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डायनासोर से भी पुराना है ये पौधा, हिमाचल-उत्तराखंड में मिला, बनती हैं खास दवाई 

डायनासोर से भी पुराना है ये पौधा, हिमाचल-उत्तराखंड में मिला, बनती हैं खास दवाई 

साइंटिस्ट की मानें तो जिंको बाइलोवा के पौधे की पत्तिेयों से लेकर उसकी जड़ और तना तक दवाई के काम आता है. हालांकि खासतौर पर पत्तियां बाजार में बहुत बिकती हैं. एक किलो सूखी पत्तियों की कीमत 400 से 500 रुपये किलो तक है. अक्‍टूबर-नवबंर इसकी पत्ती तोड़ने का वक्त होता है जब यह हल्के पीले रंग की हो जाती हैं. 

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आईएचबीटी, पालमपुर, हिमाचल प्रदेश में लगा जिंको बाइलोवा का पौधा. फोटो क्रे‍डिट-किसान तक आईएचबीटी, पालमपुर, हिमाचल प्रदेश में लगा जिंको बाइलोवा का पौधा. फोटो क्रे‍डिट-किसान तक

इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश ने एक ऐसे पौधे की खोज की है जो डायनासोर से भी पहले का है. साइंटिस्ट का दावा है कि इस पौधे की फैमिली के दूसरे पौधे खत्म हो चुके हैं. अब सिर्फ यही एक पौधा बचा है. हमारे देश में इस तरह के आठ पौधे हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में मिले हैं. आईएचबीटी के साइंटिस्ट ने इनकी खोज की है. और अब यही संस्थान इन पौधों की संख्या को बढ़ा रहा है. इस पौधे का नाम जिंको बाइलोवा है. यह पौधा पांच तरह की बीमारियों के लिए खास दवाई बनाने के काम आता है.  
 
हालांकि अच्छी बात यह है कि अब देश में इनकी संख्या  12 हजार के आंकड़े को पार कर चुकी है. आईएचबीटी में लगाने के साथ ही यह पौधा हिमाचल के साथ ही उत्तराखंड में भी किसानों की मदद से लगाया जा रहा है. संस्थान का कहना है कि अभी तक देश में दवाई के लिए यह पौधा चीन से आयात किया जाता था. दुनिया में चीन का ही इस पौधे पर होल्ड है. 

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साइंटिस्ट को ऐसे मिला था जिंको बाइलोवा 

आईएचबीटी में जिंको बाइलोवा के एक्सपर्ट डॉ. रामजीलाल ने किसान तक को बताया कि साल 2005 में हमारे संस्थान को ऐसे पौधे खोजने का काम मिला था जो बहुत खास हैं लेकिन गुम होते जा रहे हैं. इसी कड़ी में हमने जिंको बाइलोवा की खोज की थी. हमे जो जानकारी मिली थी उसके मुताबिक देश में 10 से 15 जिंको बाइलोवा के पौधे होने की बात कही गई थी.

लेकिन यह कहां हैं इसके बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं थी. लेकिन जिस वातावरण में यह पौधा होता है कि उसके मुताबिक ठंडे इलाकों में इसकी खोज की जा रही थी. इसी दौरान आठ पौधे उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में मिले थे. इन्हीं आठ पौधों पर काम करते हुए आईएचबीटी ने इन्हें संरक्षित करने का बीड़ा उठाया था.  

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जिंको बाइलोवा से इन पांच बीमारियों की बनती है दवाई 

डॉ. रामजीलाल ने बताया कि जिंको बाइलोवा का पौधा फार्मास्युटिकल कंपनियों की एक बड़ी जरूरत है. लेकिन चीन से आयात करने पर ही इसकी जरूरत पूरी होती है. कंपनियों की जरूरत और हमारे संस्थांन की रिसर्च के मुताबिक जिंको बाइलोवा का पौधा अल्जााइमर, डायबिटीज, एलर्जी, ब्लड प्रेशर और अस्थमा में बहुत काम आता है. अगर हम अपने देश की ही बात करें तो बाजार में डिमांड हर वक्त बनी रहती है. हमारे संस्थान में भी पत्तियों के टूटने से पहले ही उसके आर्डर आ जाते हैं.

देश में फल-फूल रहे हैं जिंको बाइलोवा के 12 हजार पौधे 

डॉ. रामजीलाल का कहना है कि देश में मिले आठ पौधों पर हमारे संस्थान ने साल 2005 में काम शुरू कर दिया था. इनकी जड़ों पर काम कर के आईएचबीटी ने पौधों की कलम लगाना शुरू कर दिया. अगर आज की बात करें तो हमारे संस्थान में ही जिंको बाइलोवा के पांच हजार बड़े पौधे और दो हजार छोटे पौधे नर्सरी में लगे हुए हैं. वहीं करीब पांच हजार से ज्यादा पौधे संस्थान के बाहर किसानों ने लगा रखे हैं. किसान इसे लगाकर और इसके बाजार को देखकर इतने खुश हैं कि चंबा का एक किसान तो हमारे पास से 15 सौ पौधे लगाने के लिए ले गया है. वन विभाग को हम फ्री में यह पौधा लगाने के लिए दे रहे हैं जिससे इसकी पैदावार बढ़े. दो साल में यह पौधा पत्तयिां तोड़ने के लिए तैयार हो जाता है.