05 July 2025
By: KisanTak.in
मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान परशुराम ने सबसे पहले शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाया था. फिर 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच इसकी शुरुआत मानी जाती है
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‘कांवड़’ दो बर्तनों को जोड़कर एक डंडे पर बांधा जाता है. इसे ही कांवड़िया अपने कंधे पर उठाकर चलता है
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उत्तर भारत के कई राज्यों में कांवड़ यात्रा के दौरान ‘कांवड़ पथ’ नाम से विशेष लेन बनाई जाती है. कुछ जगहों पर हाईवे का एक पूरा हिस्सा रिजर्व किया जाता है
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खास बात है कि कांवड़िए पूरी यात्रा के दौरान जलपात्र या कांवड़ को जमीन से नहीं छूने देते. विश्राम करते वक्त भी कांवड़िए खास स्टैंड या कांटे का उपयोग करते हैं
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एक डाक कांवड़ भी होता है. इसमें एक टीम रिले की तरह दौड़ते हुए जल को कम से कम समय में गंतव्य तक पहुंचाती है
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कांवड़ियों द्वारा बोला जाने वाला नारा “हर हर बम बम” शिव की स्तुति है. इसमें ‘हर’ का अर्थ है विनाशक और ‘बम’ शिव के भूतनाथ रूप का संकेत
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कांवड़ियों के लिए रास्ते भर सेवा शिविर लगते हैं, जहां खाना, दवाई, आराम और यहां तक कि फिजियोथेरेपी तक मुफ्त में दी जाती है
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कांवड़ यात्री नंगे पांव चलते हैं, सादा भोजन करते हैं और किसी भी तरह का नशा, मांसाहार या अनुशासनहीनता पूरी तरह वर्जित होती है
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एक सामान्य कांवड़ यात्रा 100–300 किमी तक हो सकती है. इसमें शरीर की सहनशक्ति, मानसिक दृढ़ता और अनुशासन की जबरदस्त परीक्षा होती है
नोट: खबर केवल सामान्य जानकारी पर आधारित है...
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