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रंग लाई IHBT की कोशिश, कश्मीर ही नहीं ये राज्य भी देगा केसर, पढ़ें पूरी डिटेल

रंग लाई IHBT की कोशिश, कश्मीर ही नहीं ये राज्य भी देगा केसर, पढ़ें पूरी डिटेल

कश्मीर के बाहर होने वाली केसर को ऑर्गेनिक तरीके से उगाने के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश के साइंटिस्ट किसानों को जागरुक कर रहे हैं. वहीं इसके लिए खाद कैसी हो इस पर भी रिसर्च चल रही है. समंदर में होने वाली खरपतवार से भी खाद बनाने की रिसर्च चल रही है. 

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केसर का फाइल फोटो- फोटो क्रेडिट-इरशाद अहमद डार केसर का फाइल फोटो- फोटो क्रेडिट-इरशाद अहमद डार

देश में केसर का जिक्र होते ही कश्मीर का नाम आता है. क्योंकि देश में कश्मीर ही एक अकेला ऐसा राज्य है जहां केसर का उत्पादन होता है. देश के साथ दूसरे देशों में भी कश्मीरी केसर की बहुत डिमांड रहती है. दवाई बनाने वाली कंपनियों को तो कश्मीर की केसर ही चाहिए होती है. लेकिन कई वजह से कश्मीर में केसर का उत्पादन घट रहा है. लेकिन अच्छी खबर यह है कि अब कश्मीर के अलावा भी देश के दो राज्यों में केसर का उत्पादन हो रहा है. इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश ने इसे मुमकिन कर दिखाया है. 

साइंटिस्ट का दावा है कि क्वा्लिटी के मामले ये केसर 100 फीसद कश्मीरी केसर जैसी ही है. रिसर्च के तौर पर आईएचबीटी केसर की एक फसल ले भी चुका है. केसर की लैब टेस्टिंग भी हो चुकी है. इसी के चलते केसर के बीज और दूसरे इलाकों में भी भेज दिए गए हैं. आईएचबीटी की इस कोशिश के चलते अब देश में केसर का उत्पादन बढ़ना तय माना जा रहा है. 

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हिमाचल के चंबा-पालमपुर में पहली बार हुई केसर

आईएचबीटी के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. राकेश कुमार ने किसान तक को बताया कि हमने साल 2015 से कश्मीर के बाहर केसर उगाने का काम शुरू किया था. उसके बाद से लगातार ही काम चल रहा है. कामयाबी की बात करें तो हम चंबा और पालमपुर में केसर की एक फसल ले भी चुके हैं. क्योंकि यह सैम्पल और रिसर्च के तौर पर थी तो इसका एरिया कम रखा गया था. लेकिन अच्छी बात यह है कि क्वालिटी और उत्पादन के लिहाज से दोनों ही जगह अच्छे रिजल्ट मिले हैं. एक हेक्टेयर में तीन से पांच किलो केसर का उत्पादन होगा. 

हिमाचल प्रदेश में हमने पालमपुर, चंबा, मंडी, कुल्लू्, शिमला और किन्नौर में इसके बीज लगाए गए. इसके साथ ही उत्तेराखंड में भागेश्वर, पौढ़ी, पिथौरागढ़ और चंपावत में बीज लगाए गए. वहीं नार्थ-ईस्ट के इलाकों और ऊटी में भी कोशिश की गई थी, लेकिन वहां कामयाबी नहीं मिली. हिमाचल में उगी केसर इंटरनेशनल मार्केट के मानकों के अनुसार है. केसर में जो तीन तत्व  चाहिए होते हैं वो इस केसर में हैं. अगर उत्तराखंड और हिमाचल का कोई किसान केसर की खेती करना चाहता है तो वो आईएचबीटी से संपर्क कर सकता है.  

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जरूरत 100 टन की हो रही आठ से दस टन 

सैय्यद अल्ताफ जम्मू-कश्मीर एग्रीकल्चर विभाग के डायरेक्टर रहे हैं. किसान तक से फोन पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि अगस्त-सितम्बर में केसर को बारिश की बहुत जरूरत होती है. वहीं दिसम्बर और जनवरी में बर्फवारी केसर की ग्रोथ को बढ़ाती है. लेकिन अफसोस की बात है कि क्लाइमेट चेंज के चलते बहुत बदलाव आ गया है. अब न तो बारिश के बारे में ठीक-ठीक पता है कि कब होगी और न ही बर्फवारी के बारे में की कब गिरेगी. केसर की सिंचाई ज्यादातर प्रकृति के भरोसे हैं. 

कुछ साल पहले तक कश्मीर के पुलवामा समेत कुछ इलाकों में हर साल 15 टन तक केसर का उत्पादन होता था. 5 हजार हेक्टेयर जमीन पर केसर की खेती की जाती थी. लेकिन अब जमीन घटकर करीब 3715 हेक्टेयर रह गई है. वहीं केसर का उत्पादन भी 8-9 टन के आसपास ही सिमटकर रह गया है.