अपने देश में गन्ना प्रमुख नकदी फसल के रूप में उगाया जाता है. यहां इसकी लगभग 60 लाख हेक्टेयर में खेती होती है. इतनी बड़े खेती के एरिया में से 2022-23 के दौरान लगभग 494 मिलियन मीट्रिक टन गन्ना हुआ था. ब्राजील के बाद भारत दुनिया में गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. जबकि भारत में उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र इसके सबसे बड़े उत्पादक के तौर पर जाने जाते हैं. इस साल महाराष्ट्र में सूखे की वजह से फसल बहुत प्रभावित हुई है. जबकि उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में गन्ने की फसल में लाल सड़न (रेड रॉट) फैल गया था. जिससे वहां भी किसान परेशान रहे हैं. गन्ने की फसल को रोगों से बहुत खतरा रहता है. इसमें लगने वाले लाल सड़न के अलावा दो और खतरनाक रोगों का खतरा रहता है. इनके बारे में जानते हैं.
इनमें से एक रोग है पोक्का बोईंग. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार यह फफूंद जनित रोग है. इसमें चोटी की कोमल पत्तियां मुरझाकर काली सी पड़ जाती हैं. पत्ती का ऊपरी भाग सड़कर गिर जाता है. पत्र फलक के पास की पत्तियों के उपरी व निचले भाग पर सिकुड़न के साथ सफेद धब्बे दिखाई देते हैं. इस रोग के स्पष्ट लक्षण विशेष रूप से माह जुलाई से सितंबर (वर्षा काल) तक प्रतीत होते हैं. ग्रसित पौधों के नीचे की पोरियों की संख्या अधिक व छोटी हो जाती हैं. पोरियों पर चाकू से कटे जैसे निशान भी दिखाई देते हैं.
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उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद शाहजहांपुर के वैज्ञानिकों के अनुसार पोक्का बोईंग रोग लगने के बाद कुछ खास फफूंदनाशी में से किसी एक का घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर दो बार पर्णीय छिड़काव करें.
इस रोग के लक्षण प्रतीत होते ही कार्बेन्डाजिम 50 WP का 0.1 प्रतिशत, 400 ग्राम फफूंदनाशी तथा 400 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें. या फिर इसकी जगह कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 WP के 0.2 प्रतिशत, 800 ग्राम फफूंदनाशी तथा 400 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.
यह बैक्टीरिया जनित रोग है. यह रोग जून से वर्षा ऋतु के अंत तक रहता है. इसमें पत्ती के मध्यशिरा के सामानान्तर गहरे लाल रंग की धारियां दिखाई देती हैं. इसका संक्रमण होने पर गन्ने के अगोले के बीच की पत्तियां सूखने लगती हैं. बाद में पूरा अगोला ही सूख जाता है. यह नीचे की ओर सड़ जाता है. सड़ाव से काफी दुर्गंध आती है तथा तरल पदार्थ सा प्रतीत होता है.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार संकमित पौधों को काटकर खेत से निकाल दें. या फिर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 WP का 0.2 प्रतिशत, 800 ग्राम फफूंदनाशी तथा स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का 0.01 प्रतिशत, 40 ग्राम दवा का 400 लीटर पानी के घोल के साथ प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के बीच दो बार छिड़काव करें. यह संभव न हो तो सिर्फ 0.01 प्रतिशत स्ट्रेप्टोसाइक्लिन, 40 ग्राम दवा तथा 400 लीटर पानी के मिश्रण के साथ प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें.
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