साफ हवा वाले द‍िनों की संख्या बढ़ी, कम हुए जहरीली हवा वाले द‍िन...द‍िल्ली वालों के ल‍िए नई उम्मीद

साफ हवा वाले द‍िनों की संख्या बढ़ी, कम हुए जहरीली हवा वाले द‍िन...द‍िल्ली वालों के ल‍िए नई उम्मीद

जहरीली हवा की मार झेल रहे दिल्ली वालों के लिए खुशखबरी है. यह एक अच्छा संकेत है. पर्यावरण मंत्रालय के एक आंकड़े ने नई उम्मीद जगाई है. ज‍िसमें बताया गया है क‍ि हर साल साफ हवा वाले द‍िनों की संख्या बढ़ रही है.

द‍िल्ली वालों को खराब हवा से राहतद‍िल्ली वालों को खराब हवा से राहत
संदीप कुमार
  • Noida,
  • Dec 02, 2025,
  • Updated Dec 02, 2025, 1:01 PM IST

जहरीली हवा की मार झेल रहे द‍िल्ली वालों के ल‍िए राहत की खबर है. पहले के मुकाबले अब हवा के ल‍िहाज से अच्छे द‍िनों की संख्या बढ़ रही है. यह एक अच्छा संकेत है. पर्यावरण मंत्रालय के एक आंकड़े ने नई उम्मीद जगाई है. ज‍िसमें बताया गया है क‍ि हर साल साफ हवा वाले द‍िनों की संख्या बढ़ रही है और ज्यादा खराब हवा वाले द‍िनों की संख्या घट रही है. शीतकालीन सत्र के पहले दिन 'पराली जलाने का प्रभाव' को लेकर कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी ने संसद में एक सवाल क‍िया. इसके जवाब में पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने द‍िलचस्प आंकड़ा द‍िया है.   

इतने घटे अधिक AQI वाले द‍िन

यादव ने बताया क‍ि दिल्ली में 200 से कम एक्यूआई की संख्या 2016 में 110 थी, जो अब बढ़कर 2025 में 200 दिन तक पहुंच गई है. जबकि बहुत खराब दिनों यानी 301-400 और गंभीर दिनों यानी 401 से अधिक एक्यूआई वाले द‍िन घट गए हैं. ऐसे द‍िन 2024 में 71 थे जो 2025 में स‍िर्फ 50 रह गए हैं. दावा है क‍ि दिल्ली ने पिछले 8 वर्षों में यानी 2018 से 2025 तक (2020 कोविड लॉकडाउन छोड़कर) सबसे कम औसत एक्यूआई देखा है.

दिल्ली में क्यों बढ़ता है प्रदूषण?

राजधानी दिल्ली में हवा खराब होने के कई कारण हैं, जिसमें एनसीआर में अधिक घनत्व की आबादी वाले क्षेत्रों में बड़े स्तर पर गंदगी फैलाना शामिल है, जो अलग-अलग क्षेत्रों जैसे गाड़ियों से प्रदूषण, औ‌द्योगिक प्रदूषण, निर्माण और विध्वंस परियोजना संबंधित धूल, सड़क और खुले क्षेत्रों की धूल, बायोमास जलाना, लैंडफिल में आगआदि के साथ-साथ अलग-अलग मौसम संबंधी कारणों से दिल्ली की आबोहवा खराब हो जाती है. इसके अलावा एनसीआर क्षेत्र और पंजाब में सर्दियों के मौसम के दौरान पराली जलाने की घटना से दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी AQI बढ़ जाती है.

पराली जलाने में तेजी से आई कमी

पंजाब और हरियाणा राज्यों ने मिलकर वर्ष 2022 की इसी अवधि की तुलना में साल 2025 में धान की कटाई के दौरान पराली जलाने कि घटनाओं में लगभग 90 फीसदी की कमी दर्ज की है. इसके लिए सरकार ‌ने कई महत्वपूर्ण कमद उठाए हैं. दरअसल, वर्ष 2018-19 से 2025-26 तक की अवधि में, सीआरएम मशीनों के लिए पंजाब और हरियाणा सरकारों को 3120.16 करोड़ रुपये (पंजाब 1963.45 करोड़ रुपये, हरियाणा 1156.71 करोड़ रुपये) जारी किए गए हैं. इन राज्यों ने किसानों को 2.6 लाख से ज्यादा मशीनें और इन राज्यों में 33,800 से ज़्यादा सीएचसी को मशीनें बांटी हैं. 

प्रदूषण कम करने के लिए दिए गए कई निर्देश

सीएक्यूएम के ज़रिए छोटे सीमांत किसानों के लिए सीआरएम मशीनों की किराया मुक्त उपलब्धता के लिए योजना बनाने का निदेश दिया. इसके अलावा पंजाब और हरियाणा की राज्य सरकारों को एनसीआर से बाहर के जिलों में स्थित सभी ईट भ‌ट्टों में धान की पराली आधारित बायोमास पैलेट ब्रिकेट के उपयोग को अनिवार्य करने का निर्देश दिया गया है, जो कि खुले में धान की पराली जलाने की प्रथा को समाप्त करने के साधनों में से एक है. 

पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के एनसीआर क्षेत्रों और दिल्ली एनसीटी में जिला कलेक्टरों को पराली जलाने की समस्या को समाप्त करने के लिए शिकायत दर्ज करने के आदेश दिए गए हैं. इसके अलावा सीएक्यूएम ने दिल्ली के 300 कि.मी के दायरे में मौजूद सभी कोयला आधारित थर्मल पावर संयंत्रों को बायोमास के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए कोयले के साथ बायोमास आधारित पैलेट्सको-फायर करने के निर्देश जारी किए हैं.

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