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World Environment Day : विश्व पर्यावरण दिवस पर प्लास्टिक को ना कहे , पशु और प्रकृति दोनों हो रहा नुकसान

World Environment Day : विश्व पर्यावरण दिवस पर प्लास्टिक को ना कहे , पशु और प्रकृति दोनों हो रहा नुकसान

World Environment Day : विश्व पर्यावरण दिवस  हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है और हर बार  एक अलग थीम होती है, जो वैश्विक महत्व के एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दे पर प्रकाश डालती है. इस बार विश्व पर्यावरण दिवस 2023 की थीम है “BeatPlastic Pollution Campaign के तहत प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान है ,आज जल और जमीन पर प्लास्टिक फेकने से  पशु , जल जीव और प्रकृति दोनों नुकसान हो रहा है. जिसका प्रभाव इंसानो पर भी पड़ रहा है.

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विश्व पर्यावरण दिवस  पर प्लास्टिक को कहे ना , फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया विश्व पर्यावरण दिवस पर प्लास्टिक को कहे ना , फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

World Environment Day : विश्व पर्यावरण दिवस  हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है हर बार  एक अलग थीम होती है, जो वैश्विक महत्व के एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दे पर प्रकाश डालती है इस बार विश्व पर्यावरण दिवस 2023 की थीम है “BeatPlastic Pollution Campaign के तहत प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान  है.आज भारत दुनिया भर में समुद्र में प्लास्टिक बहाने वाला बारहवां देश बन चुका है,जिसमें पहला स्थान चीन का है .समुद्र में बहाए गए प्लास्टिक को पानी में रह रही मछली इत्यादि अपना निवाला बनाती हैं  जिसको काऱण मनुष्य भी प्लास्टिक की जद में आ जाते हैं. सबसे ज्यादा प्लास्टिक कचरे को समुद्र में डंप कर देता है,जिससे समुद्री जीव खाते हैं,चाहे मछली हो या कोई और जीव फिर ये मछलियां जो प्लास्टिक खाई रहती है,इंसान का भोजन बनती हैं .इसके ज़रिए प्लास्टिक मनुष्य के शरीर में इक्कट्ठा होता रहता है,ये माइक्रो प्लास्टिक मनुष्य के शरीर में सालों-साल जमा होकर कई तरह की बीमारियों को जन्म देती है.पर्यावरण दिवस पर प्लास्टिक पर ना कहे क्योकि पशु और प्रकृति दोनों नुकसान हो रहा  है.

प्लास्टिक की समस्या है गंभीर

अपने देश में  कई टन सिंगल यूज प्लास्टिक का कचरा हटाया जाता है .हम सिंगल यूज़ प्लास्टिक यानी एक बार इस्तेमाल के बाद फेंक दी जाने वाली डिस्पोज़बेल प्लास्टिक के आदि हो चुके हैं,हमारी इस बुरी आदत से हम अपने साथ-साथ प्रकृति और पशु दोनों को नुकसान पहुंचा रहे हैं ,भारत सरकार ने साल 2022 तक भारत को सिंगल-यूज प्लास्टिक से फ्री करने का लक्ष्य रखा था सरकार ने देशवासियों से सिंगल-यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को बंद करने की अपील भी किया था.क्योकि प्लास्टिक से होने वाली समस्या समय के साथ गंभीर होती जा रही है .प्लास्टिक बेजुबान जानवरों की मौत का कारण बनती जा रही है,इसी तरह नदियां, झीलें,तालाब में रहने वाले जीव खासकर मछलियां भी प्लास्टिक खाने से मर रही हैं,..प्लास्टिक खाने से इनका भी जीना मुश्किल हो गया है,इसिलिए हमें सिंगल यूज प्लास्टिक यानि ऐसा प्लास्टिक जिसे हम यूज करके फेंक देते हैं,ऐसे प्लास्टिक से छुटकारा मिलना चाहिए.

सिंगल-यूज प्लास्टिक क्या है ?

सिंगल-यूज प्लास्टिक यानि ऐसा प्लास्टिक जिसका इस्तेमाल हम सिर्फ एक बार करते हैं,.और फिर वो डस्टबिन में चला जाता है. सीधे शब्दों मे कहें तो इस्तेमाल करके फेंक दिए जाने वाली प्लास्टिक को ही सिंगल-यूज प्लास्टिक कहा जाता है. जैसे- प्लास्टिक बैग, प्लास्टिक की बोतलें, स्ट्रॉ, कप, प्लेट्स, फूड पैकजिंग में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक, गिफ्ट रैपर्स और कॉफी की डिस्पोजेबल कप्स आदि है .

दुनिया और देश में बढ़ रही टेंशन

प्लास्टिक के प्रदूषण के असर से कोई अछूता नहीं हैजो प्लास्टिक फेंक दिया जाता है वो मिट्टी और पानी दोनों को प्रदूषित करता है,दुनिया में हर साल 3000 लाख टन प्लास्टिक प्रोड्यूस होता है,इसमें से 1500 मिलियन टन प्लास्टिक सिंगल-यूज होता है,.यानी ये प्लास्टिक हम एक बार इस्तेमाल कर फेंक देते हैं,वहीं दुनियाभर में सिर्फ 10 से 1फीसदी प्लास्टिक री-साइकिल हो पाता है.भारत की एक आंकडे के अनुसार प्लास्टिक की मांग  साल 2021-22 में 200 .89 लाख टन तक पहुंच गई है और 2023 तक 220 लाख टन तक बढ़ने का अनुमान है ,भारत में प्रतिदिन जितना प्लास्टिक इस्तेमाल किया जाता है,उसका 60 फीसदी ही इसको रिसायकल किया जाता है,वहीं दूसरे देशों में 91 प्रतिशत प्लास्टिक रिसायकल कर लिया जाता है. 

डेयरी पशुओं की पीड़ा समझें

यही नही अपनी सुविधा के लिए इजाद किए गए पॉलिथीन बैग्स बेजुबान पशुओं की मौतों का कारण बन रहे हैं .प्लास्टिक की पन्नियों में भरकर खाने वाली सामग्री का जूठन गली-मोहल्ले, सड़क, नालियों पर फेंक दिया जाता है। पालतू पशु इन्हें खा लेते हैं. ये पन्नियां उनकी आंतों में फंसने लगती हैं और धीरे-धीरे बड़े गोले का रूप ले लेती हैं। ज्यादातर गाय-बकरियों के इलाज के लिए समय ही नहीं बचता। उन्हें अस्पताल लाने से पहले ही उनकी मौत हो जाती है.बढ़ती आबादी ने ऐसी दुर्व्यवस्था फैला रखी है,प्लास्टिक हमारे आपके जीवन में इतना उपयोगी हो गया है,की हमें इसे छोड़ नही पा रहे हैं,जिसे पशु जाने आनजाने में खा लेता है,जैसे हम बाजार से पॉलीथीनन लाते हैं,..उसमें घर से निकलने वाली हरी सब्जी खाना डालकर फेंक देते हैं,पशु को तो प्लास्टिक की समझ नही होती और वो लालच में प्लास्टिक भी खा लेता है.

पशुओं के जान को खतरा ज्यादा 

असोल जयपुर के वेटनरी डाक्टर डॉ बंशीधर यादव ने किसान तक में कहा कि  गाय व इस श्रेणी के मवेशियों के पेट में चार चेंबर होते हैं। पहले चेंबर रुमन में प्लास्टिक फंस जाने से वह आगे नहीं बढ़ पाता है प्लास्टिक एक-दूसरे से लपेटकर एक ही जगह पर जम जाती है. ऐसे में पशुओं के पेट की पाचन क्रिया बंद हो जाती है और वे बीमार हो जाते हैं. कई बार ऑपरेशन कर प्लास्टिक निकाल लिए जाते हैं. हालांकि इसके बाद भी उन्हें संक्रमण के चलते जान का खतरा होता है. पशुओं के पेट में प्लास्टिक जमीं तो समझिए उनके बचने का चांस 50 फीसदी होता है.

बेजुबान पशुओं की जान ले रहा जहरीला प्लास्टिक

एन डी कृषि विश्वविद्यालय अयोध्या के पशुचिकित्सा के सहायक प्रोपेसर डॉ राजपाल दिवाकर ने कहा कि  प्लास्टिक खाने से पशु तत्कालिक मौत तो नही होती है,मौत तो खाने के बाद ये पशु के रूमेन में फल जाता है,जिसके बाद पशु के पेट में चारा नही जा पाता हैइससे पशु का पेट प्लास्टिक के कारण फूल जाता हैऔर रुमिनल मूवमेंट ना होने के कारण मर जाता हैराजपाल दिवाकर ने कहा कि खुले में फेंके गए प्लास्टिक बैग गाय, बकरी, कुत्तों सहित अन्य जीवों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। इनमें बेकार सब्जियां व खाने-पीने की वस्तुएं होने से मवेशी इन्हें खा लेते हैं। पशु चिकित्सालय में इस तरह के केस अक्सर सामने आते रहते हैं। पॉलिथीन कई मवेशियों की मौत का कारण बनती है। जलाशय, नदी-नाले, झील, नदी इत्यादि में भी मछली आदि पॉलिथीन को खा लेती हैं, जिससे वे भी जिंदा नहीं बचते है. उन्होंने कहा कि प्लास्टिक कतई ना फेंके खेत हो फिर सड़क.पशुओं के लिए एक अनबूझ पहेली की तरह है,क्योंकी पशु जब इसे खाता है तो वो काल के गाल में समा जाता है.

यह चीजें एकाएकसे हूई है बल्कि जाने-आनजाने लगातार की जा रही गलतियों का परिणाम है हम अपनी विकास की अंधी दौड़ में इतने अंधे की इसके दुष्परिणाम से अज्ञान रहें,..पॉलीथीन हमारी दिनचर्या के हर काम का अभिन्न हिस्सा होती चली गई येजरूरी है की हम प्लास्टिक बैग्स का उपयोग बंद करें.और इसके लिए किसी क़ानून का इंतज़ार ना करें, बाज़ार से लाने के लिए पेपर बैग्स या कपड़ों के बने झोलों का प्रयोग करें.

प्लास्टिक से निपटने के लिए सरकार की रणनीति

भारत सरकार  ने  सिंगल यूज (एक बार उपयोग वाली) प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के आह्वाहन किया था और1 जुलाई, 2022 को कूड़े और अप्रबंधित प्लास्टिक कचरे के कारण होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए एक निर्णायक कदम उठाया गया था. भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा अप्रबंधित और बिखरे हुए प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए अपनाई गई रणनीति के दो स्तंभ हैं, सिंगल यूज वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लागू करना, जिन्हें लैंडफिल नहीं किया जा सकता है  और दूसरा प्लास्टिक पैकेजिंग  उत्पादको के उत्तरदायित्व के कार्यान्वयन में वृद्धि करना है , इस संबंध में मंत्रालय ने सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के लिए 12 अगस्त 2021 को अधिसूचना जारी की थी. इसके अलावा, प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) पर दिशानिर्देश 16 फरवरी 2022 को अधिसूचित किए गए थे.

प्लास्टिक के कई विकल्प मौजूद ,करें उनका उपयोग

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तमंत्रालय ने पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों के विकास में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए इंडिया प्लास्टिक चैलेंज हैकथॉन-2021 का आयोजन किया था  इस हैकथॉन के तहत पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों के लिए दो अभिनव समाधान प्रस्तुत किए गए। ये हैं- पहला  धान के पुआल से बनी एक ठोस पैकेजिंग सामग्री, के लिए इस्तेमाल करना जो न केवल प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या का समाधान करेगी, बल्कि पुआल जलाने से होने वाले प्रदूषण को कम करने में भी मदद करेगी, और दूसरा  एक पैकेजिंग झिल्ली जो समुद्री शैवाल से बनाई जाती है, जिसका उपयोग रैपिंग और कैरी बैग के रूप में किया जाता है. पिछले साल 26 और 27 सितंबर, 2022 को चेन्नई में पर्यावरण-विकल्पों पर एक राष्ट्रीय एक्सपो का आयोजन किया गया था. पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों में समुद्री शैवाल, कोई, चावल और गेहूं की भूसी, पुआल, पौधे और कृषि अवशेष, केला और सुपारी, जूट और वस्त्र शामिल हैं जिससे प्लास्टिक के उपयोग को कम कर देगे.

वहीं, राज्य सरकारें भी प्रतिबंधित सिंगल यूज प्लास्टिक आइटम्स के बजाय पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को बढ़ावा देने की पहल कर रही हैं. ग्राम पंचायत स्तर पर "बर्तन स्टोर" स्थापित किए हैं राज्यों में कपड़े के थैले सिलने के लिए स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया है और कुछ मामलों में कपड़े के थैले बनाने के लिए बाजारों में वेंडिंग मशीनें लगाई गई हैं. कुछ राज्य सरकारों ने सरकारी कार्यालयों और बाजारों को एकल-उपयोग प्लास्टिक मुक्त बनाने के लिए स्वैच्छिक उपाय किए हैं.