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सूरजमुखी बेचने पर 1000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल की मदद देगी सरकार, फ‍िर क्यों व‍िरोध में उतरे क‍िसान? 

सूरजमुखी बेचने पर 1000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल की मदद देगी सरकार, फ‍िर क्यों व‍िरोध में उतरे क‍िसान? 

Bhawanter Bharpai Yojana: भारतीय क‍िसान यून‍ियन (चढूनी) ने सरकार को पत्र ल‍िखकर पहले की तरह सूरजमुखी की एमएसपी पर खरीद करने की मांग की है. कहा-भावांतर भरपाई योजना के तहत 1000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल की मदद क‍िसानों को मंजूर नहीं. क्योंक‍ि इससे क‍िसानों को नुकसान होगा. समझ‍िए पूरा गण‍ित. 

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सूरजमुखी का नहीं म‍िल रहा दाम, क‍िसान परेशान (Photo-ICAR).  सूरजमुखी का नहीं म‍िल रहा दाम, क‍िसान परेशान (Photo-ICAR).

हर‍ियाणा सरकार ने एक अहम फैसला लेते हुए सूरजमुखी को भावांतर भरपाई योजना (Bhawanter Bharpai Yojana) के तहत शाम‍िल कर ल‍िया है. अब इसे ओपन मार्केट में बेचने वाले क‍िसानों को 1000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल की दर से मदद दी जाएगी.लेक‍िन, भारतीय क‍िसान यून‍ियन (चढूनी) ने सरकार के इस फैसले पर ऐतराज जताया है. यून‍ियन ने कहा क‍ि सरकार प‍िछले वर्षों की तरह सूरजमुखी की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद करे तो क‍िसानों को ज्यादा फायदा होगा. भावांतर उनके ल‍िए बेकार है. क्योंकि इस योजना का अर्थ था एमएसपी और बाजार भाव के बीच के अंतर की भरपाई करना. जो कि हर‍ियाणा सरकार के नए फैसले में नहीं द‍िख रहा है. आज सूरजमुखी की फसल का बाजार भाव 4000 से 4200 रुपये प्रति क्व‍िंटल है जबक‍ि एमएसपी 6400 रुपये है. ऐसे में भावांतर योजना के तहत 1000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल की मदद के बावजूद क‍िसानों को घाटा ही होगा. 

यून‍ियन के अध्यक्ष गुरनाम स‍िंह चढूनी ने हर‍ियाणा सरकार को पत्र ल‍िखकर भावांतर योजना की जगह एमएसपी पर सूरजमुखी की खरीद करने की मांग की है. उन्होंने कहा क‍ि केंद्र सरकार द्वारा खाद्य तेलों का आयात शुल्क कम करने की वजह से इस साल त‍िलहन फसलों के भाव पिछले वर्षो के मुकाबले काफी कम म‍िल रहा है. प‍िछले साल सूरजमुखी का भाव 6000 से 6500 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल था. जबक‍ि इस बार 4200 रुपये रह गया है. ऐसे में एमएसपी पर खरीद न करके मात्र 1000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल की दर से किसानों को मदद देना नाकाफी है. 

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भावांतर योजना पर भरोसा क्यों नहीं? 

भावांतर भरपाई योजना किसानों के लिए सिरदर्द साबित हुई है. बाजरा खरीद के समय सरकार ने एमएसपी पर खरीदने की जगह 500 रुपये प्रत‍ि क्विंटल की सहायता की बात कही थी. उस समय बाजरा का एमएसपी 2350 रुपये क्विंटल था और बाज़ार भाव केवल 1200-1300 रुपये था. इस तरह भावांतर की वजह से 650 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल का नुकसान हो गया था. सरकार जो 500 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल की मदद दे रही थी वह रकम भी क‍िसानों को एक साल बाद म‍िली. किसान एक तरफ एमएसपी से वंच‍ित रहा और दूसरी तरफ भावांतर से क‍िसानों के नुकसान की भरपाई नहीं हो पाई. इसल‍िए क‍िसानों को इस योजना पर भरोसा नहीं है. 

हर‍ियाणा सरकार का वो फैसला, ज‍िसका व‍िरोध कर रहे हैं क‍िसान (Photo-Kisan Tak).
हर‍ियाणा सरकार का वो फैसला, ज‍िसका व‍िरोध कर रहे हैं क‍िसान (Photo-Kisan Tak).

एमएसपी खत्म होने का डर

  • यून‍ियन ने कहा है क‍ि भावांतर योजना को जबरदस्ती लागू होने से किसानों को एमएसपी खत्म होने का डर सताने लगा है. आने वाले समय में गेहूं और धान पर भी इसी प्रकार की व्यवस्था लागू कर सरकार उसकी एमएसपी को समाप्त करना चाहती है. इसलिए किसानों में इसके ख‍िलाफ रोष है. 
  • भावांतर के तहत दी जाने वाली रकम काफी समय तक क‍िसानों को नहीं म‍िल पाती. जैसे इस वर्ष फरवरी में बिके आलू के पैसे क‍िसानों को अभी तक नहीं म‍िले हैं. पिछले साल के गोभी और टमाटर के पैसे भी नहीं आए हैं.  
  • किसी फसल को भावंतर भरपाई योजना के तहत शामिल कर जब सरकार उसे एमएसपी पर खरीद से पीछे हट जाती है तो निजी व्यापारी ओने-पौने भाव पर कृष‍ि उपज खरीदते हैं. सरकार द्वारा प्रस्तावित मूल्य से कम मूल्य पर फसल बिकती है. जबकि सरकार एक फिक्स्ड राशि सहायता के रूप में देती है. जबक‍ि योजना के तहत भरपाई किसान की फसल जिस रेट मंडी में बिके उसके मुताबिक होनी चाहिए.  

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