Ridge gourd farming: तोरई की खेती (Torai Farming) करने वाले किसानों के लिए यह खबर बेहद खास है. सब्जियों में तोरई एक नगदी फसल मानी जाती हैं. इसके पौधे लता बेल जैसे फैलते हैं. इसलिए इसे सब्जियों में रखा गया है. आमतौर पर यह फसल दो माह में तैयार होती हैं. लेकिन फर्रुखाबाद के कायमगंज क्षेत्र के हाजीपुर गांव निवासी किसान पंकज गंगवार तोरई की खेती से हर महीने एक लाख रुपए से ऊपर का मुनाफा कमा रहे हैं. इंडिया टुडे के डिजिटल प्लेटफॉर्म किसान तक से खास बातचीत में सफल किसान पंकज गंगवार ने बताया कि वो बीते 3 वर्षों से तोरई की खेती कर रहे हैं. कुल दो बीघे में इस फसल को उगाते है. एक बीधे में 25 से 30 हजार रुपये के बीच लागत आती है. उन्होंने बताया कि रोजाना 3 कैरेट तोरई का उत्पादन हो रहा है. एक कैरेट तोरई में 24 किलो माल होता है.
गंगवार ने आगे बताया कि वह सबसे पहले तोरई की नर्सरी तैयार करते हैं. जिसकी खेतों में रोपाई करने के करीब एक माह में ही तोरई निकलने लगती हैं. जो आमतौर पर तोरई बाजार में महंगी बिकती हैं. जिससे किसानों को होता है अच्छा खासा मुनाफा. दूसरी ओर यहां तैयार नर्सरी मे रोग भी कम लगते है. जिससे लागत में भी आती हैं कमी. इस समय पर तोरई बाजार में आमतौर पर 50 से 70 रुपए प्रति किलो की दर से बिक रही है. ऐसे समय पर इन्होंने एक माह में ही एक लाख रुपए से ऊपर की कमाई हो जाती है. वहीं अगर लटक पद्धति से खेती करते हैं तो 25 हजार रूपए की लागत आ जाती हैं.
कायमगंज क्षेत्र के हाजीपुर गांव निवासी किसान पंकज गंगवार बताते हैं कि इसकी खेती करने के लिए नमीदार खेत में जैविक खाद डालने के बाद जुताई करने के साथ ही खेत को समतल करके 2.5 x 2 मीटर की दूरी पर 30 सेमी x 30 सेमी 30 सेमी आकार के गड्ढे खोदने के बाद तोरई की पौध को रोपना चाहिए. इसके बाद समय से सिंचाई और गुड़ाई की जाती हैं. जब पौधे बड़े हो जाते है. तो तोरई की उन्नत किस्मों के पौधो की रोपाई के बाद कटाई के लिए तैयार होने में एक माह का समय लग जाता है. वहीं तोरई की तुड़ाई कच्ची अवस्था में की जाती है. जिसके बाजार शुरुआत में 50 से 60 रुपए प्रति किलो के दाम मिल जाते हैं. जिसका प्रयोग सब्जी के रूप में करते है. तोरई के एक बीघा खेत में 70-80 हजार रुपए की आसानी से कमाई हो जाती हैं.
आज के मौसम में तोरई की खेती के लिए गर्म और आद्र जलवायु मुफीद है. वहीं इसकी खेती के लिए 25 से 37 डिग्री सेल्सियस तापमान सही माना जाता है. इसकी फसल के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए.
किसान पंकज गंगवार ने बताया कि तोरई की डिमांड छोटे कस्बों से लेकर बड़े शहरों के बाजारों में रहती है. कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा और विटामिन-ए के गुणों से भरपूर तोरई एक नकदी फसल भी है, जिसकी बुवाई जून से जुलाई के बीच की जाती है. तोरई की फसल 70-80 दिनों में फल देना शुरु कर देती है. इस बीच समय पर सिंचाई, निराई-गुड़ाई और पोषण प्रबंधन का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. किसान भाई चाहें तो तोरई की परंपरागत खेती न करके पॉलीहाउस में इसकी संरक्षित फसल उगा सकते हैं.
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