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Watermelon: माधुरी तरबूज उगाकर मुनाफा कमा रहे हैं किसान, लीज पर जमीन लेकर हो रही है खेती, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

Watermelon: माधुरी तरबूज उगाकर मुनाफा कमा रहे हैं किसान, लीज पर जमीन लेकर हो रही है खेती, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

गाजीपुर क्षेत्र के किसान गंगा के किनारे लीज पर जमीन लेकर तरबूज, खरबूज के साथ ही लौकी, भिंडी, कद्दू, खीरा और ककड़ी आदि की खेती भी कर रहे हैं. वहीं किसान वहां माधुरी नस्ल के तरबूज उगा रहे हैं. इस नस्ल के तरबूज की डिमांड काफी तेजी से बढ़ रही है.

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माधुरी किस्म के तरबूज उगाकर किसान कमा रहे हैं अच्छा मुनाफा माधुरी किस्म के तरबूज उगाकर किसान कमा रहे हैं अच्छा मुनाफा

यूपी के गाजीपुर और आसपास के क्षेत्र में गंगा किनारे बलुहट मिट्टी वाले रेतीले खेतों में किसान इन दिनों तरबूज की फसल से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. तरबूज उत्पादक किसानों की आजकल पहली पसंद माधुरी नस्ल के तरबूज हैं. इस नस्ल के एक तरबूज का औसत वजन 8 से 12 किलो होता है. इसे उगाने वाले किसानों को मोटा मुनाफा भी हो रहा है. वहीं इस तरबूज को तैयार होने में सवा दो महीने का समय लगता है. गाजीपुर और पूर्वांचल सहित माधुरी किस्म के तरबूज की मांग बिहार, झारखंड, उड़ीसा, बंगाल और दिल्ली तक के बाजारों में खूब है. फिलहाल गंगा के रेतीले इलाके में इसकी खेती आजकल काफी अधिक मात्रा में हो रही है.

वहीं गाजीपुर के मध्य से गंगा नदी के गुजरने से गर्मी के दिनों में रेतीले खेतों में आजकल वहां के क्षेत्रीय किसान तरबूज की खेती मांग के अनुसार अधिक मात्रा में कर रहे हैं. खासतौर से  गंगा पार के इलाके जिसमें भदौरा, रेवतीपुर, जमानियां, दिलदारनगर और फौजी गांव से मशहूर गहमर के क्षेत्र शामिल हैं, वहां के किसान इन दिनों तरबूज की खेती कर के मोटा मुनाफा कमा रहे हैं.

किन फसलों की खेती कर रहे हैं किसान

इस क्षेत्र के किसान गंगा के किनारे लीज पर जमीन लेकर तरबूज, खरबूज के साथ ही लौकी, भिंडी, कद्दू, खीरा और ककड़ी आदि की खेती भी कर रहे हैं. रेवतीपुर के रहने वाले अनिल और पारस यादव की मानें तो उन्होंने प्रयोग के तौर पर इस साल अपने लीज लिए खेतों में तरबूज की खेती कराई है. वहीं बनारस से माधुरी नस्ल के तरबूज के बीज को लाकर उन्होंने अपने खेतों में बोया है. उन्होंने बताया कि तरबूज की माधुरी नस्ल हमारे क्षेत्र के लिए काफी अच्छी है, इस तरबूज के छिलके पतले होते हैं. वहीं इस एक फल का औसत वजन 8 से 12 किलो के बीच होता है. इस नस्ल को खेतों में बीज लगाए जाने के बाद लगभग सवा दो से ढाई महीने में तैयार हो जाता है.

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तरबूज की खेती में कितना आता है खर्च

पारस और अन्य किसानों के अनुसार प्रति बीघा तरबूज बोने का खर्च लगभग 18 से 19 हजार के करीब आता है, जून के महीने से फलों की अंतिम रूप से हार्वेस्टिंग (तुडाई) शुरू हो जाती है. उन्होंने बताया कि स्थानीय मार्केट के साथ ही तरबूज को हम किसान मिलकर बड़े ट्रक के माध्यम से गाजीपुर की बड़ी सट्टी, पाताल गंगा सब्जी मंडी,  वाराणसी की पहाड़ियां मंडी या फिर जैसे व्यापारी मिल जाएं उस हिसाब से बिहार, झारखंड, बंगाल और उड़ीसा तक भी भेजते हैं. जिसे उन्हें लोकल मार्किट की तुलना में बेहतर रेट मिल जाता है. वहीं क्षेत्रीय किसानों का दावा है कि ढाई महीने में नगद पैसा मिल जाता है और मुनाफा लागत से दोगुना हो जाता है.

लीज पर जमीन लेकर किसान कर रहे हैं खेती

फिलहाल गाजीपुर में किसानों को तरबूज की फसल से अच्छी कमाई हो रही है. किसानों की मानें तो इलाके के अन्य किसान भी धान गेहूं की पारंपरिक खेती के साथ ही फलों और सब्जियों की खेती करने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं. आलम यह है कि क्षेत्र के किसान 15 हजार रुपए प्रति एकड़ की दर से लीज पर जमीन लेकर भी सीजनल सब्जियों और फलों की खेती कर रहे हैं. जिसमें गर्मी में होने वाला तरबूज कमाई की दृष्टि से किसानों की पहली पसंद बना हुआ है और इसका प्रचलन अब धीरे-धीरे और जोर पकड़ रहा है क्योंकि इसकी मांग के अनुरूप दाम भी अच्छा और नगद मिल जा रहा है.