देश में हर साल दूध का उत्पादन तेजी के साथ बढ़ रहा है. बीते साल 231 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ था. यानि करीब 60 करोड़ लीटर दूध प्रतिदिन. जबकि 50 साल पहले तक दूध का उत्पादन 24 मिलियन टन था. डेयरी एकसपर्ट का कहना है कि दूध में इतनी तरक्की करने के बाद भी हम प्रति पशु दूध उत्पादन के मामले में बहुत पीछे हैं. कई-कई छोटे-छोटे देशों में प्रति पशु दूध उत्पादन हमसे बहुत ज्यादा है. इसी के चलते मिल्क रेव्युलेशन-2 की चर्चा हो रही है. ठीक वैसे ही जैसे दुग्ध क्रांति के पितामाह डॉ. वर्गीस कुरियन मिल्की रेव्युलेशन चलाया था.
उन्हीं के इस आंदोलन के चलते ही दूध उत्पादन 24 मिलियन से 231 मिलियन टन पर पहुंचा है. मिल्क रेव्युलेशन-2 के लिए डेयरी एक्सपर्ट खास छह बिन्दु ओं पर चर्चा कर रहे हैं. उनका कहना है कि डेयरी सेक्टिर में इन्हें शामिल कर घरेलू और एक्स पोर्ट बाजार को बढ़ाने के साथ ही प्रति पशु दूध उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है.
ये भी पढ़ें: Feed-Fodder: भैंस को दाना-चारा खिलाते वक्त रखें इन 16 बातों का ख्याल, पढ़ें CIRB की रिपोर्ट
हाल ही में डेयरी से जुड़े एक बड़े कार्यक्रम के दौरान इंडियन डेयरी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट डॉ. आरएस सोढ़ी ने बताया कि मिल्क रेव्युलेशन-2 की अगर शुरुआत होती है तो इससे डेयरी सेक्टर और उससे जुड़े पशुपालकों की तस्वीर एकदम बदल जाएगी. लेकिन इसके लिए हमे खासतौर से छह बिन्दु्ओं पर काम करने की जरूरत है. पहले तो हमे प्रति पशु दूध उत्पादन बढ़ाने पर जोर देना होगा. आधुनिक प्रोसेसिंग प्लांट बनाने के साथ ही उनकी संख्या भी बढ़ानी होगी. एक्सपोर्ट और घरेलू दोनों स्तर के बाजार का दायरा बढ़ाना होगा. इंटरनेशनल मार्केट में डिमांड को देखते हुए हमे घी पर काम करना होगा. इतना ही नहीं सरकार को चाहिए कि वो कोऑपरेटिव, डेयरी वैल्यू चेन और इंफ्रास्ट्रक्चर में इंवेस्ट करे. पशुओं की चारा लागत को कम करना होगा.
आरएस सोढ़ी ने दूध उत्पादन बढ़ाने के टिप्स देते हुए कहा कि आज सबसे बड़ी जरूरत ज्यादा से ज्यादा किसानों को पशुपालन में लाने और जो पहले से काम कर रहे हैं उन्हें रोकने की है. चार-पांच गाय-भैंस पालने वाले किसान को कुछ बचता नहीं है और दूध की कमाई का एक बड़ा हिस्सा चारे में खर्च हो जाता है. बिजली बहुत महंगी हो गई है. अच्छा मुनाफा ना होने की वजह से किसान के बच्चे आज पशुपालन नहीं करना चाहते हैं. पशुपालन अर्गेनाइज्ड करना होगा, क्योंकि ऐसा होने से दूध उत्पादन की लागत कम आती है.
बीके करना, डायरेक्टर, पैकेजिंग क्लीनिक एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट का कहना है कि अच्छी या खराब पैकेकिंग का असर खाने के सामान पर भी पड़ता है. खासतौर से डेयरी प्रोडक्ट पर. दूध को छोड़कर बाकी सारे डेयरी प्रोडक्ट प्रोसेस होते हैं. आइसक्रीम में भी पैकिंग का बड़ा रोल है. इतना ही नहीं पैकिंग के चलते ही डेयरी प्रोडक्ट के रेट पर भी असर पड़ता है.
ये भी पढ़ें: Breeder Bull: AI से गाय-भैंस को गाभिन कराने के लिए ब्रीडर सांड की ऐसे करनी होगी देखभाल
FSSAI की डिप्टी डायरेक्टर, दिल्ली मोहिनी पूनिया का कहना है कि आज ग्राहकों में जागरुकता आ गई है. पहले लोग सिर्फ क्वालिटी कंट्रोल वाली संस्था का निशान देखकर ही संतुष्ट हो जाते थे. लेकिन अब खाने के किसी भी पैकेट को खोलने से पहले ग्राहक उस पर बनने के साथ ही इस्तेमाल होने तक की तारीख देखता है. दूध के मामले में लोग फैट तक चेक करने लगे हैं. इसलिए प्रोडक्ट को बाजार में बेचने के लिए निर्माता को प्रोडक्टह की क्वाअलिटी पर खास ध्याहन देना होगा.
Copyright©2024 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today