगाया जा सकता है और यह गंभीर सूखे की स्थिति का सामना करने में सक्षम है. इसे पूरे वर्ष आसानी से उगाया जा सकता है. यह सभी छोटे मिलेट के बीच अत्यधिक उगाई जाने वाली फसल है. इसका जो उपज या दाना है वो गेहूं या अन्य आटे की तुलनात्मक ज्यादा उपयोगी और लाभकारी होता है. आजकल जो समस्या पूरी दुनिया में गेहूं के आटे के कारण बढ़ रही है. धीरे-धीरे लोगों का पेट निकलना या जैसे शुगर की जो समस्याएं आ रही हैं. वह समस्या मडुआ के सेवन करने से नहीं आती है.

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डॉ. संजय कुमार ने बताया कि इस फसल में किसी प्रकार के उर्वरक के प्रयोग की जरूरत और अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है. यह प्राकृतिक रूप से उगता और तैयार होता है. किसान को इस पर बहुत ज्यादा खर्च करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है. वहीं कम देखरेख में भी यह फसल तैयार हो जाता है. उन्होंने बताया कि कुछ लोगों का मानना है कि चावल और गेहूं भी मोटे अनाजों की लिस्ट में शामिल है, लेकिन ऐसा नहीं है. ज्वार, बाजरा, रागी, मडुआ, कंगनी, कोदो, कुटकी, चना मुख्य मोटे अनाज हैं जो अपने पोषक गुणों और सीमित व्यवस्थाओं में अधिक पैदावार देने के लिए जाना जाता है. किसान मोटे अनाज की खेती करना चाहे तो अपने जिले में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र या जिला कृषि कार्यालय से राय ले सकते हैं.

 

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