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17 एकड़ के खेत को बनाया मल्टी क्रॉप का अनूठा मॉडल, फार्म डिजाइनिंग बना टूल

17 एकड़ के खेत को बनाया मल्टी क्रॉप का अनूठा मॉडल, फार्म डिजाइनिंग बना टूल

मोनो क्रॉप, अर्थात एक खेत में साल दर साल, एक ही फसल उपजाने वाले बड़ी जोत के किसानों का रुझान अब अपने खेत में बहुफसली यानि मल्टी क्रॉप मॉडल पर उपज लेने की ओर तेजी से बढ़ रहा है. 'मोनो क्रॉप से मल्टी क्रॉप मॉडल' पर श‍िफ्ट होने का रुख, ऐसे साधन संपन्न किसानों में ज्यादा दिख रहा है, जो 5 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल वाले खेत में अब तक गेहूं और धान जैसी पारंपरिक फसलें करते आ रहे थे.

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यूपी में ललितपुर के किसान धर्मेंद्र सिंह ने मोनो क्रॉप छोड़ कर मल्टी क्रॉप मॉडल पर खेती शुरू की   यूपी में ललितपुर के किसान धर्मेंद्र सिंह ने मोनो क्रॉप छोड़ कर मल्टी क्रॉप मॉडल पर खेती शुरू की

यूपी में बुंदेलखंड के ललितपुर जिले में एक प्रगतिशील किसान ने सरकार की मदद से खेती के आधुनिक तरीकों को अपना कर 17 एकड़ के फार्म को बहुफसली खेती के 'मल्टी क्रॉप मॉडल' के रूप में विकसित किया है. किसान धर्मेंद्र सिंह ने ललितपुर जिले में तालबेहट तहसील के बरवारी खांदी गांव में बहुफसली खेती शुरू की है. इसमें वह एक साथ चना, मटर, गेहूं, जौ और सरसों के अलावा फल और सब्जी की भी उपज ले रहे हैं. पहली बार किए गए इस प्रयोग की कामयाबी के प्रति उत्साहित सिंह ने बताया कि खेत में दर्जन भर से अधि‍क उपज लेने के लिए अब तक के सभी उपाय कारगर साबित हुए हुए हैं. इसलिए वह इस मॉडल की कामयाबी के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त हैं.

फार्म डिजाइनिंग बनी कारगर टूल

क‍िसान धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि कृष‍ि एवं उद्यान विभाग के तकनीकी सहयोग से 17 एकड़ के खेत को मल्टी क्रॉप मॉडल के लिए डिजाइन किया गया है. उन्होंने बताया कि इस इलाके की जमीन समतल नहीं है, इसलिए जमीन को समतल कराने में लाखाें रुपए खर्च करने के बजाए खेत में फसलों की जगह का निर्धारण इस तरह किया गया है, जिससे कम पानी की जरूरत वाली फसलें ऊंचाई पर और ज्यादा पानी वाली फसलें निचले क्षेत्र में उपजाई जा सकें.

इस हिसाब से खेत को डिजाइन करने पर उन्होंने खेत में ढाई - ढाई एकड़ में गेहूं और जौ, एक एकड़ में चना, डेढ़ - डेढ़ एकड़ में मटर और सरसों लगाई गई है. इसके अलावा ढाई एकड़ में आलू, टमाटर, लौकी, खीरा और ककड़ी सहित अन्य सब्जियां, ढाई एकड़ में नींबू वर्ग के फल, एक एकड़ में आम और अमरूद तथा ढाई एकड़ में आंवले का बाग लगाया गया है. खेत के बीच में बड़ा सा कुंआ भी हाल ही में बनवाया गया है.

जल संचय का नजीर बना खेत

क‍िसान धमेंद्र सिंह ने 'किसान तक' को बताया कि बुंदेलखंड में पानी की कमी के लिए कुख्यात ललितपुर जिले में उनके गांव का भू जल स्तर सबसे बुरी हालत में है. ऐसे में उन्होंने सिंचाई के पारंपरिक तरीके को अपनाते हुए इस खेत में एक विशालकाय कुंआ बनवाया है. गर्मी में कुंआ सूखने पर इसे रिचार्ज करने के लिए एक बोरवेल भी है. बोरवेल से सीधे सिंचाई करने के बजाए इससे कुंआ को रिजार्च करते हैं.

उन्होंने बताया कि फसलों में सिंचाई के लिए ड्र‍िप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम लगाया है. सब्जियों की सिंचाई, ड्र‍िप पद्धति से और गेहूं आदि फसलों की सिंचाई मिनी स्प्रिंकलर से की जाती है. उन्होंने बताया कि इससे पहले गेहूं या धान की एक ही फसल के लिए इस्तेमाल हो रहे इस खेत में सिंचाई के लिए पानी की कमी का संकट होना हर साल की समस्या थी. पानी की कमी से खेत में किसी न किसी हिस्से की फसल सूख जाती थी.

सिंह ने बताया कि उद्यान विभाग की 80 प्रतिशत सब्स‍िडी पर खेत में लगाई गई ड्र‍िप और स्प्रिंकलर पद्धत‍ि से अब सिंचाई करने पर सभी फसलों को एक साथ सींचा जाता है. इससे पानी की 75 प्रतिशत तक बचत भी होती है. सिंह ने कहा कि सिंचाई का य‍ह कारगर मॉडल पूरे इलाके के लिए नजीर बन गया है. आसपास के अन्य किसान भी इससे प्रेरित होकर इस पद्धति को अपना रहे हैं.

आलू से मिला पहला मुनाफा

क‍िसान धर्मेंद्र सिंह ने बताया एक तरफ पूरे प्रदेश में आलू के किसान उपज का उचित मूल्य नहीं मिलने को लेकर परेशान हैं, वहीं, उन्हें आलू की ही उपज का बाजार से 10 गुना ज्यादा दाम मिला. इस खेत में बहुफसली खेती से मिला यह पहला मुनाफा था. उन्होंने बताया कि उन्होंने खेत के एक छोटे से हिस्से में आलू की उन्नत किस्म 'चिप्सोना' का महज 1 कुंतल बीज बोया था. इससे उन्हें 12 कुंतल उपज मिली. इसे उन्होंने ग्रामीण इलाकों में चिप्स बनाने वाले महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को 15 से 20 रुपये प्रति किग्रा की कीमत पर बेचा.

कीट प्रबंधन के आधुनिक और देसी तरीक अपनाए गए हैं मल्टीक्रॉप फार्म में

सहकार पर खेती 

क‍िसान धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि अब तक ग्रामीण इलाकाें में खेती के दो ही तरीके प्रचलित हैं. एक तो किसान खुद अपनी जमीन पर खेती करते हैं, जबक‍ि कुछ किसान किराए पर जमीन लेकर खेती करते हैं. सिंह ने बताया कि उन्होंने सरकार और जमीन के मालिक के साथ मिल कर पेशेवर अंदाज में स‍हकार पर आधारित खेती करना शुरू किया है.

उन्होंने बताया कि इस तरीके में खेत के मालिक जेके सिं‍ह, खुद एक कारोबारी हैं और वह इसमें फसलों की लागत का वहन खुद करते हैं. सरकार की तरफ से तकनीकी सहयोग मिलता है और वह खुद मेंटेनेंस से लेकर उपज की बिक्री होने तक की पूरी जिम्मेदारी उठाते हैं. इस प्रकार लाभांश में बराबर की हिस्सेदारी वाला यह खेती का सहकारिता पर आधारित नया तरीका उभर कर सामने आया है.

व्यापार मॉडल पर शुरू की खेती

क‍िसान धर्मेंद्र सिंह ने कहा कि उनका पूरा जोर खेती की लागत को कम करने पर है. पूरे खेत में ड्र‍िप पद्धति से सिंचाई करने के बावजूद अभी बिजली का बिल जीरो करना बाकी है. इसके लिए सोलर पंप योजना में उन्होंने आवेदन कर दिया है. सोलर पंप की मदद से बिजली का खर्च भी नगण्य हो जाएगा. इसी प्रकार खाद और बीज आदि के लिए वह फार्म में ही फसल अवशेष से जैविक खाद बनाने एवं बीज बैंक स्थापित कर रहे हैं.

फल सब्जी एवं अन्य उपज की बिक्री के लिए स्थानीय बाजार में सप्लाई के लिए कारोबारियों से करार किया जा रहा है. साथ ही गेहूं, चना, सरसों और मटर आदि पारंपरिक उपज के लिए प्रसंस्करण की यूनिट लगाकर इनके उत्पाद स्थानीय बाजार में बेचे जाएंगे. सिंह ने कहा कि उन्होंने अब पूरी तरह से व्यापारिक नजरिए के साथ खेती करना शुरू किया है. इसके शुरुआती परिणाम उत्साहजनक हैं.

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