पॉलीकल्चर तकनीक से करें मछली पालन, तेजी से बढ़ेगा कतले का वजन

पॉलीकल्चर तकनीक से करें मछली पालन, तेजी से बढ़ेगा कतले का वजन

भारत दुनिया में चीन के बाद तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा जलीय कृषि देश है. भारत में नीली क्रांति ने मत्स्य पालन और जलीय कृषि क्षेत्र के महत्व को प्रदर्शित किया है. इस क्षेत्र को एक उभरता हुआ क्षेत्र माना जाता है और निकट भविष्य में यह भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है.

पॉलीकल्चर तकनीक से करें मछली पालनपॉलीकल्चर तकनीक से करें मछली पालन
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jul 12, 2024,
  • Updated Jul 12, 2024, 5:07 PM IST

पॉलीकल्चर का सीधा मतलब है कई फसलों की एक साथ खेती. चाहे वह अनाजों की खेती हो या मछलीपालन. पॉलीकल्चर में एक साथ कई प्रजातियों की खेती की जाती है. हम यहां मछलीपालन की बात कर रहे हैं. पॉलीकल्चर में किसी एक तालाब में अलग-अलग तरह की मछलियों का पालन किया जाता है. एक ही तालाब में अलग-अलग फीडिंग हैबिट वाली मछलियों का पालन किया जाता है. यानी एक ही तालाब में आप रोहू से लेकर कतला तक और अन्य प्रजातियों को पाल सकते हैं. इसे मिक्स्ड फार्मिंग, कंपोजिट फार्मिंग या पॉलीकल्चर कहते हैं.

पॉलीकल्चर में एक ही तालाब में ब्लैक कार्प, ग्रास कार्प और सिल्वर कार्प जैसी मछलियों को पाल सकते हैं. फीडिंग हैबिट की जहां तक बात है तो अलग-अलग तरह के भोजन करने वाली मछलियों को भी एक ही तालाब में पाला जाता है. इसमें प्लैंक्टन फीडर्स, हर्बीवोर्स, बॉटम फीडर्स और पीसीवोरस मछलियां शामिल हैं. 

प्लैंक्टन सबसे अच्छा आहार

किसी भी तालाब में प्लैंक्टन बड़ी मात्रा में और आसानी से पाए जाते हैं. इसलिए पॉलीकल्चर में इस तरह की मछलियों का पालन अधिक होता है जो प्लैंक्टन खाकर जिंदा रह सकती हैं. इस तरह के तालाब में छोटे और जहां तहां तैरने वाले बड़ी मात्रा में प्लैंक्टन होते हैं जिन्हें मछलियां चाव से खाती हैं. इन प्लैंक्टन को बढ़ाने के लिए मछलीपालक तालाब में खाद डालते हैं. खाद से प्लैंक्टन बढ़ते हैं और उससे मछलियों का भरपूर चारा पैदा होता है. इसे मछलियां अपना आहार बनाती हैं. कतला जैसी मछली भी इस तरह के आहार से तेजी से अपना वजन बढ़ाती हैं. प्लैंक्टन पर सिल्वर कार्प और बिगहेड कार्प मछलियों का पालन सबसे अच्छा होता है. इस तरह की मछलियों का वजन तेजी से बढ़ता है.

ये भी पढ़ें: Fish Farming: मछली पालन को बनाना चाहते हैं फायदेमंद तो तालाब में जरूर करें ये काम 

खरपतवार नष्ट करती हैं मछलियां

इसी तरह पॉलीकल्चर में कुछ ऐसी मछलियों का भी पालन होत है जो घासों या पानी की झाड़ियों को खाती हैं. इन्हें हर्बीवोर्स कहते हैं. पानी में पाए जाने वाले घासों को मछलियां खाती हैं. इसमें ग्रास कार्प का नाम प्रमुख है जिसे पॉलीकल्चर के तहत तालाब में इसीलिए पाला जाता है ताकि वह खरपतवार या घासों को खाकर खत्म कर सके. इससे बाकी मछलियों को फायदा होता है.

इसी तरह कुछ मछलियां बॉटम फीडर्स भी होती हैं जो तालाब की तलछटी पर पाई जाने वाली चीजों को खाती हैं. ये मछलियां तरह-तरह के जीव खाती हैं. जैसे पानी के अंदर के कीड़े, कीट, घोंघे और बैक्टीरिया आदि. कॉमन कार्प इसी तरह की मछलियां हैं जो तलछटी पर पाए जाने वाले जीवों को खाकर अपना गुजारा करती हैं. इनके पालन पर किसानों को अधिक मेहनत नहीं लगती और वजन भी बढ़ता है. इससे किसानों की कमाई बढ़ती है.

पॉलीकल्चर में पाली जाने वाली अन्य मछलियों में पीसीकल्चर फिश की श्रेणी आती है. ये मछलियां दूसरी मछलियों को खाती हैं. इस टाइप की मछलियां दूसरी मछलियों का 5-7 ग्राम मांस खाकर खुद का एक ग्राम वजन बढ़ाती हैं. पशुपालक इन मछलियों को इसलिए पालते हैं ताकि तालाब से उन मछलियों को दूर किया जा सके जिनकी जरूरत न हो. इसमें कैटफिश जैसी मछलियां आती हैं.

कैसे करें मछली पालन?

मछली का बीज (जीरा) डालने से पहले तालाब की सफाई करना जरूरी है. तालाब से सभी जलीय पौधे और शिकारी व छोटी मछलियां निकाल देनी चाहिए. बेहतर है कि जलीय पौधों को मजदूरों से साफ करवा लें और ध्यान रखें कि वे दोबारा न उगें. शिकारी और बेकार मछलियों को खत्म करने के लिए तालाब को पूरी तरह से सुखा देना चाहिए या फिर जहर का इस्तेमाल करना चाहिए. इसके लिए एक एकड़ तालाब में एक हजार किलोग्राम महुआ की खली डालने से मछलियां दो से चार घंटे में बेहोश होकर सतह पर आ जाती हैं. पानी में प्रति एकड़ 200 किलोग्राम ब्लीचिंग पाउडर का इस्तेमाल करके भी शिकारी मछलियों को मारा जा सकता है. पानी में इन जहरों का असर 10-15 दिनों तक रहता है.

MORE NEWS

Read more!