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किसान ने बताए बकरी पालन की ट्रेनिंग लेने के फायदे, ऐसे बढ़ा मुनाफा

किसान ने बताए बकरी पालन की ट्रेनिंग लेने के फायदे, ऐसे बढ़ा मुनाफा

बकरियों को रखे जाने वाले शेड में भी मौसम के हिसाब से बदलाव करना जरूरी होता है. साथ ही शेड की साफ-सफाई का भी अपना एक तरीका है. यही वो टिप्स हैं, जिन्हें अपनाने से बकरियों की मृत्यु दर कम होती है.

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बकरियों का प्रतीकात्मक फोटो. बकरियों का प्रतीकात्मक फोटो.

पारंपरिक और साइंटिफिक तरीके से बकरी पालन करने में बहुत बड़ा फर्क है. अगरा पुराने ढर्रे को छोड़ साइंटिफिक तरीके से बकरी पालन किया जाए तो मुनाफा तो बढ़ता ही है, साथ में लागत भी कम आती है और जोखिम भी ना के बराबर रह जाता है. यह मानना है केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (CIRG), मथुरा से ट्रेनिंग लेने वाले बकरी पालक नईम कुरैशी का. इनके परिवार में कई पीढ़ियों से बकरी पाली जा रही हैं, लेकिन नईम का मानना है कि ट्रेनिंग लेने के बाद से बहुत फर्क आया है. 

सीआईआरजी में साइंटिफिक तरीके से बकरी पालन कैसे हो, इसकी ट्रेनिंग दी जाती है. यह सात दिन का कोर्स होता है. थ्योरी के साथ-साथ फील्ड में भी ट्रेनिंग दी जाती है. इस खबर को लिखे जाने के दौरान 11 राज्यों से आए 78 किसान, जिसमे महिला-पुरुष दोनों शामिल हैं, ट्रेनिंग ले रहे हैं. बकरी के दूध और उसके मीट से किस तरह के बिजनेस किए जा सकते हैं, यह भी बताया जाता है.

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बकरियों में कम हो गई मृत्यु दर 

कुरैशी गोट फार्म के नाम से बकरी पालन करने वाले नईम कुरैशी ने किसान तक को बताया कि सीआईआरजी से ट्रेनिंग लेने का जो सबसे बड़ा फायदा हुआ, वो यह है कि हमारे फार्म पर बकरियों की मृत्यु दर कम होने के बाद अब ना के बराबर रह गई है. यह सब मुमकिन हुआ सीआईआरजी में पशु चारा, वैक्सीन, शेड प्लान, बीमारी की पहचान आदि की जानकारी मिलने से. वर्ना पहले देसी ढर्रे का तो यह हाल था कि बकरी का बच्चा पैदा होने के बाद हम अपनी मर्जी के हिसाब से उसे दूध पिलाते थे. कब वो कम दूध पी रहा है और कब ज्यादा, यह पता ही नहीं चलता था. जिसके चलते अक्सर बकरी के बच्चों की जल्द ही मौत हो जाती थी. 

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किसे, कब, कौन सा, कितना चारा देना है 

नईम का कहना है कि ट्रेनिंग करने के बाद पता चला कि बकरा हो या बकरी, सबको उनकी उम्र और वजन के हिसाब से चारा देना है. यहां तक की पिलाए जाने वाले पानी की मात्रा भी निर्धारित है. पहले यह बातें बड़ी ही छोटी लगती थीं. लेकिन अब देखने पर लगता है कि इसी पर पर बकरे-बकरियों का जीवन चक्र टिका हुआ है. हर रोज हरा चारा भी देना है तो सूखे चारे संग जौ-चने, ज्वार और दूसरा दाना भी देना है. 

वैक्सीन तो हमारी डिक्शनरी में ही नहीं थी 

 बकरियों की हेल्थ से जुड़ी बात पर नईम ने बताया कि अगर सच पूछो तो पहले वैक्सीन हमारी डिक्शनरी में ही नहीं थी. सब कुछ बिना वैक्सीन के ही चल रहा था. आज हम वैक्सीनेशन चार्ट फॉलो करते हैं, जैसा हमे संस्थान में बताया गया है. इसके अलावा बकरियों से जुड़ी बीमारियों को लेकर अलर्ट रहते हैं.    

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