सरसों के बंपर उत्पादन पर केंद्र सरकार इतरा रही है. लेकिन, इसकी खेती करने वाले किसान पछता रहे हैं. क्योंकि उन्हें ज्यादातर राज्यों में इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तक नसीब नहीं हो रहा. उससे ज्यादा दाम पर बिकने की बात तो भूल ही जाईए. इन दिनों किसान एमएसपी से एक हजार रुपये प्रति क्विंटल तक के कम दाम पर व्यापारियों को सरसों बेचने के लिए मजबूर हैं. केंद्र ने खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी लगभग खत्म कर दी है और राज्य सरकारें खरीद नहीं कर रही हैं. तेल के इस खेल में बेचारे किसान पिस रहे हैं. केंद्र सरकार ने एक नियम बनाया हुआ है कि कुल उत्पादन का एक चौथाई तिलहन एमएसपी पर खरीदा जाएगा. इस हिसाब से इस साल 31.25 लाख मीट्रिक टन सरसों की खरीद होनी चाहिए. क्योंकि उत्पादन 125 लाख मीट्रिक टन हुआ है. लेकिन देश में अब तक सिर्फ 6,72,802 मीट्रिक टन ही सरसों खरीदा गया है.
ऐसे में सरकारों से किसान क्या उम्मीद करें? आपके मन में यह सवाल उठ सकता है कि जब भारत खाद्य तेलों के मामले में अभी तक आत्मनिर्भर नहीं है तो भी क्यों यहां के किसानों को सरसों का उचित दाम नहीं मिल रहा है? दरअसल, खाद्य तेलों की हमारी आयात नीति ऐसी हो गई है कि कारोबारियों को दूसरे देशों से खाद्य तेल मंगाना सस्ता पड़ रहा है. ऐसे में वो वही कर रहे हैं जिससे उनकी कमाई बढ़े. किसान नेता आरोप लगा रहे हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें दोनों मिलकर सरसों की खेती करने वाले किसानों का 'तेल' निकाल रही हैं.
इसे भी पढ़ें: यूं ही नहीं है पूसा बासमती-1121 का दबदबा, ये है दुनिया के सबसे लंबे चावल की पूरी कहानी
दरअसल, पिछले दो साल से किसानों को ओपन मार्केट में सरसों का भाव एमएसपी से अधिक मिल रहा था. इसलिए उन्होंने दूसरी फसलों को छोड़कर तिलहन की खेती बढ़ाई, ताकि अच्छी कमाई की जा सके. लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया. पहले तो कुल उत्पादन की 25 फीसदी उपज खरीदने की तय लिमिट तक ज्यादातर राज्य सरकारें खरीद नहीं कर रही हैं और दूसरे खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी लगभग खत्म कर दी गई है. इसलिए खाद्य तेल कारोबारियों को आयात सस्ता पड़ रहा है. ऐसे में वो इंडोनेशिया, मलेशिया, रूस, यूक्रेन और अर्जेंटीना जैसे देशों के किसानों की जेब भर रहे हैं और अपने देश के किसानों को उचित दाम देने के लिए तैयार नहीं हैं.
साल | लाख हेक्टेयर | लाख टन |
2017-18 | 67.04 | 84.3 |
2018-19 | 69.17 | 92.56 |
2019-20 | 69.08 | 91.24 |
2020-21 | 73.12 | 102.1 |
2021-22 | 91.25 | 119.63 |
2022-23 | 98.02 | 124.94 |
Source: Ministry of Agriculture
सरसों खरीद इस बार काफी धीमी गति से चल रही है. ऐसे में ओपन मार्केट में किसानों को अच्छा दाम नहीं मिल रहा है. गिरते भाव के बीच तीन सूबों ने एमएसपी पर सरसों खरीदने का आंकड़ा एक लाख मीट्रिक टन के पार कर लिया है. इनमें हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान शामिल हैं. हालांकि, हरियाणा को छोड़ किसी भी राज्य ने अपना खरीद का टारगेट पूरा नहीं किया है. हरियाणा में सरसों की खरीद बंद हो चुकी है. इस साल अब तक देश में सिर्फ 2,98,238 किसानों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरसों बेचा है. इन्हें 3667 करोड़ रुपये एमएसपी के तौर पर प्राप्त हुए हैं.
सरकार ने रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए सरसों का एमएसपी 5450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है. लेकिन अधिकांश मंडियों में इसका न्यूनतम, औसत और अधिकतम दाम एमएसपी के आसपास भी नहीं है. राजस्थान की कुछ मंडियों में इसका दाम 4000 रुपये प्रति क्विंटल तक के निचले स्तर पर आ गया है. ज्यादातर मंडियों में 4500 रुपये का भाव चल रहा है.
किसान नेता रामपाल जाट का आरोप है कि ज्यादातर राज्य सरकारें व्यापारियों को फायदा पहुंचाने के लिए एमएसपी पर खरीदनहीं कर रही हैं. खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर होने का सपना कभी किसानों को हतोत्साहित करके पूरा नहीं होगा. हमने पिछले साल 1.41 लाख करोड़ रुपये का खाद्य तेल इंपोर्ट किया है. सवाल यह है कि जब भारत सरकार देश को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनाना चाहती है तो फिर वो आयात को प्रमोट करने वाली नीतियां क्यों लागू कर रही है? दरअसल, कुछ बड़े कारोबारियों के तेल के खेल में सरसों किसान पिस रहे हैं. जो किसान अपने यहां तिलहन की खेती करके देश का पैसा दूसरे देश में जाने से बचा रहे हैं सरकार उन्हें उनका हक दिलाने के लिए तैयार नहीं है. कम से कम कुल उत्पादन की 25 फीसदी खरीद तो सुनिश्चित होनी ही चाहिए.
अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर के मुताबिक वर्तमान में कच्चे पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल के आयात पर केवल 5 फीसदी कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर उपकर और 10 फीसदी शिक्षा उपकर लगता है. जिसका अर्थ कुल 5.5 फीसदी टैक्स है. जबकि रिफाइंड खाद्य तेल के मामले में प्रभावी आयात शुल्क 13.75 फीसदी है. सालाना 14 मिलियन टन खाद्य तेल आयात करते हैं. जिसमें से कच्चे तेल की हिस्सेदारी 75 फीसदी और रिफाइंड की 25 फीसदी है. किसान खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी पहले की तरह 45 फीसदी करने की मांग कर रहे हैं. लेकिन, फिलहाल, इसे बढ़ने की संभावना नहीं दिख रही है.
इसे भी पढ़ें: Wheat Production: इस साल भारत में कितना पैदा होगा गेहूं, सरकार ने दी पूरी जानकारी
Copyright©2024 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today