मॉनसून की शुरुआत होने वाली है. इसके साथ ही देश में खरीफ फसल सीजन की शुरुआत हो जाएगी. इस सीजन में देश में सबसे अधिक खाद्यान्न की खेती जाती है. खरीफ सीजन में प्रमुख तौर पर किसान धान के अलावा मक्का, कपास सोयाबीन समेत अन्य दलहनी फसलों की खेती करते हैं. खरीफ सीजन में मकई की खेती करने का फायदा यह होता है कि इसमें सिचांई की जरूरत नहीं होती है और कम लागत में अच्छा उत्पादन हो जाता है. पर बेहतर उपज और अच्छी गुणवत्ता वाला मकई हासिल करने के लिए किसानों को अच्छी किस्म के बीजों की भी चयन करना पड़ता है. इस खबर में हम आपको बताएंगे की किसानों के कौन सी किस्म की मकई की खेती फायदेमंद साबित होगी.
बता दे की मक्का की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा होती है. क्योंकि इसमें कम लागत में किसानों को अधिक मुनाफा होता है. मक्के को अनाज की रानी भी कहा जाता है. इसका इस्तेमाल कई तरह से किया जाता है. जानवरों का चारा बनाने से लेकर इंसानों के खाने तक के लिए मकई का इस्तेमाल किया जाता है. आज के समय में मकई को प्रस्संकृत करके कई प्रकार के उत्पाद बनाए जाते हैं इसलिए इसकी मांग भी बढ़ गई है. मांग बढ़ने के साथ ही अब इसकी कीमत भी किसानों को अच्छी मिलती है. इसकी खेती की खासियत यह है कि बारिश के दिनों में ऊपरी जमीन पर लगाया जा सकता है इससे जमीन का उचित इस्तेमाल हो जाता है.
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मकई की उन्नत किस्म लक्ष्मी सिक्का की पहचान किसानों की बीच अपने रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन के लिए होती है. इसके पौधे की लंबाई अधिक नहीं होती है. यह मध्यम ऊंचाई का पौधा होता है जिसकी ऊंचाई 200-210 सेंटीमीटर तक होती है. ऊंचाई कम होता और जड़े मजबूत होती है इसका फायदा यह होता है कि यह तेज हवाओं में भी खड़ा रहता है इसके भुट्टे का आकार लंबा और पतला होता है. खेत में लगाने के बाद लक्ष्मी सिक्का किस्म की मकई कटाई के लिए 100-115 दिनों बाद तैयार हो जाता है. इसके अलावा इसके दाने बहुत वजनदार होते हैं और उसके ऊपर का कवर बेहद टाइट होता है.
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लक्ष्मी सिक्का किस्म की खासियत यह है कि इसमें कई रोगों से लड़ने की क्षमता होती है. यह रोगी प्रतिरोधी किस्म होता है. बारिश के मौसम में इसकी खेती इसलिए अच्छी मानी जाती है क्योंकि वर्षा जल से इसे कोई नुकसान नहीं होता है. इसलिए अधिकांश किसान खरीफ सीजन में इसकी खेती करना पसंद करते हैं. एक एकड़ में इस किस्म की खेती करने के लिए 8 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. इसकी खेती में अच्छी उपज हासिल करने के लिए प्राकृतिक गोबर खाद और उर्रवरक का इस्तेमाल करना जरूरी होता है. कम से कम 10 डिग्री और अधिक से अधिक 35 डिग्री सेल्सियस तक इसकी खेती की जा सकती है.
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