पशुओं के लिए चारे का इंतजाम थोड़ा मुश्किल काम है. खासकर हरे चारे का बंदबोस्त करना तो और भी मुश्किल है. बरसाती सीजन में आसानी से मिल भी जाए, लेकिन गर्मियों में तो हालत खराब हो जाती है. हरे चारे का नामोनिशान नहीं दिखता. ऐसे में किसान और पशुपालकों को बहुत जूझना पड़ता है. बात अगर बकरी की करें तो उसके लिए और भी परेशानी हो जाती है. बकरी चुनिंदा घास खाती है या चुनिंदा पेड़-पौधों की पत्तियां ही खिला सकते हैं. इन तमाम चुनौतियों के बीच एक अच्छी खबर है. अगर आप बकरी पालते हैं और चारे की कमी से जूझ रहे हैं तो अंजन वृक्ष की पत्तियां आजमा सकते हैं.
बकरियों के लिए अंजन वृक्ष की पत्तियों का प्रयोग हरे चारे के रूप में किया जा सकता है. इसकी पत्तियां पौष्टिक, पाचक, क्रूड प्रोटीन और खनिज तत्वों से भरपूर होती हैं. इसकी पत्ती में पौष्टिकता घास के चारे से अच्छी होती है. अंजन वृक्ष की केवल पत्तियों को खिलाकर बकरियों को पाला जा सकता है. इसकी पत्तियों से वर्ष के अधिकतर महीनों में हरा चारा प्राप्त होता है. यह पेड़ बहुत कम समय के लिए केवल मार्च के अंत और अप्रैल के शुरू में पत्ते गिराता है. बाकी पूरे महीने में इस पर पत्तियां लगी रहती हैं.
डेढ़-दो महीने पत्तियां गिरने के बाद अंजन वृक्ष पर 15 अप्रैल के बाद नई पत्तियां आ जाती हैं. जब देश के अधिकांश इलाकों में जाड़े और गर्मी के दिनों में घासे सूख जाती हैं, उस समय अंजन वृक्ष का पत्ता बहुत काम करता है. इस मुश्किल समय में अंजन वृक्ष बकरियों को पौष्टिक चारा उपलब्ध कराता है. इसकी पत्तियों को घास के साथ मिलाकर चारे की पौष्टिकता को बढ़ाया जा सकता है.
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अंजन वृक्ष का चारागाह बनाया जा सकता है और उसकी पत्तियों को चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. इसका पेड़ 48 डिग्री सेल्सियस तापमान को भी बर्दाश्त कर सकता है. यहां तक कि बलुआ पत्थऱ, कंकड़ और चट्टानयुक्त मिट्टी में आसानी से उगा सकते हैं. इस पेड़ पर सूखे का कोई असर नहीं पड़ता. तभी सूखा क्षेत्र में बकरीपालन करने वालों के लिए यह पेड़ बहुत लाभदायक है क्योंकि साल के लगभग हर महीने में हरा चारा मिलता रहता है.
सूखारोधी वृक्ष होने के कारण अंजन का पेड़ लंबे समय तक पड़ने वाले सूखे और अधिक तापमान को भी सहन कर सकता है. इसकी मूसला जड़ जमीन में बहुत गहराई तक जाती है. इससे यह सूखे के समय कम गहरी और चट्टानयुक्त मिट्टी में भी जीवित रहता है. यह चारे में अपने अलग-अलग उपयोग, इमारती और जलाऊ लकड़ी, चारकोल, रेशा और कैनोपी स्ट्रक्चर के कारण वन-चारागाह के लिए बेहद उपयोगी वृक्ष है.
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