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ईएमएस से मर रहे झींगा को बचाने के लिए ईरान को याद आए मनोज शर्मा, दिए ये टिप्स

ईएमएस से मर रहे झींगा को बचाने के लिए ईरान को याद आए मनोज शर्मा, दिए ये टिप्स

बाजार में झींगा के रेट उसके वजन नहीं साइज के हिसाब से तय होते हैं. साइज के चलते साल में तीन से चार बार झींगा की फसल तैयार हो जाती है. पानी इसके मुताबिक हो तो उत्पादन भी खूब होता है. झींगा किसी भी दूसरी मछली से ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल है. लेकिन खास पानी के चलते इसका पालन हर जगह नहीं किया जा सकता है.

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ईरान में झींगा पालकों को टिप्स देते डॉ. मनोज शर्मा. फोटो क्रेडिट-किसान तक ईरान में झींगा पालकों को टिप्स देते डॉ. मनोज शर्मा. फोटो क्रेडिट-किसान तक

ईरान के दो बड़े इलाके बुशर और बंदर अब्बास में बड़े पैमाने पर झींगा पालन किया जाता है. एक-एक हेक्टेयर के तालाब में किसान झींगा पालते हैं. लेकिन बीते वक्त  से अर्ली मोर्टेलिटी सिंड्रोम (ईएमएस) के चलते झींगा मर रहा था. इसके के चलते गुजरात में झींगा एक्सपर्ट और मछलियों के डॉक्टर मनोज शर्मा को ईरान बुलाया गया था. अपने आठ दिन के दौरे में डॉ. मनोज ने उन्हें झींगा पालन से जुड़े कई टिप्स दिए. इसके पहले भी साल 2014 और 2017 में डॉ. मनोज ईरान में झींगा पालन के टिप्स दे चुके हैं.  

डॉ. मनोज का कहना है कि सामूहिक रूप से झींगा पालन करने के चलते ईरान में जल्दी  बीमारी फैलती है. इस बीमारी के चलते झींगा 30 दिन में मर जाता है. ईएमएस के चलते ईरान के झींगा पालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. सबसे ज्यादा झींगा पालन बुशर और बंदरअब्बास में ही होता है. यह दोनों ही कोस्टल एरिया हैं. 

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दो से चार हजार हेक्टेयर के कॉम्प्लेक्स में होता है झींगा पालन 

ईरान से लौटे डॉ. मनोज शर्मा ने किसान तक को बताया कि ईरान सरकार एक से दो हजार हेक्टेयर के कॉम्प्लेक्स बनाती है. इन्हीं कॉम्प्लेक्स में झींगा पालक को 20 हेक्टेयर के तालाब दे दिए जाते हैं. सामूहिक रूप से झींगा पालन करने के चलते लागत भी कम आती है. लेकिन सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि जब किसी एक तालाब में बीमारी आती है तो फिर वो पूरे कॉम्प्लेक्स में फैल जाती है. जैसे अभी ईएमएस फैल रही है. लगातार झींगा मर रहा है. इसी परेशानी के चलते उन्होंने मुझे बुलाया था. उन्होंने मुझे एक मोटी फीस देने को कहा था, लेकिन मैंने डालर और उनकी करेंसी के अंतर को देखते हुए फीस लेने से मना कर दिया और सिर्फ आने-जाने का ही खर्चा लिया. 

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ईरान में अब इंसानों पर लागू कोविड नियमों से होगा झींगा पालन 

डॉ. मनोज ने बताया कि ईरान में अब झींगा पालन कोविड नियमों के तहत होगा. यह वो नियम हैं जो इंसानों पर लागू होते हैं. जैसे ऑड-ईवन में झींगा पालन करना. अगर इस साल तालाब नंबर एक, तीन, पांच और सात में झींगा पालन किया गया है तो अगली साल दो, चार और छह नंबर के तालाब में झींगा पाला जाएगा. ऑड नंबर के तालाब खाली छोड़े जाएंगे. ईरान में एक तालाब एक-एक हेक्टेयर का होता है. दो तालाब के बीच में एक तालाब सूखा और खाली रहने से बीमारी जल्दी नहीं फैलेगी. वहीं दो तालाब के बीच में दूरी रखने को भी कहा. तालाब के एरिया और तालाब में काम करने वालों के लिए बायो सिक्योरिटी के नियम कड़े कर दिए. 

70 से 80 दिन में तैयार हो जाता है 14-15 ग्राम का झींगा 

डॉ. मनोज ने बताया कि 14-15 ग्राम वजन वाला झींगा तालाब में 70 से 80 दिन में तैयार हो जाता है. अगर झींगा पालन में किसी भी तरह की कमी रह भी जाती है तो ज्यादा से ज्यादा 90 दिन में तो हर हाल में तैयार हो ही जाएगा. इसके अलावा अगर बड़े साइज का झींगा तैयार करना है तो ज्यादा से ज्यादा चार महीने में तैयार हो जाएगा. इस तरह से एक साल में झींगा की तीन से चार बार तक फसल तैयार हो जाती है.