08 July 2025
By: KisanTak.in
खरीफ का सीजन जून से अक्टूबर तक चलता है. इस मौसम में पूरे भारत में बारिश होती है. इसलिए सिंचाई की जरूरत कम से कम पड़ती है और लागत घटती है
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कुछ पारंपरिक देसी धान की किस्में जैसे 'सांवला', 'कालीमूंछ' कम पानी में भी अच्छी उपज देती हैं. इन किस्मों में खाद और कीटनाशक भी कम लगता है
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कम लागत वाली फसल में मक्का भी है. इसका बीज सस्ता होता है और सिंचाई भी कम चाहिए होती है. मक्का में भी कम खाद और कीटनाशक लगता है
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जहां कम बारिश होती है, वहां के लिए सूखा सहन करने वाली ज्वार या बाजरा जैसे मोटे अनाज की फसलें बहुत कम लागत में हो जाती हैं
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दलहनी फसलों में अरहर की खेती भी कम पानी, कम उर्वरक में यानी कम से कम लागत में हो जाती है. इससे मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है
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खरीफ में अगर आप उड़द या मूंग की फसल करते हैं तो ये 60 से 70 दिनों में तैयार हो जाएगी. इन फसलों की लागत बहुत कम होती है और खरीफ की आदर्श फसलें हैं
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सोयाबीन की कुछ देसी किस्में कम देखरेख और कम लागत में अच्छी पैदावार देती हैं. सोयाबीन से मिट्टी में नाइट्रोजन भी बढ़ती हैं, जो अगली फसल के लिए अच्छा है
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कुछ कद्दूवर्गीय सब्जियां जैसे लौकी, तोरी भी खरीफ में लगा सकते हैं. खेत में हल्की मिट्टी है और सिंचाई की सुविधा हो तो कम लागत में इनसे मुनाफा ले सकते हैं
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गोबर खाद, नीम का तेल, छाछ जैसे घरेलू जैविक उपाय अपनाकर खेती की लागत कम करके उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं
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नोट: ये खबर केवल सामान्य जानकारी पर आधारित है