किसान कैसे बढ़ाएं सोयाबीन की उपज, इन 17 आसान पॉइंट्स में समझें

किसान कैसे बढ़ाएं सोयाबीन की उपज, इन 17 आसान पॉइंट्स में समझें

सोयाबीन के लिए चिकनी भारी उपजाऊ, अच्छे जल निकास वाली तथा ऊसर रहित मिट्टी उपयुक्त रहती है. फसल की अच्छी वृद्धि के लिए खेत को भली भांति तैयार करना चाहिए. गर्मी के मौसम में एक गहरी जुताई करनी चाहिए. जिससे जमीन में मौजूद कीड़े, रोग एवं खरपतवार के बीजों की संख्या में कमी होती है. यही नहीं भूमि की जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है. 

Soybean FarmingSoybean Farming
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jan 05, 2024,
  • Updated Jan 05, 2024, 3:18 PM IST

सोयाबीन भारत की एक महत्त्वपूर्ण तिलहनी फसल है. इसे दलहनी फसल भी माना जाता है. लेकिन हमारे देश में तेल की आवश्यकता को देखते हुए एवं सोयाबीन में तेल की प्रचुरता के कारण इसको तिलहन वर्ग में रखा गया है.  तेल निकालने के बाद इसकी खली में भी अच्छी मात्रा में प्रोटीन और खनिज लवण शेष रहते हैं. इसलिए यह जानवरों को खिलाने और खाद के रूप में भी उपयोगी पाया गया है. ऐसे में किसानों को इसकी खेती से अच्छा लाभ मिलता है. लेकिन किसानों के फायदे के लिए इसकी अच्छी पैदावार जरूरी है. इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों  को टिप्स दिए हैं.

सोयाबीन की खेती सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में होती है. बंपर पैदावार के लिए किसानों को इसकी उन्नत किस्में और बुवाई के सही तरीके की जानकारी होना बेहद जरूरी है. उसका तौर तरीका पता है तो उत्पादन अच्छा होगा. 

खेत की तैयारी 

सोयाबीन के लिए चिकनी भारी उपजाऊ, अच्छे जल निकास वाली तथा ऊसर रहित मिट्टी उपयुक्त रहती है. फसल की अच्छी वृद्धि के लिए खेत को भली भांति तैयार करना चाहिए. गर्मी के मौसम में एक गहरी जुताई करनी चाहिए. जिससे जमीन में मौजूद कीड़े, रोग एवं खरपतवार के बीजों की संख्या में कमी होती है. यही नहीं भूमि की जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है. 

खेत से पूर्व फसल के अवशेष व जड़े निकाल कर उसमें भली भांति सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट मिला दें. उसके बाद दो बार कल्टीवेटर से जुताई कर ढेले फोड़कर भूमि को भुरभुरी कर लें. पाटा चलाकर खेत को समतल कर लें. खेत की अच्छी तैयारी अधिक अंकुरण के लिए आवश्यक है.

बुवाई का सही समय

सोयाबीन की बुवाई मॉनसून आने के साथ ही करना चाहिए. बुवाई के समय भूमि में कम से कम 10 सेमी की गहराई तक पर्याप्त नमी होना चाहिए. सोयाबीन की बुवाई के लिए जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय सबसे अधिक उपयुक्त है. देरी से बुवाई करने पर पैदावार में कमी होती है.

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बीज दर

उचित अंकुरण के लिये छोटे एवं मध्यम दाने वाली किस्मों का 80 किलो बीज प्रति हैक्टेयर एवं मोटे दाने वाली किस्मों का 100 किलो बीज प्रति हैक्टेयर की दर से बोना चाहिए.

बीजोपचार 

बोने से पूर्व बीजों को फफूंदनाशक दवाओं से आवश्य उपचारित करें. इसके लिये बीज को 3 ग्राम थायरम या 1 ग्राम कार्बोण्डेजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें. बीजों को ड्रम या घड़े में डालकर फफूंदनाशकों से भली भांति उपचारित करें, जिससे बीजों पर दवा की एक परत बन जाए. बीजोपचार से बीज की सतह पर लगी फफूंद का विनाश होता है और भूमि में रहने वाले रोगाणुओं का भी नाश होता है, जिससे अंकुरण बढ़ता है. इसके बाद बीजों को जीवाणु कल्चर से उपचारित करना आवश्यक है. 

सोयाबीन का उत्पादन बढ़ाने के लिए क्या करें?

गर्मी में गहरी जुताई करें जिससे कीट के शंकु सतह पर आकर तापमान से नष्ट हो जाएं.

जहां तक संभव हो तम्बाकू इल्ली विरोधी किस्मों की बुवाई करें.

 सिफारिशानुसार बीज दर (80 किलो प्रति हैक्टेयर) का प्रयोग करें एवं उचित पौध संख्या हेतु कतार से कतार की दूरी 30-45 सेमी रखें.

स्किप रो बिजाई (प्रत्येक दस पंक्तियों के बाद एक पंक्ति खाली छोड़े, जिससे सिंचाई, दवा का छिड़काव व कीट सर्वेक्षण में सुविधा रहे) करें.

खेत एवं आस-पास की सफाई तथा खरपतवार का प्रबंधन करें.

फसल चक्र में सोयाबीन के अलावा अन्य फसलें जैसे ज्वार, धान, अरहर, मक्का, मूंग, उड़द आदि भी बोएं. 

खड़ी फसल में यूरिया का छिड़काव नहीं करें.

बोने से पूर्व बीज की अंकुरण क्षमता जांच लें.

बीज को पहले फफूंदनाशक दवा से तत्पश्चात कल्चर से उपचारित कर तुरंत बो दें.

उर्वरकों का प्रयोग अवश्य करें.

उर्वरकों को बीज के साथ कभी न मिलाएं

बुवाई ठीक समय पर करें.

उन्नत किस्मों के ही बीज की बुवाई करें. 

खरपतवार नाशक दवा का प्रयोग अवश्य करें.

बुवाई के समय फोरेट का प्रयोग करें.

फलियो का हरापन समाप्त होते ही तथा पत्तियां पीली पड़ते ही फसल काट लें.

फसल काटने के 2-3 दिन बाद थ्रेशर से धीमी गति पर गहाई करें.

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