भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां पर किसान खेती करने के साथ-साथ बड़े स्तर पर पशुपालन भी करते हैं. इससे किसानों की अच्छी कमाई हो जाती है. लेकिन कई बार गाय- भैंस समय पर गर्भ धारण नहीं करती हैं. ऐसे में किसानों की परेशानी बढ़ जाती है. मवेशियों का गर्भ ठहरा है कि नहीं, इसका पता लगाने के लिए किसानों को कई महीनों तक इंतजार करना पड़ता है. ऐसे में वे अपने मवेशियों का समय पर इलाज भी नहीं करवा पाते हैं. पर किसानों को मवेशियों के गर्भ धारण को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है. वैज्ञानिकों ने ऐसी किट विकसित की है, जिसकी मदद से 18 से 20 दिन में ही पता लग जाएगा कि गाय-भैंस का गर्भ ठहरा है या नहीं.
आमतौर पर मवेशियों के गर्भ धारण की सही जानकारी 60 से 65 दिन के बाद ही लगाया जाता है. इसके लिए पशु चिकित्सक गाय-भैंस का अल्ट्रासाउंड करते हैं. लेकिन अब इस किट से गर्भ धारण का पता लगाने में असानी होगी. किसान 18 से 20 दिन में अपनी गाय-भैंस के गर्भ धारण का पता लगा सकते हैं. दरअसल, केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने पिछले साल अगस्त महीने में पशुओं के गर्भ धारण की जांच के लिए एक किट तैयार की थी. वैज्ञानिकों ने इस कीट के पेटेंट के लिए आवेदन भी कर दिया था. खास बात यह है कि यह कीट काफी सस्ता होगा. इसकी कीमत 20 रुपये के करीब होगी.
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पशु वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रेग डी किट एक जैव रसायनिक प्रक्रिया है. गर्भ धारण का पता लगाने के लिए सबसे पहले गाय- भैंस के मूत्र को किट पर डाला जाता है. थोड़ी देर बाज मूत्र का रंग गहरा लाल या बैंगनी हो जाता है. इसका मतलब यह हुआ कि गाय-भैंस ने गर्भ धारण कर लिया है. यानी उसके गर्भ में बच्चा पल रहा है. लेकिन किट पर पीला रंग या हल्का रंग दिखाई दे, तो इसका मतलब यह हुआ कि आपकी गाय- भैंस ने गर्भ धारण नहीं किया है.
वहीं, इस कीट से मवेशियों के हेल्थ के बारे में भी जानकारी मिल जाएगी. अगर कीट 100 प्रतिशत रिजल्ट नहीं बताती है, तो समझो आपका मवेशी बीमार है. खास बात यह है कि जब आप प्रेग्नेंसी टेस्ट के लिए भैंस का सैंपल ले रहे हों तो उस वक्त मूत्र का तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए.
दरअसल, गाय- भैंस समय पर गर्भधारण नहीं करती हैं, तो इससे पशुपालकों को नुकसान उठाना पड़ता है. क्योंकि जब तक भैंस गर्भ धारण नहीं करेगी, तब तक वह बच्चा नहीं देगी. और जब तक बच्चा नहीं दोगी, तब तक वह दूध देना भी शुरू नहीं करेगी. ऐसे में पशुपालकों के ऊपर खर्च का बोझ बढ़ता जाता है. क्योंकि किसानों को अपने जेब से गाय- भैंस को आहार खरीद कर खिलाने पड़ेंगे. इससे उनका आर्थिक नुकसान होगा.
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