Black Rice Farming: यूपी के इटावा में हो रही काले चावल की खेती, जैविक खाद से मिली बंपर पैदावार

Black Rice Farming: यूपी के इटावा में हो रही काले चावल की खेती, जैविक खाद से मिली बंपर पैदावार

अरविन्द प्रताप सिंह एक प्रगतिशील किसान हैं. कृषि विभाग के अनुसंधान केंद्रों से प्रशिक्षण लेने के बाद उनके अंदर यह जागरूकता पैदा हुई. तभी से उन्होंने गोमूत्र और गोबर से प्राकृतिक तरीके से फसल पैदा करना सीख लिया. उन्होंने अपने गांव में "गाय आधारित मॉडल पर आधारित प्राकृतिक कृषि फार्म" बनाया है.

काले चावल की खेती कर चर्चा का विषय बन गए ये किसानकाले चावल की खेती कर चर्चा का विषय बन गए ये किसान
अमित तिवारी
  • Etawah,
  • Sep 04, 2023,
  • Updated Sep 04, 2023, 2:21 PM IST

आपने सफेद रंग के चावल तो खूब खाए और देखे होंगे. लेकिन बीमारी की हालत में डॉक्टर द्वारा चावल खाने से परहेज करने को कहा जाता है. वहीं एक ऐसा चावल जो कई क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है. इटावा जिले की जसवन्तनगर तहसील के अंतर्गत ग्राम सिरहौल के अरविंद प्रताप सिंह परिहार काले चावल का उत्पादन कर क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गये हैं. यह काला चावल औषधि गुणों से भरपूर है. इसमें भारी मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट, मल्टीविटामिन, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक जैसे कई तत्व पाए जाते हैं. यह काला दिखने वाला चावल कई गंभीर बीमारियों में भी फायदेमंद साबित हो रहा है. अरविन्द प्रताप इसे विशेष रूप से बिना खाद और बिना चारागाह की मदद से उगा रहे हैं. वे इसकी खेती गाय के गोबर और गोमूत्र से करते हैं. अरविंद प्रताप को स्वांस की बीमारी हो गई थी तब उन्हें डॉक्टर ने चावल जैसी चीज खाने को मना किया था.

ऐसे में वह यूट्यूब पर खाने-पीने के बारे में देख रहे थे. तभी काले चावल के फायदों के बारे में पता चला. जिसे गंभीर बीमारी में भी खाया जा सकता है. तभी से उन्होंने ठान लिया और ऑनलाइन काले चावल के बीज ऑर्डर किए और स्थानीय गाय के गोबर और गोमूत्र से इसका उत्पादन शुरू कर दिया.

आधा बीघा जमीन से शुरू की थी काले चावल की खेती

इसको सबसे पहले आधा बीघा में उपजा कर इसका प्रयोग किया और फिर अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को यह फ्री में बांटा. जिसके बाद उन्हें इस चावल से काफी फायदे प्राप्त हुए. उसके बाद उन्होंने इसी काले चावल को ढाई एकड़ जमीन में उगाया. काले चावल के उत्पादन के साथ-साथ उन्होंने अपने यहां एक बीघा में काले गेहूं का भी उत्पादन किया था. जिसको अपने खाने के प्रयोग में लिया और अपने दोस्तों में भी बांटा. काले चावल और गेहूं की पैदावार के बाद इलाके में चर्चा शुरू हो गई है, लेकिन आपको बता दें कि अरविंद प्रताप सिंह सारी खेती प्राकृतिक तरीके से करते हैं. जिसमें केवल स्थानीय गाय के गोबर और गोमूत्र का उपयोग किया जाता है. पारंपरिक खेती के कारण अरविंद प्रताप को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा. लेकिन जब से प्राकृतिक खेती और उत्पादन के आधुनिक तरीके शुरू हुए हैं. हम कम जगह में भी अच्छा उत्पादन कर पा रहे हैं और आर्थिक स्थिति में भी मजबूत सुधार हो रहा है.

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1500 किसानों को सीखा चुके हैं प्राकृतिक खेती का तरीका

अरविन्द प्रताप सिंह एक प्रगतिशील किसान हैं. कृषि विभाग के अनुसंधान केंद्रों से प्रशिक्षण लेने के बाद उनके अंदर यह जागरूकता पैदा हुई. तभी से उन्होंने गोमूत्र और गोबर से प्राकृतिक तरीके से फसल पैदा करना सीख लिया. उन्होंने अपने गांव में "गाय आधारित मॉडल पर आधारित प्राकृतिक कृषि फार्म" बनाया है. नेचुरल मिशन ओं नेचुरल फार्मिंग ट्रेनिंग सेंटर खोला है. यह अपने यहां प्राकृतिक तरीके से गोमूत्र और गोबर से खाद बनाकर फसल तैयार करना सिखाते हैं और यह किसानों को निशुल्क ट्रेनिंग देते हैं. अब तक लगभग 1500 किसानों को यह प्राकृतिक खेती करना सीखा चुके हैं. और खास तौर पर काले चावल और काले गेहूं के उत्पादन को बढ़ावा दे रहे हैं.

2000 किसानों को ट्रेनिंग देने का लक्ष्य

अब इस बार फिर से 2000 किसानों को ट्रेनिंग देने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं. बात करें काले चावल की तो यह मणिपुर और असम में सर्वाधिक पैदा किया जाता है. इस काले चावल की प्रजाति को चाखाऊ और कलावती के नाम से जाना जाता है. सामान्य तौर पर अन्य चावल की अपेक्षाकृत इस किस्म की सर्वाधिक महंगा है और इसकी बिक्री की कीमत 250 रुपए प्रति किलोग्राम के साथ-साथ 400 रुपए प्रति किलोग्राम तक होती है. आसपास के क्षेत्र में इसकी डिमांड सामान्य तौर पर  नहीं होती है लेकिन ऑनलाइन बिक्री में इसकी महंगा बहुत ज्यादा है. प्रगतिशील किसान अरविंद भी इस चावल को ऑनलाइन बिक्री का प्रारूप तैयार कर चुके हैं. ट्रेनिंग में किसानों को इसकी खेती के साथ-साथ ऑनलाइन बिक्री को भी बढ़ावा दे के लिए किसानों को बता रहे हैं और उसके तौर तरीकों को भी शामिल किया है.

इन चीजों को मिलाकर तैयार करते हैं जैविक खाद

कृषि विभाग के उप निदेशक. एन. सिंह के अनुसार, इस काले चावल का उत्पादन चीन में कुलीन वर्ग द्वारा किया जाता था. इस चावल में अच्छा फाइबर होता है. एंटीऑक्सीडेंट के अच्छे गुण हैं, शरीर के अंदर विषैले तत्वों को बाहर करता है. चीन से ही यह मणिपुर, मेघालय, असम की तरफ आया है. इसकी गुणवत्ता बहुत अच्छी है. पूर्वांचल के कुछ जिलों से यह एक्सपोर्ट भी किया जाता है और वन नेशन वन प्रोडक्ट में भी यह काला चावल शामिल है. इटावा में भी इस काले चावल का उत्पादन यहां के लोग कर रहे हैं. प्राकृतिक खेती करने के बाद ही उत्पादन से यह गुणवत्ता युक्त रहता है और शरीर को अच्छा लाभ देता है. प्राकृतिक खेती में खाद तैयार करने के लिए गाय का गोबर, गोमूत्र, बेसन, गुड और पेड़ के नीचे की मिट्टी को मिलाकर तैयार किया जाता है. 

 

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