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The Last Farmer: जब 80 वर्षीय किसान नल्लाण्डी ने निभाई जीवन की आखिरी और बेहतरीन भूमिका

The Last Farmer: जब 80 वर्षीय किसान नल्लाण्डी ने निभाई जीवन की आखिरी और बेहतरीन भूमिका

कड़ाईसी विवसई का अर्थ है ‘अंतिम किसान’. एक सत्य घटना पर आधारित अपनी फिल्म में मनिकन्दन ऐसा माहौल रचना चाहते थे ताकि फिल्म वास्तविकता से दूर ना लगे. वर्ष 2016 में मनिकन्दन ने इस फिल्म की तैयारी शुरू की.

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तमिल फिल्म कड़ाईसी विवसई (आखिरी किसान) तमिल फिल्म कड़ाईसी विवसई (आखिरी किसान)

तमिलनाडु में फिल्मों का एक समृद्ध संसार रहा है. पहली मूक तमिल फिल्म ‘कीचकवधम’ बनी थी 1918 में. वर्ष 1931 में, हिन्दी की पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ के ठीक छह महीने बाद रिलीज़ हुई तमिल की पहली टॉकी ‘कालीदास’. इसके बाद तो तमिल भाषा में सिनेमा की एक मजबूत परंपरा कायम हो गई जिसमें कमर्शियल सिनेमा तो था ही, आर्ट और समानांतर सिनेमा भी था. हमारी बहुत सी हिट हिन्दी फिल्में तमिल फिल्मों का रीमेक रही हैं. हाल ही में आई सलमान खान की फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’ भी तमिल फिल्म ‘वीरम’ का रीमेक है.

बहरहाल, तमिल फिल्म निर्देशकों ने गांव, कृषि और किसान-केन्द्रित मुद्दों पर काफी ध्यान दिया है. ‘भूमि’, ‘कत्ती’ ‘काप्पन’ ’वेलई यानि’, कड़ईकुट्टी सिंगम’ ‘मेरकु थोडारची मरई’ और ‘कड़ाइसी विवसई’ वगैरह. सभी फिल्में अपनी तरह से किसानों की समस्याओं को दर्शकों के सामने प्रभावपूर्ण ढंग से लाती रहीं लेकिन इनमें से एक फिल्म ‘कड़ाईसी विवसई’ के निर्देशक एम मनिकन्दन ने फिल्म में यथार्थवाद लाने के लिए एक अनूठा उपाय सोचा.

कड़ाईसी विवसई का अर्थ है ‘अंतिम किसान’. एक सत्य घटना पर आधारित अपनी फिल्म में मनिकन्दन ऐसा माहौल रचना चाहते थे ताकि फिल्म वास्तविकता से दूर ना लगे. वर्ष 2016 में मनिकन्दन ने इस फिल्म की तैयारी शुरू की. अपनी फिल्म के लिए उचित लोकेशन ढूंढने की धुन में वे एक साल तक करीब सौ गांवों में घूमते रहे. अंत में यह फैसला किया गया कि फिल्म को उसिलामपट्टी में शूट किया जाएगा.

फिल्म की कहानी संक्षेप में कुछ इस तरह है- एक बुजुर्ग किसान मायान्दी गाँव में अपनी छोटी सी ज़मीन पर खेती करता रहता है जबकि गाँव के सभी लोग खेती में आने वाली समस्याओं से थक कर किसानी छोड़ चुके हैं और अन्य व्यवसायों को अपना चुके हैं. मायान्दी तो और कुछ जानता नहीं है इसलिए वह जीवन का अंतिम पहर अपनी ज़मीन को सींचते हुये ही काटना चाहता है. मायान्दी का मानना है कि सिर्फ खेती ही इंसानियत को बचा सकती है. गाँव में वर्षा के लिए जो परंपरागत पूजा की जाती है उसमें मायान्दी के खेत के धान को ही प्रसाद रूप में देवी पर चढ़ाया जाता है.

इसी पूजा के दौरान एक दुर्घटना के कारण मायान्दी को गिरफ़्तार कर लिया जाता है. इसके बाद मायान्दी अपने खेतों में बुवाई और जुताई के लिए किस तरह वापस आता है –फिल्म की कहानी इसके इर्द गिर्द घूमती है. फिल्म में दो अन्य मुख्य किरदार हैं – रमईया (विजय सेथुपति) और थड़ीकोदंडई (योगी बाबू).

फिल्म कड़ाईसी विवसई (आखिरी किसान)
फिल्म कड़ाईसी विवसई (आखिरी किसान)

मनिकन्दन पाँच साल तक लगे रहे इस फिल्म को बनाने में. जब उनकी स्क्रिप्ट और लोकेशन तय हो गयी तो उन्होंने निश्चय किया कि फिल्म में मुख्य भूमिका एक वृद्ध किसान ही निभाएगा. अब उसिलामपट्टी में तलाश शुरू हुई एक वृद्ध किसान की. आखिरकार 80 वर्षीय नल्लान्डी को इस किरदार के लिए चुना गया.

इस बारे में बात करते हुए मनिकन्दन ने बाद में एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि एक कहानी ही अपने मुख्य अभिनेताओं को चुनती है. कुछ कहानियों के लिए ज़रूरी होता है कि दर्शक उन्हें बगैर किसी पूर्वाग्रह या पूर्व धारणा के देखें. इस यकीन के साथ मनिकन्दन ने फिल्म में केवल दो अभिनेताओं (विजय सेथुपति और योगी बाबू ) को छोड़ कर सभी किसानों और ग्रामीणों को फिल्म के किरदारों के रूप में लेने का निश्चय किया.

अद्भुत बात ये कि मनिकन्दन ने इन नए ‘अभिनेताओं’ के लिए किसी कार्यशाला का आयोजन नहीं किया बल्कि उनके स्वाभाविक कार्य- कलापों और बातचीत के वे छोटे छोटे videos बनाते रहे. इस तरह इन ग्रामीणों और किसानों को दो महीने लगे ये समझने में कि फिल्म मेकिंग एक टीम वर्क है. जब उन्हें ये समझ आ गया तो वे कैमरे के सामने सहज हो गए.
इन नए अभिनेताओं से रिहर्सल भी नहीं करवाई गई. उन्हें एक सिचुएशन समझा कर शूट किया जाता था. अब चूंकि सभी कलाकार किसान थे तो फिल्म की डबिंग करना मुश्किल होता, इसलिए ये फैसला किया गया कि पूरी फिल्म सिंक-साउंड टेक्नोलॉजी के साथ शूट की जाएगी. यानी सारी साउंड और संवाद लोकेशन पर ही रिकॉर्ड होने थे. सिंक साउंड तकनीक ने फिल्म का बजट और बढ़ा दिया और मेहनत भी दोगुनी हो गई.

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अब समस्या थी कि फिल्म के नायक को अभिनय कैसे सिखाया जाये? 80 वर्षीय किसान नाल्लण्डी को अभिनय में ज़रा भी रुचि नहीं थी. मनिकन्दन ने महीनों नल्लाण्डी को समझाया और राज़ी किया कि वे इस फिल्म में अभिनय करें. फिर नाल्लण्डी और अन्य किसानों के साथ छोटे-छोटे शूट किए गए. एक और दिक्कत ये थी कि ये सभी लोग स्वभावतः संकोची और शर्मीले थे. कैमरे के सामने उनसे संवाद बुलवाना भी एक चुनौती था. मनिकन्दन ने धैर्य से काम लिया.

अगर आप फिल्म देखें तो पाएंगे कि कहीं कोई भी पात्र असहज या अस्वाभाविक नहीं लगता. बल्कि अभिनेता विजय सेथुपति ने तो यह तक कहा कि इन सभी किरदारों को देखते हुये उन्हें अपने अभिनय पर और भी मेहनत करनी पड़ी. चूंकि फिल्म में वास्तविक किसान और गाँव वाले ही हैं इसलिए फिल्म का हास्य भी उनकी शख्सियत के हिसाब से सूक्ष्म और गहन है. फिल्म की कहानी के कई आयाम हैं, जो एक किसान के जीवन और उसके मुद्दों पर प्रकाश डालते हैं, मसलन जैविक खेती, कृषि श्रमिकों की दिक्कतें, रासायनिक खाद और छोटे किसानों की समस्याएं.

फिल्म के अंत में मायान्दी नाम का बुजुर्ग किसान अपनी धोती बांधता है और अन्य ग्रामीणों के साथ फसल को बचाने में जुट जाता है. तमाम समस्याओं, आधुनिकता की दौड़ में पीछे छूट जाने के अकेलेपन के बावजूद किसान अपनी फसल से, अपने व्यवसाय से कितनी घनिष्ठता से जुड़ा होता है, फिल्म का अंत बहुत भावपूर्ण ढंग से यह दिखलाता है.

आम लोगों को किरदारों के तौर पर पेश करके निर्देशक मनिकन्दन ने सिनेमा में यथार्थ और अतियथार्थ के एक असरदार संयोग की रचना की. फिल्म की शूटिंग 95 दिन तक चली, जिसमें फसल की बुआई से लेकर उसकी कटाई तक के मौसम का सफर भी दिखलाया गया. पाँच साल की मशक्कत के बाद फिल्म अंततः 2022 मे रिलीज़ हुई लेकिन अफसोस, बुजुर्ग नल्लाण्डी फिल्म को पर्दे पर नहीं देख पाये, फिल्म की रिलीज़ के कुछ दिन पहले ही उनका निधन हो गया.

बतौर मायान्दी उनके अभिनय को बहुत सराहा गया. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर तो ज़्यादा नहीं चल पायी लेकिन देश-विदेश में इसे ना सिर्फ दर्शकों का प्यार मिला बल्कि समीक्षकों ने भी इसकी बहुत तारीफ की . कुछ फिल्म निर्देशकों और आलोचकों ने तो यहाँ तक कहा कि नाल्लण्डी का अभिनय बेहतरीन है और ऑस्कर पाने लायक है.

निर्देशक मनिकन्दन भी फिल्म को अपनी रचनात्मक उपलब्धि मानते हैं . और नल्लाण्डी का परिवार इस फिल्म को उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि मानता है और ये भी कि ‘कड़ाईसी विवसई’ के जरिये नल्लाण्डी को वे आज भी अपने करीब महसूस कर सकते हैं.