बिहार में धान और पशुपालन से निकली ग्रीनहाउस गैस बड़ी समस्या, इन तीन तरीकों से पा सकते हैं निजात

बिहार में धान और पशुपालन से निकली ग्रीनहाउस गैस बड़ी समस्या, इन तीन तरीकों से पा सकते हैं निजात

धान की खेती के बारे में कहा गया है कि खेतों में पानी भरे होने से मिथेन गैस का बहुत अधिक उत्सर्जन होता है क्योंकि ऑर्गेनिक चीजें पानी में सड़ती हैं जिससे गैस बनती और निकलती है. भारत दुनिया में 22 फीसद इस तरह की गैस का उत्सर्जन करता है जिसमें बिहार भी शामिल है क्योंकि वहां धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है.

धान की खेती के लिए मटियार और दोमट मिट्टी सबसे मुफीद मानी जाती है. धान की खेती के लिए मटियार और दोमट मिट्टी सबसे मुफीद मानी जाती है.
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jun 12, 2024,
  • Updated Jun 12, 2024, 8:22 PM IST

बिहार कृषि में बहुत बड़ा सुधार कर सकता है. इसके लिए कुछ जरूरी उपाय अपनाने होंगे. टेक्नोलॉजी का सहारा लेकर कृषि को बेहतर बनाया जा सकता है. इसमें तीन तरह की तकनीकों का जिक्र है जिसके बारे में टाटा-कोरनेल की एक स्टडी में विस्तार से जानकारी दी गई है. इसकी रिपोर्ट कहती है कि बिहार खेती और पशुपालन से पैदा होने वाले ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को बहुत हद तक कम कर सकता है. इसके लिए तकनीक का सहारा लेते हुए इन गैसों को कम किया जा सकता है. अच्छी बात ये है कि इससे खेती और उसकी उत्पादकता पर कोई विपरीत असर भी नहीं पड़ेगा.

टाटा-कोरनेल की स्टडी में कहा गया है कि बिहार हर साल 9.4-11.2 टन तक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम सकता है. बशर्ते कि वह कुछ तकनीकों पर ध्यान दे और अमल करे. इसके लिए तीन बातों पर गौर करने की सलाह दी गई है. पहला, धान की खेती में पानी के इस्तेमाल और उसे सुखाने के लिए किसी वैकल्पिक तरीके का इस्तेमाल हो. दूसरा, पशुओं के प्रजनन के लिए एडवांस्ड आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन का प्रयोग और तीसरा, पशुओं के लिए एंटीमिथेनोजेनिक फीड सप्लीमेंट का इस्तेमाल बढ़ाया जाना चाहिए. बिहार अगर इन तीन बातों पर गौर करे तो खेती और पशुपालन से पैदा होने वाली ग्रीनहाउस गैसों को कम किया जा सकता है.

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क्या कहती है टाटा की रिपोर्ट

धान की खेती के बारे में कहा गया है कि खेतों में पानी भरे होने से मिथेन गैस का बहुत अधिक उत्सर्जन होता है क्योंकि ऑर्गेनिक चीजें पानी में सड़ती हैं जिससे गैस बनती और निकलती है. भारत दुनिया में 22 फीसद इस तरह की गैस का उत्सर्जन करता है जिसमें बिहार भी शामिल है क्योंकि वहां धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है. अगर खेत में पानी की मात्रा कम रखी जाए और कम पानी खपत की सिंचाई का इस्तेमाल करें तो इस गैस को कम कर सकते हैं. इसके लिए ड्रिप सिंचाई जैसी सुविधा पर फोकस करने या कम पानी वाली वैरायटी की खेती पर ध्यान लगाने की सलाह दी जाती है. धान को सुखाने में भी गैस का भारी उत्सर्जन होता है जिसके लिए वैकल्पिक स्रोत पर गौर करने की सलाह दी गई है.

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इसी तरह की सलाह पशुपालन के लिए भी है. इसमें भी गैसों का बहुत उत्सर्जन होत है. खासकर पशुओं के कृत्रिम गर्मधान में और पशुओं के चारा-दाना बनाने में. एक आंकलन के मुताबिक बिहार में 2050 तक 460 लाख पशुओं की संख्या हो सकती है जिससे गैस उत्सर्जन की समस्या बढ़ सकती है. टाटा-कोरनेल की स्टडी बताती है कि आगे चलकर गैसों का उत्सर्जन बड़ी समस्या हो सकती है जिससे बचाव के लिए अभी से कदम उठाए जाने चाहिए. इसके लिए गर्भाधान और पशुओं के पूरक आहार में बदलाव करने की सलाह दी गई है. बिहार इन बातों पर गौर कर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम कर सकता है.

 

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