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174 साल पुरानी है कांगड़ा चाय, अंग्रेज अफसर ने खास‍ियत पहचान कर शुरू कराई थी खेती 

174 साल पुरानी है कांगड़ा चाय, अंग्रेज अफसर ने खास‍ियत पहचान कर शुरू कराई थी खेती 

भारत की दार्जलिंग चाय कुछ समय पहले तक हर किसी की जुबान पर रहती है. इसका कारण इसका स्वाद और मनमोहक खुशबू हुआ करती थी. लेकिन अब कांगड़ा चाय का पलड़ा धीरे-धीरे भारी होता नजर आ रहा है. हिमाचल में उगाई जाने वाली कांगड़ा चाय ना सिर्फ हिमाचल और भारत में बल्कि विश्व में भी अपने स्वाद का परचम लहराने के लिए तैयार है.

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कांगड़ा चाय को मिली नई पहचान, यूरोपीय संघ से मिला GI Tag कांगड़ा चाय को मिली नई पहचान, यूरोपीय संघ से मिला GI Tag

भारत में चाय की दिवानगी किसी से छुपी हुई नहीं है. प्यार से लेकर इकरार तक में लोग सबसे पहले चाय की चुसकियां लेना पसंद करते हैं. चाय की टपरी पर राजनीतिक मुद्दे सबसे अधिक सुलझाए जाते हैं. तो वहीं देश-दुनिया की सभी बातों पर चर्चा भी चाय की टपरी पर ही परवान चढ़ती हैं. ये भी सच है क‍ि इस देश में चाय पर चर्चा से सरकार बनने तक का सफर तय है. इसी बीच देश की एक चाय इन द‍िनों चर्चा में आई है, ज‍िसका नाम कांगड़ा चाय है. इस कांगड़ा चाय को यूरोप‍ियन यूनि‍यन ने भौगौल‍िक संकेतक (जीआई) टैग से नवाजा है, ज‍िसके बाद कांगड़ा चाय को ग्लोबल पहचान म‍िली है, लेक‍िन, क्या आपको कांगड़ा चाय का इत‍िहास पता है.

कांगड़ा चाय के इत‍िहास की बात करें तो इसका इत‍िहास 174 साल पुराना है. अंग्रेज अफसर ने ह‍िमाचल के कांगड़ा ज‍िले की खास‍ियत पहचान कर यहां पर चाय की खेती शुरू करवाई थी. आइए जानते हैं क‍ि पूरी कहानी क्या है. 

क्या है कांगड़ा चाय का इतिहास

कांगड़ा चाय के इतिहास की बात करें तो यह करीब 174 साल पुराना है. असल में साल 1849 में बॉटनिकल टी गार्डन के तत्कालीन अधीक्षक डॉ. जेम्सन ने कांगड़ा क्षेत्र घुमने आए थे. इस दौरान उन्होंने जब ये क्षेत्र देखा तो उन्हें ये चाय की खेती के ल‍िए सबसे मुफीद लगा. इसके बाद उन्होंने कांगड़ा को चाय की खेती के लिए आदर्श बताया था.उसके बाद शुरू हुआ ये सफर मौजूदा समय में वैश्व‍िक स्तर पर अपनी छाप छोड़ रहा है. 

कांगड़ा चाय का स्वाद है खास

कांगडा चाय की बात करें तो इसकी खेती अन्य चाय बागान क्षेत्रों की तुलना में सबसे कम में हाेती है. वहीं कांगड़ा चाय की व‍िशेष पहचान हरी और काली चाय है, काली चाय का स्वाद मीठा है. वहीं हरी चाय में एक वुडी सुगंध होती है. इस वजह से कांगड़ा की चाय की बेहद ही मांग है. इसके स्वाद की वजह से स्थानीय स्तर पर ही इसकी खपत बहुत अध‍िक होती है, जबक‍ि इसका न‍िर्यात भी होता है.  

यूरोपीय संघ से पहले भारत में म‍िला GI Tag

कांगड़ा चाय को यूरोपीय यून‍ियन ने जीआई टैग द‍िया है. इससे पहले इन्हीं खूबियों की वजह से भारत से साल 2005 में इसे जीआई टैग से नवाजा था. जिसके बाद कांगड़ा चाय की लोकप्रियता बढ़ने लगी. आज यानी 30 मार्च 2023 को यूरोपीय संघ ने कांगड़ा चाय को GI टैग से सम्मानित किया है. घाटी की प्रसिद्ध कांगड़ा चाय यूरोपीय देशों को बड़े पैमाने पर निर्यात की जाती है. यहां कांगड़ा चाय की काफी डिमांड रहती है. ऐसे में अब कांगड़ा चाय अपनी अगली मंजिल के लिए तैयार नजर आ रही है.


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