scorecardresearch
क्या है भावांतर भरपाई योजना, इसके ख‍िलाफ क्यों शुरू हुआ क‍िसान आंदोलन?

क्या है भावांतर भरपाई योजना, इसके ख‍िलाफ क्यों शुरू हुआ क‍िसान आंदोलन?

Bhavantar Bharpayee Yojana: हर‍ियाणा सरकार ने बाजरे की तरह सूरजमुखी को भी भावांतर भरपाई योजना में शाम‍िल कर द‍िया है. इसके ख‍िलाफ क‍िसान आंदोलन कर रहे हैं. लेक‍िन यह समझने वाली बात है क‍ि सरकार के नए आदेश से क‍िसानों को आख‍िर घाटा क्या है? पढ़िए पूरा व‍िश्लेषण.

advertisement
भावांतर भरपाई योजना से क्यों गुस्से में हैं क‍िसान (Photo-Kisan Tak). भावांतर भरपाई योजना से क्यों गुस्से में हैं क‍िसान (Photo-Kisan Tak).

सूरजमुखी को भावांतर भरपाई योजना (Bhawanter Bharpai Yojana) में शाम‍िल करने के ख‍िलाफ हर‍ियाणा के क‍िसान सड़क पर उतर गए हैं. जबक‍ि, 30 सितंबर 2017 को इस योजना की शुरुआत किसानों को उनकी उपज का सही दाम द‍िलाने के मकसद से हुई थी. इसके जर‍िए क‍िसानों के घाटे की भरपाई करना था. फ‍िर ऐसा क्या हुआ क‍ि इसके दायरे में सूरजमुखी की फसल लाना क‍िसानों को मंजूर नहीं हुआ है. जाह‍िर है क‍ि क‍िसानों को इस योजना से नुकसान हो रहा होगा तभी उन्होंने इतना बड़ा आंदोलन शुरू क‍िया. अच्छी मंशा के साथ शुरू की गई यह योजना कैसे क‍िसानों के ल‍िए बुरी बनकर सरकार के गले की फांस बन गई, सबसे पहले इसका गण‍ित समझने की जरूरत है.

दरअसल, इस योजना की शुरुआत क‍िसानों को मुख्यतौर पर बागवानी और मसाला फसलों का उच‍ित दाम द‍िलाने के ल‍िए की गई थी. इसके तहत बागवानी की 19 और मसाला की दो फसलें शाम‍िल की गई थीं. क‍िसानों को सरकार द्वारा तय दाम से कम मूल्य म‍िलने पर उस भाव में आ रहे अंतर की भरपाई इस योजना के जर‍िए पैसे देकर की जाती रही है. इसमें स‍िर्फ देर से पैसे म‍िलने की श‍िकायत रहती थी. यहां तक तो ठीक था. इसका कभी क‍िसानों ने व‍िरोध नहीं क‍िया. 

इसे भी पढ़ें: PMFBY: फसल बीमा कंपन‍ियां मालामाल...और शर्तों के मकड़जाल से क‍िसानों का बुरा हाल

क्यों शुरू हुआ भावांतर योजना का व‍िरोध

क‍िसानों को द‍िक्कत तब शुरू हुई जब इसके दायरे में एमएसपी वाली फसलें लाई गईं. जब इसमें बाजरा को शाम‍िल क‍िया गया. ज‍िससे क‍िसानों को घाटा होने लगा. यह घाव पुराना है. ज‍िसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं. साल 2021-22 में केंद्र ने बाजरा का एमएसपी 2250 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था. लेकिन तब हरियाणा में किसान इसे सिर्फ 1100 से 1200 रुपये प्रति क्विंटल पर ही बेचने के लिए मजबूर थे. क्योंक‍ि सरकार ने एमएसपी पर बाजरा की पर्याप्त खरीद नहीं की. सोनीपत की खरखौदा मंडी में 10 अक्टूबर 2021 को एक किसान ने 1121 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बाजरा बेचा.

बाजरा बेचने वाले क‍िसानों को हुआ था घाटा. (Photo-Om Prakash).

कैसे हुआ नुकसान

योजना के तहत बाजरा के संरक्षि‍त मूल्य यानी एमएसपी और बाजार भाव में जो अंतर आ रहा था, उसकी भरपाई भावांतर के तहत की जानी चाह‍िए थी. इस ह‍िसाब से क‍िसान को 1129 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल की भरपाई की जाती तब जाकर उसे एमएसपी ज‍ितना भाव म‍िल पाता. लेक‍िन सरकार ने स‍िर्फ 600 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भरपाई की. यानी क‍िसान को तब 1721 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिला. जो न सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी 2250 रुपये से काफी कम था, बल्कि तब की हर‍ियाणा की सी-2 कॉस्ट 1778 रुपये प्रति क्विंटल से भी कम ही पड़ रहा था.  

क्यों शुरू हुआ सूरजमुखी आंदोलन?

बाजरे के भाव का यह कटु अनुभव पहले से ही हर‍ियाणा के क‍िसानों के पास मौजूद था. ऐसे में 30 मई 2023 को सूरजमुखी को भी भावांतर भरपाई योजना में शाम‍िल करने पर क‍िसानों ने सरकार के ख‍िलाफ गुस्सा जाह‍िर करना शुरू कर द‍िया. भारतीय क‍िसान यून‍ियन (चढूनी) ने इस योजना से सूरजमुखी को न‍िकालने की मांग की. क‍िसानों ने कहा क‍ि उन्हें एमएसपी चाह‍िए, भावांतर नहीं. छह द‍िन बाद भी सरकार ने उस आदेश में कोई संशोधन नहीं क‍िया. इसल‍िए गुस्साए क‍िसानों ने 6 जून को कुरुक्षेत्र में जीटी रोड को जाम कर द‍िया. 

दरअसल, क‍िसानों का आरोप है क‍ि सूरजमुखी को भावांतर योजना में शाम‍िल करके सरकार इसकी एमएसपी पर खरीद करने से बचना चाहती है. हर‍ियाणा में सूरजमुखी का बाजार भाव 4000 से 4200 रुपये प्रति क्व‍िंटल तक है. जबक‍ि इसका एमएसपी 6400 रुपये है. ऐसे में भावांतर योजना के तहत 1000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल की मदद के बावजूद क‍िसानों को 1200-1400 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल का घाटा साफ-साफ द‍िखाई दे रहा है. 

हर‍ियाणा सरकार का वो आदेश ज‍िसकी वजह से सड़कों पर उतरे क‍िसान (Photo-Kisan Tak).

भावांतर से गुस्से में क्यों हैं क‍िसान 

  • भारतीय क‍िसान यून‍ियन (चढूनी) के अध्यक्ष गुरनाम स‍िंह चढूनी ने कहा क‍ि भावांतर योजना को जबरदस्ती लागू होने से किसानों को एमएसपी खत्म होने का डर सताने लगा है.  
  • भावांतर योजना के तहत बाजरा खरीदने पर पहले से ही क‍िसानों को नुकसान हो रहा है. क्योंक‍ि सरकार एमएसपी और बाजार भाव के बीच पूरे गैप को नहीं भर रही.
  • इस योजना के तहत दी जाने वाली रकम काफी समय तक क‍िसानों को नहीं म‍िल पाती है. जैसे इस साल फरवरी में बिके आलू के पैसे क‍िसानों को अभी तक नहीं म‍िले हैं. पिछले वर्ष के गोभी और टमाटर के पैसे भी अब तक नहीं आए.
  • किसी फसल को भावंतर भरपाई योजना के तहत शामिल कर जब सरकार उसे एमएसपी पर खरीद करने से पीछे हट जाती है तो निजी व्यापारी ओने-पौने भाव पर कृष‍ि उपज खरीदते हैं. 

कौन खा रहा भावांतर की मलाई? 

इस योजना को जब हम बारीकी से समझेंगे तो यह पता चलेगा क‍ि एमएसपी में कवर्ड फसलों को भावांतर के तहत लाने पर असल में क‍िसे फायदा पहुंच रहा है. दरअसल, इससे व्यापारी और सरकार ज्यादा फायदे में नजर आते हैं. योजना में साफ है क‍ि अगर कोई व्यापारी क‍िसी क‍िसान को बाजरा या सूरजमुखी का एमएसपी से कम दाम देता है तो उससे होने वाले घाटे की भरपाई सरकार करेगी. 

जबक‍ि, सरकार चाहे तो एमएसपी में कवर्ड फसल आसानी से एमएसपी पर खरीद सकती है. लेक‍िन वो इसे भावांतर में शाम‍िल करके एक तरह से बैकडोर से व्यापारियों की मदद कर रही है. कोई भी सरकार ऐसा करेगी तो किसान को व्यापारी एमएसपी से कम दाम ही देगा. मुनाफा कमाएगा व्यापारी और टैक्सपेयर्स के पैसे से उसकी भरपाई सरकार करेगी. योजना का दूसरा फायदा सरकार को है, क्योंक‍ि वो भावांतर में एमएसपी से कम पैसा दे रही है.  

इसे भी पढ़ें: Mustard Price: बंपर उत्पादन के बाद 'तेल के खेल' में क्यों प‍िस रहे सरसों की खेती करने वाले क‍िसान?