Lemon Special : नींबू की बागवानी फायदे का सौदा, ये किस्में हैं खास, जानें पूरी बात

Lemon Special : नींबू की बागवानी फायदे का सौदा, ये किस्में हैं खास, जानें पूरी बात

बाग-बगीचा सीरीज में बात नींबू की. नींबू की उपज पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में होती है. गर्मियों में मुख्य प्राकृतिक पेय के रूप में नारियल पानी या नींबू पानी का इस्तेमाल किया जाता है. आजकल हर परिवार में रोजमर्रा में इस्तेमाल होने से इसकी मांग बढ़ती जा रही है.

नींबू की बागवानीनींबू की बागवानी
जेपी स‍िंह
  • New Delhi,
  • Jul 26, 2023,
  • Updated Jul 26, 2023, 4:13 PM IST

नींबू की उपज पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में होती है. गर्मियों में मुख्य प्राकृतिक पेय के रूप में नारियल पानी या नींबू पानी का इस्तेमाल किया जाता है. खासतौर पर गर्मी के सीजन में नींबू की डिमांड काफी बढ़ जाती है. विटमिन सी का प्रमुख स्रोत नींबू, गांव हो या शहर हर जगह काफी पसंद किया जाता है.आप नींबू के बाग लगाकर अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं. कृषि वैज्ञानिक किसानों की सुविधा के लिए नींबू की नई-नई किस्में तैयार कर रहे हैं .ये ऐसी किस्में हैं, जो कम लागत में अच्छी पैदावार देती हैं. जिसकी बागवानी कर किसान बेहतर लाभ ले सकते हैं. आइए जानते हैं बाग- बगीचा सीरीज में नींबू की नई किस्मों के बारे में, जिसकी बागवानी कर आप काफी फायदे उठा सकते हैं. 

नींबू की ज्यादा रसदार किस्म है रसराज 

रसराज संकर नींबू का विकास भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा किया गया है. ज्यादातर नींबू की तरह इसका फल पीले रंग का होता है. फल का औसत वजन लगभग 55 ग्राम होता है। इसका छिलका काफी मोटा होता है जिसमें एक नींबू में 70 प्रतिशत रस होता है और 12 बीज होते हैं. इसके रस में खट्टापन या खटास छह प्रतिशत होती है

पूसा अभिनव में भी मिलता है ज्यादा रस

पूसा अभिनव नींबू की उन्नत किस्म  है. इसे IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है.इसका फल गोल आकार का और लगभग 35 से 36 ग्राम का होता है. पकने पर फल पीले रंग का होता है, रस 64.5 फीसदी तक होता है.इस किस्म के पौधे साल भर फल देते हैं और अगस्त-सितंबर और मार्च-अप्रैल के दौरान सबसे अधिक फल लगते हैं. यह मैदानी इलाकों में खेती के लिए उपयुक्त है इसके रस में खट्टापन  7 फीसदी होती है.

पूसा उदित किचन गार्डन के लिए भी बेहतर

पूसा उदित IARI द्वारा विकसित नींबू की एक किस्म है. इसके पेड़ मध्यम आकार के होते हैं और फल आकर्षक चमकीले पीले रंग के गोल आकार के होते हैं. यह पूरे वर्ष फल देता है और दो बार फरवरी-मार्च और अगस्त-सितंबर के दौरान अधिकतम उपज देता है.इसका फल मध्यम आकार का होता है. इसका औसत वजन 34.38 ग्राम होता है. इसमें रस की मात्रा लगभग 43 फीसदी और अम्लता 7 फीसदी होती है. यह बागवानी के साथ-साथ किचन गार्डन के लिए भी बेहतर है,

एनआरसीसी नींबू -7

एनआरसीसी नींबू-7 को केंद्रीय नींबू श्रेणी फल अनुसंधान संस्थान, नागपुर यानी एनआरसीसी नागपुर द्वारा विकसित किया गया है इसके पेड़ मध्यम आकार के होते हैं. फल एक आकर्षक चमकीले पीले रंग का गोल आकार का फल है. इसके फलों का वजन लगभग 48 ग्राम, रस की मात्रा 50.5 प्रतिशत और खट्टापन 7 प्रतिशत होता है. इसकी उपज क्षमता 22 कुंतल प्रति एकड़ प्रति साल है .

एनआरसीसी नींबू -8

एनआरसीसी नींबू -8 भी एनआरसीसी नागपुर द्वारा विकसित नींबू की एक प्रजाति है. इसके पेड़ मध्यम आकार के होते हैं और इसके फल गोल गुच्छों में लगते हैं. इसके फलों का वजन लगभग 50 ग्राम, रस की मात्रा 51.5 प्रतिशत, अम्लता 8 प्रतिशत तक होती है. इसकी उपज क्षमता 22 क्विंटल प्रति एकड़ प्रति वर्ष है.

थार वैभव

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के बागवानी प्रयोग केंद्र वेजलपुर गोधरा गुजरात ने नींबू की नई किस्म थार वैभव विकसित की है. थार वैभव किस्म के पौधे लगाने के 3 साल बाद तक इससे फल प्राप्त किये जा सकते हैं. इसके फल आकर्षक पीली चिकनी त्वचा वाले गोल होते हैं. वहीं, इसके फलों में रस की मात्रा 49 फीसदी, खटासअम्लता 6.84 फीसदी होती है. एक फल में केवल 6 से 8 बीज होते हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक थार वैभव किस्म का एक पौधा औसतन 60 किलो तक फल पैदा करने की क्षमता रखता है.

कहां मिलेंगे पौधे और किन बातों का रखें खयाल ?

नींबू के पौधे आईएआरआई और एनआरसीसी नागपुर और कृषि विश्वविद्यालय के बागवानी से सम्पर्क कर मंगाए जा सकते है इसके अलावा अपने जिले के कृषि विज्ञान केन्द्र और जिला उद्यान विभाग  से सम्पर्क कर प्राप्त किया जा सकता है. इसके अलावा सरकारी और गैर सरकारी नर्सरी से भी पौधे प्राप्त किए जा सकते हैं. किसी अच्छी नर्सरी से पौधे खरीदकर 24 से 48 घंटे खुली हवादार छाया दें. परिपक्वता के बाद पौधों की मृत्यु की दर कम हो जाती है

कब और कैसे लगाए पौधें ?

सामान्य तौर पर नींबू के पौधे  जुलाई-अगस्त में लगाए जाते हैं. इसकी व्यापारिक खेती के लिए चश्मा विधि से तैयार पौध का इस्तेमाल किया जाता हैं. जिसे सील बडिंग कहते हैं. पौधों की रोपाई कतार से कतार और पौध से पौध से पौध 4 से 5 मीटर की दूरी पर करनी चाहिए. तीन गुणा तीन यानी 3 फीट लंबा, 3 फीट गहरा, 3 फीट चौड़ा एक गड्ढा खोदें, गड्ढा खोदने के बाद गड्ढे की सारी मिट्टी निकाल लें,उस मिट्टी को निकालने के बाद उस मिट्टी में 10 किलो अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद डालें.

मिट्टी में खाद मिलाने के बाद अगर उस क्षेत्र में दीमक की समस्या है तो दीमक को नियंत्रित करने के लिए क्लोरोपाइरीफास दवा का उपयोग किया जाता है, एक गड्ढे के लिए 50 ग्राम क्लोरोपाइरीफास दवा को गोबर और मिट्टी साथ मिलाया जाता है. उसके बाद गड्ढे को अच्छे से भर दें. गड्ढा भराई की प्रक्रिया जून के आखिरी सप्ताह या जुलाई के पहले सप्ताह तक कर देना बेहतर होता है. एक एकड़ में करीब 140 पौधे लगाए जा सकते हैं. इसका पौधा करीब  25 से लेकर 30 रुपए में आसानी से मिल जाता है

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