काशी हंस मूली की उन्नत वेरायटी है. ठंड के मौसम में मूली की खेती अधिकतर राज्यों में की जाती है. इसकी खेती मुख्य रूप से रबी के मौसम में की जाती है. मूली का इस्तेमाल कच्चे सलाद के साथ-साथ सब्जी और अचार बनाने में भी किया जाता है. इसके सेवन से कब्ज और गैस जैसी समस्या नहीं होती है. पथरी की बीमारी में भी इसका सेवन अच्छा माना जाता है. भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब, असम, हरियाणा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में की जाती है. इसके अलावा भी कई राज्यों में इसकी खेती की जाती है. अगर इसकी खेती सही तरीके से की जाए तो बेहतर पैदावार के साथ भारी मुनाफा कमाया जा सकता है. आपको बता दें कि बड़े होटलों और ढाबों में सलाद के तौर पर इस्तेमाल होने की वजह से बाजार में मूली की मांग बनी रहती है. तो आइए जानते हैं मूली की 5 उन्नत किस्मों के बारे में.
मूली की खेती के लिए ठंडी जलवायु अच्छी होती है. इसके लिए 10 से 15 सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है. लेकिन आजकल इसकी खेती पूरे साल की जाती है. हालांकि, अधिक तापमान इसकी फसल के लिए अच्छा नहीं है. इससे जड़ें सख्त और कड़वी हो जाती हैं. अब इसकी खेती के लिए मिट्टी या भूमि की बात करें तो जैविक पदार्थ युक्त दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए अच्छी मानी जाती है. मूली की बुवाई के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.5 के आसपास होना चाहिए.
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मूली की बुआई के लिए उन्नत किस्मों का इस्तेमाल करना चाहिए. उन्नत किस्म के बीजों से बेहतर और स्वस्थ उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. मूली की कुछ उन्नत किस्में काफी प्रचलित हैं जिनमें जापानी सफेद, पूसा देसी, पूसा चेतकी, अर्का निशांत, जौनपुरी, बॉम्बे रेड, पूसा रेशमी, पंजाब आगेटी, पंजाब सफेद, आई.एच. आर1-1 और कल्याणपुर सफेद अच्छी मानी जाती हैं. जबकि रैपिड रेड, व्हाइट टिप्स, स्कार्लेट ग्लोब और पूसा हिमानी किस्में शीतोष्ण क्षेत्रों के लिए अच्छी मानी जाती हैं. काशी हंस इन दिनों काफी अच्छी मानी जा रही है. अगर आप भी इस वैरायटी की खेती करना चाहते हैं तो आप इसे ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं. इसके लिए आपको https://www.mystore.in/en/product/nsc-crop-radish-variety-jw इस लिंक पर क्लिक कर अपना ऑर्डर प्लेस करना होगा.
मूली की कुछ किस्मों को अलग-अलग समय पर बोया जाता है. जिसमें पूसा हिमानी को दिसंबर से फरवरी तक बोया जाता है और पूसा चेतकी को मार्च से मध्य अगस्त तक बोया जा सकता है.
मूली की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खेत तैयार करते समय 200 से 250 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद देनी चाहिए. इसके साथ ही तत्व के रूप में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करना चाहिए. नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले देनी चाहिए और नाइट्रोजन की आधी मात्रा खड़ी फसल को दो बार में देनी चाहिए. जिसमें नाइट्रोजन की 1/4 मात्रा पौधों की शुरुआती वृद्धि के समय और नाइट्रोजन की 1/4 मात्रा जड़ों की वृद्धि के समय देनी चाहिए.