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Explained: क्या है फ्लोर प्राइस जिसकी मांग कर रहे हैं बंगाल और असम के चाय किसान

Explained: क्या है फ्लोर प्राइस जिसकी मांग कर रहे हैं बंगाल और असम के चाय किसान

चाय के फ्लोर प्राइस का अर्थ है चायपत्ती की एमएसपी. जैसे धान, गेहूं पर सरकार एमएसपी तय करती है, वैसा ही नियम चायपत्ती के लिए भी लागू करने की मांग की जा रही है. इससे किसानों के हितों की रक्षा हो सकेगी और उन्हें खेती की लागत निकालने के लिए नहीं जूझना पड़ेगा.

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चायपत्ति के लिए फ्लोर प्राइस तय करने की मांग उठाई जा रही है चायपत्ति के लिए फ्लोर प्राइस तय करने की मांग उठाई जा रही है

बाकी किसानों की तरह चाय के किसान भी परेशान हैं. इनका कहना है कि खेती की लागत दिनोंदिन बढ़ रही है, लेकिन उसके मुताबिक आमदनी नहीं हो रही. और तो और, कभी-कभार चाय की खेती में घर से भी लगाना पड़ रहा है. यानी जितना खर्च होता है, उससे कम ही इनकम मिल पाती है. इससे किसान घोर परेशानी में फंस रहे हैं. यहां तक कि चाय की खेती को छोड़ने का भी मन बना रहे हैं. किसानों की शिकायत है कि जिस तरह खाद्यान्न और तिलहन-दलहन के लिए सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी कि MSP का नियम बनाया है, कुछ वैसा ही चाय की पत्ती (हरी चाय) के लिए भी होना चाहिए. किसान इसे टेक्निकल भाषा में फ्लोर प्राइस कहते हैं. यहां फ्लोर प्राइस का अर्थ कुछ वैसा ही है जैसा गेहूं, धान, सरसों आदि के लिए एमएसपी होती है. 

चाय किसान और इन किसानों का संगठन एक ऐसे प्रस्ताव को लागू कराने की सोच रहे हैं जिसमें सरकार की तरफ से चाय की पत्ती के लिए फ्लोर प्राइस तय हो. इस फ्लोर प्राइस का मतलब होगा कि चायपत्ती बनाने वाली कंपनियां या बड़े-बड़े चाय घराने एक निश्चित दाम से नीचे किसान से उसकी उपज नहीं खरीद सकेंगे. इस फ्लोर प्राइस की मांग इंडियन टी एसोसिएशन की तरफ से पुरजोरी से उठाई गई है.

क्यों उठ रही फ्लोर प्राइस की मांग

किसानों की यह खास मांग बंगाल के दार्जीलिंग में अधिक मुखर हो रही है जहां के चाय किसान खेती से अधिक परेशान दिख रहे हैं. इस पूरे मसले पर बिहार के चाय किसान जैमिनी कृष्णा कहते हैं, चाय किसानों के लिए फ्लोर प्राइस जरूर तय होना चाहिए क्योंकि इससे उनके हितों की रक्षा होगी. चायपत्ती बनाने वाली कंपनियों के कंसोर्टियम के आगे किसान लाचार से हो जाते हैं. कंपनियां यह तर्क देती हैं कि उत्पादन अधिक और मांग कम है, इसलिए हरी चाय का दाम कम होना चाहिए. इसी तर्क के आधार पर कंपनियां हरी चाय का दाम भी गिराती हैं. इन बड़े कंसोर्टियम के सामने किसानों का कुछ नहीं चलता और उन्हें खेती में घाटा उठाना पड़ता है. लिहाजा, चाय किसानों के लिए फ्लोर प्राइस का कॉन्सेप्ट जरूर होना चाहिए.

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कुछ यही बात इंडियन टी एसोसिएशन (ITA) ने भी कही है. आईटीए का कहना है कि चाय का मार्केट चाय के गिरते दाम को संभालने में सक्षम नहीं दिखता. इसका समाधान यही है कि चायपत्ती के लिए फ्लोर प्राइस तय हो. इससे सरकार को भी घाटा नहीं होगा क्योंकि टैक्स आदि का नियम पहले की तरह बना रहेगा. आईटीएक का कहना है कि सरकार ने इसी तरह का नियम चीनी के लिए बनाया है. इसलिए चायपत्ती के लिए भी फ्लोर प्राइस का नियम तय करने में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए.

केंद्र सरकार को भेजा यह नया प्रस्ताव

इस बाबत पश्चिम बंगाल के वाणिज्य और उद्योग विभाग ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय को एक पत्र लिखकर फ्लोर प्राइस का प्रस्ताव दिया है. इसी तरह का प्रस्ताव असम सरकार ने भी दिया है और मांग की है कि फ्लोर प्राइस तय करने के लिए मंजूरी दी जानी चाहिए ताकि चाय किसानों के आर्थिक हितों की रक्षा हो सके. 

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अब यह भी जान लें कि फ्लोर प्राइस की मांग बंगाल से ही क्यों उठी है. दरअसल, बंगाल खासकर दार्जीलिंग चाय बागानों में कुछ साल से किसानों में घोर निराशा देखी जा रही है. यहां के चाय किसान बड़ी आर्थिक मुसीबत से गुजर रहे हैं क्योंकि उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही. किसानों का कहना है कि जिस तेजी से चाय की खेती का खर्च बढ़ रहा है, उस हिसाब से उन्हें आमदनी नहीं हो रही. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि अधिक उत्पादन बताकर चायपत्ती के दाम गिरा दिए जाते हैं और किसान घाटे में चला जाता है. इससे निपटने के लिए फ्लोर प्राइस का नियम कारगर साबित हो सकता है.