अब किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए दर-दर की ठोकरें नहीं खानी पड़तीं क्योंकि किसान अब ई-कॉमर्स और ऑनलाइन बिक्री में भरोसा करने लगे हैं. इसका बड़ा उदाहरण e-NAM यानी कि ईलेक्ट्रॉनिक-नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट है. ई-नाम भी एक तरह की मंडी है जो ऑनलाइन काम करती है. लेकिन यह मंडी पूरी तरह से वर्चुअल है. उस मंडी की तरह नहीं है जहां किसान ट्रैक्टरों पर उपज लादकर घंटों-घंटों तक बिक्री के लिए इंतजार करते हैं. ई-नाम मंडी में किसानों की उपज आसानी से घर बैठे बिक जाती है और पैसा सीधे खाते में आ जाते हैं. यह कहना है गुंटूर, आंध्र प्रदेश के किसान मुस्कू विद्यासागर का.
किसान विद्यासागर गुंटूर जिले के वेल्क्काट्टूर गांव के रहने वाले हैं. 45 साल के इस किसान के पास 7 एकड़ जमीन है और उन्हें खेती में 20 साल का तजुर्बा है. इतने ही साल का अनुभव खेती की मार्केटिंग का भी है. वे अपने खेतों में मुख्य तौर पर धान, मक्का औऱ सोयाबीन की खेती करते हैं. किसान विद्यासागर पिछले 15 साल से निजामाबाद मंडी में अपनी उपज बेचते रहे हैं. उपजों की बिक्री आढ़तियों के जरिये करते रहे हैं. उन्होंने मंडियों में ई-नाम का नाम तो सुना था, लेकिन उसका इस्तेमाल कभी नहीं किया था.
किसान विद्यासागर कहते हैं, हम दूसरी मंडियों या मार्केट में कमोडिटी के दाम नहीं जान पाते थे. हमेशा अपनी मंडी के रेट पर ही भरोसा करना पड़ता था. उपजों की तुलाई के लिए 2-3 दिन तक इंतजार करना पड़ता था और पेमेंट आने में 20-30 दिन लग जाते थे. यहां तक कि पता नहीं चल पाता था कि किस मद में कितने रुपये की कटौती की गई और आढ़तिये कितने रुपये की कटौती करते हैं.
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किसान विद्यासागर इसलिए भी परेशान रहते थे कि जो रेट लोकल खरीदार या व्यापारी तय करते थे, उसी रेट पर अपनी उपज बेचनी पड़ती थी. व्यापारी कभी उपज में नमी का हवाला देकर कम रेट लगाते थे और मजबूरी में उसी रेट पर उपज की बिक्री करनी होती थी. लेकिन बाद में उन्होंने ई-नाम का सहारा लिया और इस सरकारी प्लेटफॉर्म पर ऑनलाइन बिक्री यानी कि ऑनलाइन ट्रेडिंग शुरू कर दी.
विद्यासागर ने e-NAM पर 26.16 क्विंटल सोया सफेद बेचा, जिससे उन्हें अतिरिक्त कमीशन के रूप में 1427.00 रुपये और कम हमाली चार्ज के रूप में 1501.00 रुपये की बचत हुई. 26.16 क्विंटल सफेद सोया की मात्रा पर उन्हें 70,000.00 रुपये (लगभग) की बिक्री पर 2929.00 रुपये का लाभ मिला. इस प्रकार, 270 क्विंटल सोया बेचकर विद्यासागर को अपनी उपज पर 30,000.00 रुपये से अधिक की आमदनी हुई. अगर विद्यासागर ई-नाम पर यह बिक्री नहीं करते, मंडियों में उपज बेचते तो उन्हें 30,000 रुपये की राशि कमीशन एजेंटों को देनी पड़ती. इसके अलावा, उन्हें ऑनलाइन लेनदेन के माध्यम से बिक्री के 24 घंटे के भीतर उपज का पेमेंट मिल गया.
ई-नाम के अनुभव के बारे में विद्यासागर कहते हैं कि इतनी सुविधा कभी नहीं मिली कि एक दिन में ही बिक्री का पैसा मिल जाए. पहले उपज लेकर इधर-उधर भागना पड़ता था, लेकिन अब बिना किसी परेशानी के घर बैठे काम हो जाता है. वे कहते हैं कि उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बिक्री के दिन ही उनके खाते में पैसा आ जाएगा. हालांकि वे मानते हैं कि ऑनलाइन ट्रेडिंग के लिए फसल की क्वालिटी को बनाए रखना होगा. साथ ही, कटाई के बाद फसल के प्रबंधन पर अधिक ध्यान देना होगा तभी उपज का सही और अधिक रेट मिल सकेगा. विद्यासागर इसके लिए ई-नाम को धन्यवाद देते हैं.
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