पूरे देश में एक जुलाई 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. प्लास्टिक के इन्हीं उत्पादों में से एक प्लास्टिक स्ट्राॅ का सबसे ज्यादा उपयोग पेय पदार्थों को पीने के लिए होता है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब पूरे देश में प्लास्टिक के स्ट्राॅ पर भी पूरी तरीके से रोक है, जिसके चलते अब पेपर स्ट्रॉ का उपयोग किया जा रहा है. पेपर स्ट्रॉ बनाने के लिए पेड़ों का उपयोग होता है, जिससे पर्यावरण को क्षति पहुंच रही है. ऐसे में वाराणसी के पद्मश्री से सम्मानित किसान चंद्रशेखर रघुवंशी ने गेहूं के डंठल से नेचुरल स्ट्राॅ तैयार किया है. यह इसका पूरी तरीके से पेय पदार्थों को पीने के लिए उपयोगी है. यहां तक की कई देशों में इस तरह के स्ट्राॅ का उपयोग भी किया जा रहा है.
किसान तक से बातचीत में चन्द्रशेखर रघुवंशी का कहना है कि अगर सरकार इस गेहूं के डंठल से बने स्ट्राॅ के उपयोग को बढ़ावा दें तो इससे किसानों की आय में भी जबरदस्त इजाफा होगा और तो और फसल अवशेष को जलाने की समस्या का समाधान भी होगा.
सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के बाद आप देश में कागज के पैकेट और पेय पदार्थों के लिए पेपर स्ट्रॉ का उपयोग बढ़ चुका है. कागज बनाने के लिए हमारे पेड़ों का ही उपयोग होता है. ऐसे में इसी बात को ध्यान में रखते हुए और पर्यावरण के साथ-साथ किसानों की आय बढ़ाने के लिए पद्मश्री से सम्मानित वाराणसी के किसान चंद्रशेखर रघुवंशी ने सरकार को एक राह दिखाई है. उन्होंने गेहूं के डंठल से एक नेचुरल स्ट्राॅ का निर्माण किया है. उन्होंने बताया कि वह खुद अपने घरों में गर्मी के मौसम में किसी भी पेय पदार्थ को पीने के लिए इसी स्ट्राॅ का उपयोग करते हैं. यह काफी सस्ता और पूरी तरीके से इको फ्रेंडली है. यहां तक कि यह पूरी तरीके से सेहत के लिए भी सुरक्षित है.
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पद्मश्री चंद्र शेखर रघुवंशी ने किसान तक को बताया कि उन्होंने एक हाइब्रिड किस्म का गेहूं तैयार किया है, जिसका डंठल काफी बड़ा होता है. वह इसी डंठल से नेचुरल स्ट्राॅ का निर्माण किया है. गेहूं की एक डंठल से दो बड़े और दो छोटे स्ट्राॅ तैयार होते हैं. इस स्ट्राॅ के उपयोग से किसानों की आय बढ़ेगी तो वहीं गेहूं की मुख्य उपज लेने के बाद इससे प्रति हेक्टेयर 40 से 50000 रुपये तक की आय भी मिलेगी. कई यूरोपीय देशों में इस तरह स्ट्राॅ का उपयोग होता है, जिसकी कीमत 1 से 2 रुपये तक होती है.
आजकल पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर किसानों के द्वारा हार्वेस्टर से गेहूं की कटाई की जा रही है, जिससे फसल अवशेष की एक बड़ी समस्या पैदा हो गई है. ऐसे में कई किसानों के द्वारा खेतों में पराली को जला दिया जाता है, जिससे पर्यावरण से लेकर खेत के स्वास्थ्य पर भी इसका असर हो रहा है. ऐसे में गेहूं के डंठल से बने स्ट्राॅ पराली की समस्या का एक समाधान भी है. अगर सरकार इस स्ट्राॅ तरह के उपयोग को बढ़ावा दें तो खेतों में फसल अवशेष से नेचुरल स्ट्राॅ बन सकेगा और इससे किसानों को अतिरिक्त आय भी प्राप्त होगी.
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