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बेहद दिलचस्प है जोधपुर के किसान लालाराम डूडी की कहानी, अमेरिका तक जाती है इनके जैविक जीरे की खेप

बेहद दिलचस्प है जोधपुर के किसान लालाराम डूडी की कहानी, अमेरिका तक जाती है इनके जैविक जीरे की खेप

50 बीघा खेती के मालिक लालाराम पिछले 35 साल से जैविक खेती कर रहे हैं. उन्होंने अपने जमीन पर आंवले, नींबू के बाग लगाए हुए हैं. साथ ही पूरे राजस्थान के करीब सात हजार किसानों को अपने जैविक खेती के अभियान से जोड़ा हुआ है. लालाराम अपनी जैविक जीरे की फसल अमेरिका भेजते हैं और लाखों रुपये कमाते हैं. पढ़िए यह रिपोर्ट.

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पीले साफे में किसान लालाराम डूडी. फोटो- माधव शर्मा पीले साफे में किसान लालाराम डूडी. फोटो- माधव शर्मा

खेतों में उपज बढ़ाने के लिए किसान तरह-तरह के कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं. इससे उनकी उपज तो बढ़ती है, लेकिन धीरे-धीरे जमीन की उपजाऊ शक्ति कम होती जाती है. इस बात को आज से 35 साल पहले जोधपुर जिले में पड़ासना गांव के लालाराम डूडी ने समझ लिया. वे तब से पूरी तरह जैविक खेती कर रहे हैं. उनका संकल्प जोधपुर को पूरी तरह जैविक खेती वाला जिला बनाने का है. इसके लिए वे दूसरे किसानों को भी अपने जैविक खेती अभियान में जोड़ रहे हैं. लालाराम डूडी से 'किसान तक' की मुलाकात 13 और 14 मार्च को जयपुर में आयोजित राजस्थान मिलेट्स कॉन्क्लेव में हुई. जब इनसे बात की गई तो कहानी बहुत रोचक और हैरान करने वाली निकली. 

दरअसल, 50 बीघा खेती के मालिक लालाराम पिछले 35 साल से जैविक खेती कर रहे हैं. उन्होंने अपने जमीन पर आंवले, नींबू के बाग लगाए हुए हैं. साथ ही पूरे राजस्थान के करीब सात हजार किसानों को अपने जैविक खेती के अभियान से जोड़ा हुआ है. लालाराम अपनी जैविक जीरे की फसल अमेरिका भेजते हैं और लाखों रुपये कमाते हैं. पढ़िए यह रिपोर्ट. 

35 साल से खुद जैविक खेती कर रहे, सात हजार किसानों को भी जोड़ा

जोधपुर जिले के पड़ासना गांव निवासी किसान लालाराम डूडी साल 1988 से जैविक खेती कर रहे हैं. अपने जैविक खेती के अभियान से उन्होंने अपने साथ अब तक सात हजार से अधिक किसानों को जोड़ लिया है. डूडी किसान तक को बताते हैं, “मैंने जैविक खेती के लिए अपने क्षेत्र में काम छेड़ा हुआ है. अब तक सात हजार किसानों को इससे जोड़ चुका हूं. ये किसान पहले खेती में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करते थे, लेकिन धीरे-धीरे अब जैविक पर आ गए हैं. मेरा संकल्प है कि जोधपुर जिला खेती के मामले में पूरी तरह जैविक जिला बने.”

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30 हजार टन जैविक जीरा, धना, मेथी अमेरिका भेजते हैं लालाराम

लालाराम डूडी जीरे, धना और मेथी की जैविक खेती करते हैं, लेकिन उसे राजस्थान या देश की मंडियों में नहीं बेचते. इनके सारे मसाले सीधे अमेरिका सप्लाई हो रहे हैं. वे बताते हैं, “मैं रबी सीजन में जीरा, धना, मेथी भी उगाता हूं. इनका भाव मुझे भारत की जीरे की सबसे बड़ी मंडी ऊंझा से करीब चार हजार रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा मिलता है. जीरा, धना की जैविक फसल से मैंने बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, नागौर, जालोर जिलों में करीब एक हजार किसानों को जोड़ा हुआ है.”

वे बताते हैं, “जिन किसानों को मैंने विदेशी सप्लायर से जोड़ा उनसे किसी भी तरह का कोई कमीशन नहीं लिया जाता. वे किसान अपनी उपज का दाम खुद ही खरीदार से तय करते हैं. किसान के खेत से ही माल उठा लिया जाता है. इस तरह हर साल 20-30 हजार टन जीरा और धना अमेरिका सप्लाई हो रहा है. सबसे अच्छी बात यह है कि खरीदार पहले माल का पैसा देता है, किसान बाद में उसे सप्लाई करते हैं.”

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स्वयं सहायता समूह द्वारा बनाते हैं मिलेट्स और आंवले के प्रोडक्ट

किसान लालाराम पिछले एक साल से स्वयं सहायता समूह के माध्यम से मिलेट्स प्रोडक्ट भी बनवाते हैं. मां पार्वती स्वयं सहायता समूह के नाम से वे बाजरे के लड्डू, बाजरे के बिस्किट, मठरी, कुरकुरे बना रहे हैं. इसके अलावा वे आंवले की कैंडी और लड्डू भी इस स्वयं सहायता समूह से बनवा रहे हैं.

साथ ही आंवला, नींबू और काचरे का शरबत भी बना रहे हैं. डूडी बताते हैं, “पहले किसानों को आंवले के रेट नहीं मिलते थे, लेकिन अब 240 रुपये किलो के भाव से वे आंवले के लड्डू बेच रहे हैं. सहायता समूह में जो महिलाएं काम कर रही हैं वे सभी जोधपुर के काज़री इंस्टीट्यूट से प्रशिक्षित हैं.”

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