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देश में इस चावल ने की बासमती क्रांति की शुरुआत, आज 34000 करोड़ तक पहुंचा निर्यात

देश में इस चावल ने की बासमती क्रांति की शुरुआत, आज 34000 करोड़ तक पहुंचा निर्यात

1960 के दशक में डॉ. स्वामीनाथन ने सोचा कि अगर बासमती की बौनी प्रजातियां विकसित करें तो उससे कई लाभ होंगे. इस प्रजाति के पौधे गिरने से तो बचेंगे ही, पैदावार भी बढ़ेगी. इस विचार का नतीजा हुआ कि 20 साल बाद देश में पहली बार पूसा बासमती-1 विकसित की गई जिसे किसान आम भाषा में मुच्छल बासमती भी कहते हैं.

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देश में मुच्छल बासमती से हुई बासमती क्रांति की शुरुआत देश में मुच्छल बासमती से हुई बासमती क्रांति की शुरुआत

देश में बासमती चावल के क्षेत्र में कई बड़े काम हुए हैं और किसानों को कई नई वेरायटी मिली है. यही वजह है कि दुनिया में जब भी बासमती चावल का जिक्र होता है, तो भारत का नाम सबसे पहले लिया जाता है. बासमती की इन नई प्रजातियों से न केवल किसान  बिरादरी को फायदा हुआ है बल्कि व्यापार जगत ने भी भरपूर कमाई की है. ऐसे में हमें यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर भारत में बासमती चावल की यात्रा कब और कैसे शुरू हुई. आखिर कौन सी वेरायटी है जिसने बासमती के क्षेत्र में क्रांति ला दी? तो इसका सीधा जवाब है मुच्छल बासमती. इस चावल का जैसा नाम है, वैसा ही इसका काम भी रहा है. इसने डंके की चोट पर पूरी दुनिया में बासमती के क्षेत्र में भारत का नाम स्थापित किया है. 

देश में पहले भी परंपरागत बासमती धान की खेती होती रही है. इन वेरायटी के पौधे लंबे होते थे, गिर जाते थे और पैदावार घट जाती थी. ऐसी किस्मों में मुश्किल से प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल पैदावार होती थी. इन चुनौतियों से निपटने के लिए पूसा संस्थान ने बासमती की कई ऐसी किस्में तैयार कीं जो किसानों के लिए बेहद लाभकारी सिद्ध हुए. यह बदलाव 1960 के दशक से शुरू हुआ और अब तक चल रहा है.

1960 के दशक में डॉ. स्वामीनाथन ने सोचा कि अगर बासमती की बौनी प्रजातियां विकसित करें तो उससे कई लाभ होंगे. इस प्रजाति के पौधे गिरने से तो बचेंगे ही, पैदावार भी बढ़ेगी. इस विचार का नतीजा हुआ कि 20 साल बाद देश में पहली बार पूसा बासमती-1 विकसित की गई जिसे किसान आम भाषा में मुच्छल बासमती भी कहते हैं. 

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बासमती की यह किस्म 1989 में विकसित की गई. बासमती की यह ऐसी किस्म है जिसने बासमती के उत्पादन में क्रांति लाई. मुच्छल बासमती ने विश्व में भारत को ऐसे स्थान पर खड़ा किया कि आज हर साल भारत से बासमती का निर्यात 34 हजार करोड़ रुपये पर पहुंच गया है. अहम बात है कि इसमें मुच्छल बासमती का बड़ा रोल रहा क्योंकि देश में बासमती क्रांति की शुरुआत इसी किस्म से हुई.

देश से बासमती चावल के निर्यात में पूसा की कई किस्में अपना रोल निभा रही हैं जिनमें मुच्छल बासमती पहली प्रजाति थी. इसके बाद पूसा बासमती 1121 किस्म आई जिसे पकाने के बाद उसका दाना एक इंच तक लंबा हो जाता है. इस चावल का लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज है क्योंकि पकाने के बाद इतना लंबा किसी चावल का दाना नहीं होता. बहरहाल, हम यहां मुच्छल बासमती के बारे में जानेंगे जो इस श्रेणी की पहली किस्म थी.

मुच्छल बासमती भी अन्य चावल की तरह पकने के बाद लंबा और सुगंधित होता है. इसका सबसे अधिक इस्तेमाल बिरयानी और पुलाव बनाने में होता है. इस चावल की सुगंध भोजन में दिलचस्पी को कई गुना तक बढ़ा देती है. मुच्छल बासमती को पूसा 150 और करनाल लोकल वेरायटी को क्रॉस कराकर विकसित किया गया था. पूसा 150 वेरायटी को परंपरागत बासमती चावल की किस्म से लिया गया था, जबकि करनाल लोकल वेरायटी हरियाणा करनाल जिले से ली गई थी.

करनाल लोकल वेरायटी अच्छी पैदावार और कुकिंग क्वालिटी के लिए जानी जाती थी जिसे बाद में 1996 में तराओरी बासमती के नाम से बाजार में उतारा गया. बताया जाता है कि राइस ब्रीडर ने इस वेरायटी का सबसे अधिक इस्तेमाल किया क्योंकि खाना पकाने और खाने की विशेषताओं में यह सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता रहा है. इसका महत्व इस बात से भी समझ सकते हैं कि इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने इसे 249 क्रॉस में इस्तेमाल किया है. 

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मुच्छल बासमती ऐसी वेरायटी थी जिसका दाना पतला और सुगंधित होता था. कम समय में इस चावल का तैयार होना भी एक बड़ी खासियत रही है. निर्यातकों और उपभोक्ताओं के बीच अगर किसी बासमती की सबसे अधिक मांग रही है, तो उसमें मुच्छल बासमती का नाम सबसे पहले है. जब मुच्छल बासमती का नाम आता है तो दिल्ली के पूसा संस्थान का नाम सर्वोपरि हो जाता है क्योंकि इसी संस्थान ने देश-दुनिया को इस बासमती से अवगत कराया. 

देश में कृषि क्षेत्र में शिक्षा, शोध और प्रसार में अगर किसी संस्था का सबसे बड़ा नाम है, तो वो है पूसा संस्थान. नई दिल्ली स्थित पूसा संस्थान के द्वारा विकसित की गई नई तकनीक किसानों को हर क्षेत्र में मदद कर रही है. इनमें फसलों की नई प्रजातियां हों या उन्नत कृषि तकनीक, इन सबकी वजह से देश का किसान बड़े स्तर पर लाभ उठाता रहा है. इस दिशा में देश के किसानों को मदद पहुंचाने के लिए पूसा संस्थान फसलों की कई वेरायटी विकसित करता रहा है. खासकर बासमती चावल की वेरायटी जिसमें मुच्छल का भी नाम दर्ज है.