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नवरात्र‍ि में पिछले साल की तुलना से कम दाम में बिक रहा मखाना, जानें वजह

नवरात्र‍ि में पिछले साल की तुलना से कम दाम में बिक रहा मखाना, जानें वजह

मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा के प्रमुख व वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ मनोज कुमार के अनुसार इस साल मखाना का बीज (गुड़ी) कम भाव पर बिका है. जिसकी वजह से दाम में बढ़ोतरी नहीं हुई हैं. 

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फोटो 'किसान तक'-त्योहारों  के सीजन में मखाना का दाम स्थिर फोटो 'किसान तक'-त्योहारों के सीजन में मखाना का दाम स्थिर

नवरात्र‍ि का त्योहार अपने चरम पर है. इस पर्व पर व्रत रखने वाले लोगों की तरफ से सबसे अध‍िक मांग डाइट फ्रूट्स और मखाने की होती है. मसलन, मखाने की मांग बढ़ जाती है तो दाम में भी बढ़ोतरी होती है, लेक‍िन इस बार नवरात्रि‍यों में मखाने के दाम स्थ‍िर हैं. आलम ये है क‍ि मखाने के दाम पिछले साल की तुलना से कम दामों पर ब‍िक रहे हैं. इससे एक तरफ जहां ग्राहक खुश हैं तो वहीं मखाना के बीज से लावा तैयार करने वाले किसान मायूस हैं. मखाना के दाम में स्थिरता को लेकर मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा के प्रमुख व वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ मनोज कुमार के अनुसार इस साल मखाना का बीज (गुड़ी) कम भाव पर बिका है. जिसकी वजह से दाम में बढ़ोतरी नहीं हुई हैं. 

दुकानदारों और किसानों का कहना है कि पिछले साल ऑफ सीजन में मखाना का दाम 700 से 800 रुपए तक था. वहीं इस साल सितंबर महीने से ही 300 से 500 के बीच में मखाना बिक रहा है.

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दाम बेहतर नहीं मिलने से किसान परेशान

पिछले साल केंद्र सरकार ने मिथिला के मखाना को भौगौल‍िक संकेतक ( जीआई Tag) मिल चुका है, लेकिन उसके बाद भी मखाना के दाम में वृद्धि नहीं होने से किसान परेशान हैं. मधुबनी जिला के सिमरा गांव के रहने वाले किसान अशोक मुखिया मखाना की खेती के साथ बीज से मखाना भी निकालते है. किसान तक से बातचीत में वह बताते हैं कि मखाना के बीज का दाम साल 2021 में जहां 16 हजार रुपए प्रति क्विंटल से अधिक था. वहीं साल 2022 में 8000 रुपए प्रति क्विंटल भाव रहा, जिसके चलते गुड़ी से लावा तैयार करके बाजार में बेचने का निर्णय किया गया, लेकिन सितंबर से दिसंबर के बीच लावा का दाम 200 से 350 रुपए रहा. अब 500 से 400 रुपए के आसपास बिक रहा है. जबकि 2021 के सितंबर से दिसंबर महीने में लावा का दाम 400 रुपए के आसपास था. साल 2022 के मार्च -अप्रैल में 700 से 800 रुपए के आसपास रहा.

दरभंगा जिले के रहने वाले किसान राम कुमार साहू कहते हैं कि मखाना की खेती में जितनी मेहनत है. उसके हिसाब से पैसा नहीं मिलता है. एक मन(40 किलो) बीज निकालने में करीब मजदूरी एक हजार से 12 सौ रुपए के आसपास लगती है. वहीं बीज से लावा निकालने में भी खर्च आता है. 120 किलो बीज से करीब 40 से 50 किलो तक लावा निकलता है. हालत ये हैं कि पिछले साल कई किसान बेहतर दाम नहीं मिलने से खेत व तालाब में ही फसल को छोड़ रहे हैं. अगर ऐसे ही हालात रहे तो मखाने की खेती से नाता तोड़ना पड़ेगा. अभी मखाना की खेती शुरू हो गई है. और इस साल की फसल से उम्मीद है कि पिछले खेती में लगे घाटा को पूरा किया जा सके.

फोटो 'किसान तक' बाजार में मखाना की ख़रीदारी करते लोग
फोटो 'किसान तक' बाजार में मखाना की ख़रीदारी करते लोग

चैत्र नवरात्र व रमजान में कम रहती हैं मांग!

दरभंगा शहर के रहने वाले ड्राई फ्रूट्स के दुकानदार सूरज कुमार कहते हैं कि अभी हाल के समय में एक अच्छा लावा का दाम 500 से 600 रुपए के आसपास है. मीड‍ियम साइज का लावा 400 से 500 रुपए के बीच बिक रहा है. साथ ही मिक्स लावा 200 से 300 रुपए प्रति किलो है. यह पिछले साल की तुलना में कम है. वे बताते हैं कि लावा की मांग दशहरा, दीपावली में बहुत ज्यादा होती है. चैत्र नवरात्र या रमजान में मांग कम रहती है. पटना के सब्जी बाग इलाके में सड़क किनारे मखाना का दुकान लगाए हुए राजेन्द्र सहनी कहते हैं कि वह पूर्णिया जिला से मखाना लाते हैं. वे बताते हैं कि खरीदारी कम हो रही है. हर रोज 6 से 7 किलो बिक रहा है. मखाना खरीदने आए मुमताज आलम कहते हैं कि रमजान में मखाना की मांग ज्यादा नहीं  होती है. इससे अन्य ड्राई फ्रूट्स के साथ थोड़ा मात्रा में रखते हैं. पिछले 10 साल से मखाना की दुकान चला रहे सुमित कहते हैं कि हर रोज जहां 500 रुपए तक की कमाई हो जाती है. वहीं त्योहार के सीजन में 8 से 9 किलो तक मखाना बिक जाता है और इससे हजार रुपए तक की कमाई हो जाती है.

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दाम कम होने की वजह 

मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा के प्रमुख व वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ मनोज कुमार कहते हैं कि इस सीजन में मखाना का बीज पिछले साल की तुलना में आधी कीमत पर बिका है. साल 2021 में जहां 16 से 18 हजार रुपए प्रति क्विंटल गुड़ी (बीज) बिका था. वहीं इस सीजन में 8 हजार रुपए प्रति क्विंटल के आसपास बिका है. अगर बीज कम कीमत पर बिक गया तो दाम कम होना तय है. इसके साथ ही सभी किसान बीज से लावा तैयार नहीं करते हैं और इसकी वजह से भी दाम में कमी आई है. जहां उत्पादन में हर साल बढ़ोतरी हो रही है. वहीं मांग कम होने की वजह से दाम स्थिर है.