बिहार में किसान आजिविका के लिए खेती-किसानी के अलावा पशुपालन भी करते हैं. दूसरा विकल्प यही है, जिससे कमाई बढ़ती है. जहां एक ओर बड़े किसान गाय-भैंस पालते है तो वहीं दूसरी ओर छोटे व सीमांत किसान बकरी का व्यवसाय करते हैं. कई बार छोटे किसानों द्वारा बकरी पालन के व्यवसाय में मौसम और जलवायु के अनुकूल नस्ल न चुनने के कारण ज्यादा ठंड और गर्मी पड़ने पर बकरियों की मौत हो जाती है और उन्हें आर्थिक हानि उठानी पड़ती है. अगर आप भी बिहार में रहते हैं और बकरी पालने की प्लानिंग कर रहे हैं तो बकरी की इन नस्लों के बारे में जान लीजिए. इन नस्लों से खासकर बिहार के किसान अच्छी आय हासिल कर सकते हैं.
पशु चिकित्सकों की मानें तो बिहार में देसी नस्ल की बकरियों काे पालना सबसे अधिक लाभदायक रहेगा. यहां बीटल जखराना, ब्लैक बंगाल और बरबरी नस्ल की बकरियां पालन के लिए उपयुक्त है. इन नस्लों में से भी ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरियां बिहार की जलवायु के हिसाब से सही रहेंगी और यहां के मौसम में जल्दी ढल जाएंगी. वहीं, इन बकरियों के रख-रखाव पर भी ज्यादा खर्च नहीं आता है. सामान्य तरीके से रखने पर भी इनके स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है. बिहार के अलावा ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरियां पश्चिम बंगाल के पशुपालकों में भी लोकप्रिय है.
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ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरी अपने पूरे जीवन में 50 से 57 लीटर दूध देती है. वहीं, यह दो साल में तीन बार बच्चे को जन्म देती है. ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरी 10 महीने में बड़ी हो जाती है, जिससे यह जल्दी बेचने लायक हो जाती है. इस नस्ल के बकरे का वजन 18-20 किलोग्राम के बीच होता है, जबकि मादा का वजन 15-18 किलोग्राम तक होता है. वहीं, इनकी खुराक भी कम होती है, जिससे इनपर कम पैसा खर्च होता है.
यही वजह है कि कम खर्च में बकरी पालन का व्यवसाय शुरू करने के लिहाज से यह नस्ल एकदम उपयुक्त है. ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरियों के चारे की बात करें तो हरी घास इसकी फेवरेट मानी जाती है, लेकिन ये पेड़ों के पत्ते भी खाना पसंद करती है. इन्हें रोजाना तीन किलो तक हरा चारा खिलाया जा सकता है. वहीं, इसके अतरिक्त इन्हें 300 ग्राम दाना भी खाने को दिया जा सकता है. जिन बकरियों को खेत में चराया जाता है, उन्हें 100 ग्राम तक दाना दिया जाना चाहिए.