दुनियाभर में चॉकलेट की कीमतों में बढ़ोत्तरी देखी जा रही है, जबकि आने वाले महीनों में कीमतों में और तेजी होने की संभावना है. दरअसल, पश्चिम अफ्रीकी देशों में कोको की फसल को बेमौसम बारिश से भारी नुकसान पहुंचा है, जिससे उत्पादन में गिरावट हुई है और कोको की कीमत 46 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है. कोको बीन के पाउडर से चॉकलेट बनाई जाती है और इसके सबसे बड़े उत्पादक देश आइवरी कोस्ट और घाना भारी जलवायु परिवर्तन को झेल रहे हैं. वहां बेमौसम बारिश ने खड़ी कोको फसल को लगभग तबाह कर दिया है. कोको के साथ चीनी की कीमतों के एक दशक के उच्चतम स्तर पर होने के चलते इस माह क्रिसमस के मौके पर चॉकलेट, कुकीज के दाम बढ़े रहने की आशंका है.
पश्चिमी अफ्रीका में बेमौसम बारिश के चलते कोको के सड़ने से हर जगह चॉकलेट की कीमतें बढ़ रही हैं. इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार कोको किसान उन पौधों को काली फली रोग से बचाने की कोशिशों में जुटे हैं जो बारिश के बाद सड़न से बढ़ रहा है. यह फसल तैयार होने का मुख्य समय है और लगातार बारिश से फूल खिलने से पहले गिर जा रहे हैं. इसके अलावा फलियों में फंगल संक्रमण बढ़ रहा है. यह स्थिति उत्पादन को घटा दिया है.
प्रमुख कोको उत्पादक देश आइवरी कोस्ट और घाना में जलवायु संकट मंडरा रहा है. बहुत अधिक बारिश से उत्पादन कम हो रहा है और फसल में देरी हो रही है, जिसके नतीजे में कोको की कमी से वैश्विक बाजार न्यूयॉर्क में थोक कीमतें 46 वर्षों में सबसे अधिक हो गई हैं. बेमौसम बारिश के चलते घाना का कोको उत्पादन 13 वर्षों में सबसे कम और आइवरी कोस्ट का 7 वर्षों में सबसे कम होने की आशंका जताई जा रही है. अंतरराष्ट्रीय कोको संगठन के अनुसार ये दोनों देश मिलकर दुनिया की लगभग 60% फलियों का उत्पादन करते हैं.
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चॉकलेट बनाने में कोको बीन और चीनी का इस्तेमाल किया जाता है. कोको बीन की कीमत 45 साल के उच्चतम स्तर पर है तो वहीं चीनी की कीमत एक दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है. इस वजह से चॉकलेट और कुकीज के दाम बढ़ रहे हैं. इस माह क्रिसमस पर्व भी है, जिसके मौके पर बड़े पैमाने पर चॉकलेट, कुकीज, केक की खपत होती है. ऐसे में क्रिसमस के मौके पर इन खाद्य पदार्थों की कीमत में अधिक तेजी देखने को मिल सकती है.
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आइवरी कोस्ट और घाना में कोको बाजारों को सरकारों द्वारा सख्ती से नियंत्रित किया जाता है और नियामक आमतौर पर कम से कम 12 महीने पहले विदेशी खरीदारों को बीन्स बेचते हैं. इसका मतलब है कि इस सीजन की फसल के लिए किसानों को दिया जाने वाला पैसा लगभग एक साल पहले ही लॉक कर दिया गया था, जब वायदा लगभग 2,500 डॉलर प्रति टन था, जबकि वर्तमान में यह कीमत 4,500 डॉलर प्रति टन पहुंच गई है.