सरकार एमएसपी कानून के विकल्पों पर विचार करे, एक्सपर्ट ने दिए सुझाव 

सरकार एमएसपी कानून के विकल्पों पर विचार करे, एक्सपर्ट ने दिए सुझाव 

एक्सपर्ट पीके जोशी ने कहा कि एमएसपी को वैध बनाने का मतलब है निजी व्यापारी का पूरी तरह से गायब हो जाना और इसके लिए सरकार को उन वस्तुओं की खरीद, भंडारण और बिक्री के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करना होगा.

एमएसपी वैध होने सभी फसलें खरीदना-बेचना और स्टोरेज करना सरकार के लिए मुश्किल हो जाएगा. एमएसपी वैध होने सभी फसलें खरीदना-बेचना और स्टोरेज करना सरकार के लिए मुश्किल हो जाएगा.
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jan 08, 2025,
  • Updated Jan 08, 2025, 3:41 PM IST

किसान सभी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून की मांग को लेकर आंदोलित हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि एमएसपी को कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं बनाया जा सकता है. सरकार को इसके विकल्पों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. विकल्प के रूप में सरकार उत्पादन की लागत को कवर करने के लिए कृषि बाजार यार्ड (मंडियों) में न्यूनतम नीलामी दर तय करने पर विचार कर सकती है. इससे किसानों को नुकसान नहीं होगा और डिमांड और सप्लाई से प्रॉफिट निर्धारित हो सकेगा. एक्सपर्ट ने कई और सिफारिशों पर विचार करने की सलाह दी है.

एमआरपी पर भी विचार कर सकती है सरकार 

बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार एक्सपर्ट के यह सुझाव किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल 43वें दिन जारी आमरण अनशन के दौरान आए हैं. डल्लेवाल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी बनाने की मांग को लेकर दिल्ली तक विरोध मार्च का नेतृत्व कर रहे हैं. रिजर्व मूल्य किसानों की आय को दोगुना करने वाली (DFI) समिति ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि एपीएमसी यानी कृषि उपज विपणन समिति यार्ड में कृषि उपज लॉट की नीलामी में भाग लेने वालों की ओर से पेश किए गए मूल्य उत्पादन की लागत से कम नहीं होने चाहिए. इसे न्यूनतम आरक्षित मूल्य (एमआरपी) माना जाना चाहिए. इसमें कहा गया है कि इस तरह के प्रावधान को राज्य एपीएमसी अधिनियमों में संशोधन के माध्यम से पेश किया जाना चाहिए.

डीएफआई समिति के पूर्व अध्यक्ष अशोक के दलवई ने कहा कि यह जरूरी है, क्योंकि कमीशन एजेंटों की ओर से किसानों की सहमति के बिना भी कम कीमत को रिजर्व मूल्य के रूप में सामने लाने की प्रवृत्ति देखी जाती है. हालांकि, इससे किसानों के अपने लॉट पर अपेक्षित मूल्य को पाने के अधिकार को नहीं छीना जाना चाहिए, बशर्ते कि अपेक्षित मूल्य न्यूनतम एमआरपी के बराबर या उससे अधिक हो.

सभी फसलें खरीदना-बेचना और स्टोरेज मुश्किल होगा 

राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (एनएएएस) के उपाध्यक्ष पीके जोशी ने कहा कि खुले बाजार की अर्थव्यवस्था में कानूनी एमएसपी संभव नहीं है. क्योंकि, इसका मतलब है कि पूरी कृषि सरकार के जरिए नियंत्रित है. उन्होंने कहा कि सरकार के लिए एमएसपी के दायरे में आने वाली सभी उपज को खरीदना, उसका भंडारण करना और बेचना संभव नहीं है. इस तरह के मार्केट सिस्टम की आर्थिक लागत बहुत अधिक होगी. चावल और गेहूं ऐसे उदाहरण हैं, जहां एफसीआई इन दो वस्तुओं की खरीद, भंडारण और बिक्री कर रहा है. एफसीआई की ओर से खरीद, भंडारण और बिक्री की आर्थिक लागत निजी व्यापार की ओर से की जाने वाली लागत से कहीं अधिक है. 

एमएसपी वैध करने से सरकारी चुनौतियां बढ़ने का अंदेशा  

पीके जोशी ने 2020 में तीन कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त विशेषज्ञ पैनल के सदस्यों में से एक थे. उन्होंने कहा कि एमएसपी को वैध बनाने का मतलब है निजी व्यापारी का पूरी तरह से गायब हो जाना और इसके लिए सरकार को उन वस्तुओं की खरीद, भंडारण और बिक्री के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करना होगा. उन्होंने कहा कि इसके लिए नए संस्थानों का निर्माण करने की भी जरूरत है. इसलिए ऐसे निवेशों की लागत बहुत अधिक है. उन्होंने कहा कि लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिए सरकार को प्राइस लो मैकेनिज्म, प्राइस इंश्योरेंस, गोदाम रसीद सिस्टम, अधिशेष वस्तुओं के लिए प्रभावी व्यापार नीति जैसे विकल्पों को लागू करना चाहिए.

डीएफआई समिति ने सिफारिश की कि इस रिजर्व मूल्य को एक कठिनाई फैक्टर को ध्यान में रखते हुए बांटा जाना चाहिए ताकि इसे किसी जिले में फसल की प्रति हेक्टेयर औसत उपज, क्षेत्र की सिंचाई की स्थिति और इनपुट के फार्मगेट मूल्य के आधार पर क्षेत्रीय रूप से बांटा किया जा सके. 

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