अगर आप खेती से अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो हल्दी की खेती एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है. हल्दी की खेती से प्रति एकड़ लगभग 4 लाख रुपये तक का लाभ प्राप्त किया जा सकता है. चूंकि इसका उपयोग प्रत्येक घर में किया जाता है, तो इसकी मांग हमेशा बनी रहती है. इसके अलावा, आयुर्वेदिक और एलोपैथिक दवाओं में भी हल्दी का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है. तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर द्वारा विकसित इस नई तकनीक से हल्दी की खेती की लागत कम करने और उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलती है. इस पद्धति में पारंपरिक तरीके की तुलना में बीज की जरूरत 60 फीसदी तक कम होती है.
आमतौर पर प्रति एकड़ 10 क्विंटल बीज की जरूरत होती है, लेकिन इस तकनीक से केवल 3-4 क्विंटल बीज पर्याप्त होता है, जिससे करीब 30,000 से 40,000 रुपये तक की बचत होती है. हल्दी की खेती के लिए सबसे पहले स्वस्थ और रोग-मुक्त प्रकंदों का चयन करें. चयनित प्रकंदों को एकल कली (सिंगल बड) में काटें, जिसमें प्रत्येक टुकड़े में कम से कम एक अंकुर (bud) हो. इन प्रकंदों को 0.25% इंडोफिल, एम-45 घोल में 30 मिनट तक डुबोकर उपचारित करें, ताकि रोग रहित और स्वस्थ पौधे विकसित हो सकें.
ये भी पढ़ें: Turmeric price: हल्दी के दाम में भारी गिरावट, 10000 रुपये क्विंटल भी नहीं मिल रहा भाव
हल्दी की इस नई तकनीक में प्रो ट्रे मे नर्सरी उगाई जाती है. इस तकनीक में सबसे पहले ग्रोइंग मीडिया कोकोपीट, वर्मीकुलाइट और परलाइट को 3:1:1 के अनुपात में मिलाकर प्रो-ट्रे के प्रत्येक खाने में भरें. इसके बाद प्रत्येक खाने के केंद्र में हल्का गड्ढा बनाकर उसमें एक-एक हल्दी के टुकड़े की बुवाई करें. इसके बाद नर्सरी को सात दिनों तक पॉलीथीन शीट से ढक दें और सात दिन बाद पॉलीथीन शीट हटाकर पौधों को 50 परसेंट छाया में रखें. पहली पत्ती निकलने पर 0.5% ह्यूमिक एसिड का छिड़काव करें. 30-35 दिनों के भीतर पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाएंगे.
हल्दी की बुवाई अप्रैल से अगस्त माह के बीच की जाती है. जिन क्षेत्रों में सिंचाई की उचित व्यवस्था नहीं होती, वहां मॉनसून की शुरुआत (जुलाई) में बुवाई की जाती है. यदि खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो, तो मध्य अगस्त तक भी रोपाई संभव है. हल्दी की रोपाई के लिए 15 सेमी ऊंची, 1 मीटर चौड़ी और 3-4 मीटर लंबी क्यारियां बनाएं. पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखें. पौधों को 5 सेमी गहरी नालियों में लगाएं. अगर सिंचाई सुविधा हो, तो टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली अपनाएं, जिससे जल की बचत होगी. इस तकनीक से हल्दी की फसल 6-8 महीने में तैयार हो जाती है.
हल्दी स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है, जिससे इसकी मांग और बढ़ जाती है. हल्दी का कुल वैश्विक कारोबार लगभग 304 मिलियन डॉलर का है, वहीं भारत लगभग 190 मिलियन डॉलर कारोबार के साथ निर्यात में 60 प्रतिशत से अधिक से अधिक हिस्सेदारी रखता है. वैश्विक स्तर पर हल्दी का उत्पादन करीब 11 लाख टन है. भारत की 2019-20 में कुल मसाला निर्यात में हल्दी की हिस्सेदारी 11 प्रतिशत और मूल्य के आधार पर 6 प्रतिशत रही है. हल्दी की बढ़ती मांग को देखते हुए यह तकनीक किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर हो सकती है. अगर किसान इस उन्नत विधि को अपनाते हैं, तो वे अपनी खेती की लागत को कम कर सकते हैं और अधिक मुनाफा कमा सकते हैं.
ये भी पढ़ें: अदरक समेत 4 फसलों की सरकारी खरीद मार्च में शुरू होगी, किसानों को MSP दाम मिलेगा