Aloe Vera Farming: एलोवेरा की खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं किसान, जानें- उन्नत किस्में और खेती का तरीका

Aloe Vera Farming: एलोवेरा की खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं किसान, जानें- उन्नत किस्में और खेती का तरीका

कैसे करें एलोवेरा की खेती, कैसी मिट्टी है उपयुक्त, जानिए कौन-कौन सी किस्मों में मिलेगी अच्छी पैदावार. इसकी खेती कर किसान अपनी अच्छा आय बढ़ा सकते हैं.

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क‍िसान तक
  • Noida,
  • Dec 02, 2023,
  • Updated Dec 02, 2023, 2:35 PM IST

मौजूदा वक्त में आयुर्वेदिक और इम्युनिटी बढ़ाने वाले प्रोडक्ट की डिमांड काफी है. वहीं बात चाहे कॉस्मेटिक प्रोडक्ट की करें या आयुर्वेदिक दवा की, एलोवेरा का इन सभी में काफी इस्तेमाल किया जाता है. यही वजह है कि बाजार में इसकी डिमांड हमेशा बनी रहती है. ऐसे में इस रबी सीजन में तरबूज की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है.एलोवेरा यह एक अंग्रेजी नाम है, हिंदी में इसे घृतकुमारी और ग्वारपाठा के नाम से जानते हैं.  एलोवेरा का इस्तेमाल दवा-औषधि, फिटनेस, हर्बल प्रोडक्ट्स और सौंदर्य प्रसाधन आदि में किया जाता है. कई बड़ी कंपनियां ऊंचे दामों पर इसे खरीदने को तैयार है. ऐसे में किसान अगर इसकी खेती सही समय और उचित तरीके से करते हैं तो उन्हें अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों मिल सकता हैं. 

वहीं भारत में ज्यादातर इसकी खेती पंजाब, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, उड़ीसा, राजस्थान और उत्तराखंड में की जाती है.

देश-विदेश में रहती है भारी डिमांड

आपको बता दें कि देश-विदेश की कई बड़ी कंपनियों को डिमांड के मुताबिक एलोवेरा की खेती नहीं होने के कारण अच्छी क्वालिटी वाला एलोवेरा नहीं मिल पा रहा है. यही कारण है कि एलोवेरा की खेती अब मुनाफे का सौदा बन गई है. इसलिए आप भी अगर अपना कोई काम शुरू करना चाहते हैं तो आप एलोवेरा की खेती कर सकते हैं. ऐसे में अगर आप कंपनियों की डिमांड के मुताबिक अच्छी क्वालिटी वाले एलोवेरा का उत्‍पादन करते हैं तो इसके जरिए लाखों रुपये की कमाई हो सकती है.

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कैसी होनी चाहिए जलवायु और मिट्टी 

यह उष्ण तथा समशीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है.कम वर्षा तथा अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जा सकती है. इसकी खेती किसी भी प्रकार की भूमि में की जा सकती है. इसे चट्टानी, पथरीली, रेतीली भूमि में भी उगाया जा सकता है, किन्तु जलमग्न भूमि में नहीं उगाया जा सकता है.बलुई दोमट भूमि जिसका पी.एच. मान 6.5 से 8.0 के मध्य हो तथा उचित जल निकास की व्यवस्था हो उपयुक्त होती है.

खेत की तैयारी

ग्रीष्मकाल में अच्छी तरह से खेत को तैयार करके जल निकास की नालियां बना लेना चाहिये तथा वर्षा ऋतु में उपयुक्त नमी की अवस्था में इसके पौधें को 50 & 50 सेमी. की दूरी पर मेढ़ अथवा समतल खेत में लगाया जाता है. कम उर्वर भूमि में पौधों के बीच की दूरी को 40 सेमी. रख सकते हैं. जिससे प्रति हेक्टेयर पौधों की संख्या लगभग 40,000 से 50,000 की आवश्यकता होती है. इसकी रोपाई जून-जुलाई माह में की जाती है. परन्तु सिंचित दशा में इसकी रोपाई फरवरी में भी की जा सकती है.

खाद एवं उर्वरक

सामान्यतया एलोवेरा की फसल को विशेष खाद अथवा उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है. परन्तु अच्छी बढ़वार एवं उपज के लिए 10-15 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद को अंतिम जुताई के समय खेत में डालकर मिला देना चाहिए. इसके अलावा 50 किग्रा. नत्रजन, 25 किग्रा. फास्फोरस एवं 25 किग्रा. पोटाश तत्व देना चाहिये जिसमे से नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी रोपाई के समय तथा शेष नत्रजन की मात्रा 2 माह पश्चात् दो भागों में देना चाहिए अथवा नत्रजन की शेष मात्रा को दो बार छिड़काव भी कर सकते हैं.

एलोवेरा की उन्नत किस्में 

एलोवेरा की लगभग 150 प्रजातियां हैं. जिनमें से एलो बार्बेडेंसिस, ए.चिनेंसिस, ए. परफोलियाटा, ए. वल्गारिस, ए इंडिका, ए.लिटोरेलिस और ए.एबिसिनिका आमतौर पर उगाई जाने वाली किस्में हैं और इनमें सबसे अधिक चिकित्सीय गुण पाया जाता है. सीमैप, लखनऊ ने भी एलोवेरा की उन्नत प्रजाति (अंकचा/एएल-1) विकसित की है. एलोवेरा की व्यावसायिक खेती के लिए किसान इस किस्म के लिए इस संस्थान से संपर्क कर सकते हैं.

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