07 July 2025
By: KisanTak.in
प्रति किलो चावल में औसतन 3,000–5,000 लीटर पानी जाता है. पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में भूजल खतरनाक स्तर तक गिर चुका है
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धान की खेती मुख्य रूप से बारिश पर ही आधारित है. अगर बारिश कम या अनियमित होती है तो फसल खराब होने का जोखिम बढ़ जाता है
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किसी एक जगह लगातार धान उगाने से उस खेत/इलाके की मिट्टी सख्त और पोषक तत्वों से खोखली हो जाती है. इससे मिट्टी को लंबे समय तक नुकसान होता है
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धान की कटाई के बाद बची पराली को किसान जलाते हैं, जिससे खेत की मिट्टी तो खराब होती है, साथ ही वायु प्रदूषण भी गंभीर होता है
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दरअसल, धान के पानी-भरे खेतों से मीथेन गैस निकलती है.ये एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है जो जलवायु परिवर्तन में योगदान देती है
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धान उगाने में पानी, खाद, बिजली और मेहनत सब अधिक लगता है, लेकिन बाजार में इसकी कीमत स्थिर और MSP पर निर्भर होती है
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लगातार एक ही फसल उगाने से कीट और बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ता है, इससे खेती की दवाओं पर निर्भरता बढ़ जाती है
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बाजार में दालें, मोटे अनाज (जैसे ज्वार-बाजरा), सब्जियां और फलों की ज्यादा कीमत मिलती है. साथ ही ज्यादा पोषण वाले और इन्हें उगाना आसान है
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पंजाब-हरियाणा जैसे राज्य अब धान के स्थान पर वैकल्पिक फसल कार्यक्रम चला रहे हैं, ताकि किसान और पर्यावरण दोनों को फायदा हो
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नोट: ये खबर केवल सामान्य जानकारी पर आधारित है