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PUSA 1121: यूं ही नहीं है पूसा बासमती-1121 का दबदबा, ये है दुन‍िया के सबसे लंबे चावल की पूरी कहानी

PUSA 1121: यूं ही नहीं है पूसा बासमती-1121 का दबदबा, ये है दुन‍िया के सबसे लंबे चावल की पूरी कहानी

Pusa Basmati 1121: पूसा सुगंध-4 को कैसे म‍िला 'बासमती' सरनेम और इसका नया नाम हो गया पूसा बासमती-1121, क्यों विदेशी बाजारों में सबसे ज्यादा है इस क‍िस्म के चावल की मांग, क‍िसने व‍िकस‍ित इतनी लोकप्र‍िय वैराइटी, क‍ितने क्षेत्र में होती है इसकी बुवाई. जान‍िए इसके बारे में सबकुछ. 

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क्यों इतनी लोकप्र‍िय है पूसा बासमती-1121 क‍िस्म (Photo-IARI). क्यों इतनी लोकप्र‍िय है पूसा बासमती-1121 क‍िस्म (Photo-IARI).

क्वीन ऑफ राइस कहे जाने वाले बासमती चावल (Basmati Rice) की भारत में इस वक्त 45 क‍िस्में हैं, ज‍िसमें से करीब 47 फीसदी क्षेत्र पर एक ही वैराइटी का कब्जा है. इसका नाम पूसा बासमती-1121 (PB 1121) है. जाह‍िर है क‍ि इसमें कुछ तो ऐसा खास होगा ज‍िसकी वजह से यह खाने और उगाने वालों के द‍िलों पर राज कर रही है. दरअसल, स्वाद और खुशबू से भरपूर यह दुन‍िया का सबसे लंबा चावल है. इसल‍िए चावल में सबसे ज्यादा एक्सपोर्ट इसी का होता है. इसका ब‍िना पका चावल 9 एमएम और पकने के बाद 15 से 22 एमएम तक हो जाता है. इसी खास‍ियत की वजह से इसे लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में जगह म‍िली है. इस क‍िस्म को व‍िकस‍ित करने का श्रेय भारतीय कृष‍ि अनुसंधान संस्थान (IARI) पूसा में जेनेट‍िक्स ड‍िवीजन के प्रोफेसर रहे डॉ. व‍िजयपाल स‍िंह को जाता है.

चूंक‍ि यह चावल पकने के बाद लगभग एक इंच लंबा हो जाता है. इसकी प्लेट ईल्ड दूसरी क‍िस्मों से बहुत अच्छी है. यानी कम चावल में ही प्लेट भरा द‍िखता है. इसल‍िए होटल इंडस्ट्री में यह काफी लोकप्र‍िय है. समय-समय पर इसमें सुधार क‍िया गया है. पहले इसे जीवाणु झुलसा (Bacterial Leaf Blight) रोधी बनाया गया. तब इसका नाम पूसा बासमती-1718 हो गया. इसके बाद इसमें लगने वाले झोका रोग (Blast Disease) को भी खत्म क‍िया गया. इसके बाद इसका नाम पूसा बासमती-1885 हो गया. हालांक‍ि, यह आज भी लोकप्र‍िय पूसा बासमती-1121 के नाम से ही है. एक्सपोर्ट में भी इसी नाम का इस्तेमाल क‍िया जाता है. दुन‍िया में सबसे लोकप्र‍िय बासमती की इस क‍िस्म को व‍िकस‍ित करने के ल‍िए डॉ. व‍िजयपाल स‍िंह को पद्म श्री म‍िल चुका है.

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पूसा सुगंध-4 था पीबी-1121 का नाम

इस क‍िस्म के साथ एक द‍िलचस्प कहानी भी जुड़ी हुई है. पहले इसके नाम में बासमती शब्द नहीं था. बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन (BEDF) के प्र‍िंस‍िपल साइंट‍िस्ट डॉ. र‍ितेश शर्मा ने 'क‍िसान तक' से बातचीत में बताया क‍ि जब यह 2003-04 में र‍िलीज हुई तो इसका नाम पूसा सुगंध-4 था. अपनी खूबियों की वजह से इसकी चर्चा होने लगी. तब इसे बासमती 'सरनेम' देने का फैसला ल‍िया गया. इसके ल‍िए बासमती की पर‍िभाषा बदली गई. फ‍िर 2008 में इसका सीड एक्ट-1966 के तहत र‍िनोट‍िफ‍िकेशन क‍िया गया. तब पूसा सुगंध-4 बदलकर पूसा बासमती-1121 हो गया.

पूसा बासमती-1121 (Photo-IARI).

इस तरह बदली बासमती की पर‍िभाषा

डॉ. शर्मा ने बताया क‍ि हमारे पास बासमती की छह ट्रेड‍िशनल वैराइटी हैं. पहले के न‍ियम में यह था क‍ि क‍िसी नई क‍िस्म में बासमती नाम तभी जुड़ेगा, जब उसे बनाने में ट्रेड‍िशनल वैराइटी का कोई एक डायरेक्ट पैरेंट होगा. मतलब क‍िसी नई वैराइटी बनाने की प्रक्रिया में इनमें से उसके गुण लेने थे. पूसा सुगंध-4 बासमती की संतत‍ि जरूर थी, लेक‍िन इसमें बासमती की ट्रेड‍िशनल क‍िस्मों का कोई डायरेक्ट पैरेंट नहीं था. तब बासमती की पर‍िभाषा में से बासमती की ट्रेड‍िशनल वैराइटी के डायरेक्ट पैरेंट होने वाली शर्त हटाई गई. इसके बाद से क‍िसी नई क‍िस्म को बनाने में बासमती पीढ़ी के क‍िसी वैराइटी के अंश हों तो भी उसे बासमती क‍िस्म में ग‍िना जाता है.  

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बासमती बेल्ट में दबदबा

देश में 20.11 लाख हेक्टेयर में बासमती धान की खेती होती है. हिमालय की तलहटी में आने वाले इंडो-गंगेटिक प्लेन (IGP-Indo-Gangetic Plains) के 95 जिलों को बासमती चावल का जीआई टैग (Geographical Indication) मिला हुआ है. इनमें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली के अलावा पश्चिम उत्तर प्रदेश के 30 और जम्मू-कश्मीर के तीन जिले (जम्मू, कठुआ और सांबा) शामिल हैं. इस क्षेत्र के लोग बासमती चावल का उत्पादन और बिक्री दोनों कर सकते हैं. इसमें से 9.4 लाख हेक्टेयर में अकेले पूसा बासमती-1121 की खेती होती है. 

विदेशी बाजारों में इसकी मांग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चावल एक्सपोर्ट  में 1121 चावल की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है. इसका चावल लंबा और पतला होता है. अत्यधिक सुगंधित है. यह 145 दिन में तैयार होता है और औसत उपज 5 टन प्रत‍ि हेक्टेयर है.